Move to Jagran APP

RBI और सरकार में ठनी, जाने क्यों सरकार की ''इच्छा'' के मुताबिक फैसले नहीं ले रहा केंद्रीय बैंक!

ब्याज दरों में बढ़ोतरी, लाभांश में ज्यादा हिस्सेदारी और पेमेंट रेगुलेटरी बोर्ड के गठन समेत कई मुद्दों पर आरबीआई ने सरकार के रुख से विपरीत जाते हुए फैसला लिया है।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 11:56 AM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 04:52 PM (IST)

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और सरकार के बीच टकराव की जो स्थिति अब सामने आई है, वह पिछले कई महीनों से चल रहे गतिरोध का नतीजा है। शुक्रवार को आरबीआई के गवर्नर ऊर्जित पटेल का बचाव करते हुए बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के सरकार पर सीधे हमला किया, जिसके बाद यह पूरा मामला लोगों के सामने आ गया। आचार्य ने अपने इस बयान में बैंक की ''स्वायत्ता'' का भी बचाव किया।

loksabha election banner

उन्होंने कहा कि अगर बैंक की ''स्वायत्ता नहीं बचाई गई तो वित्तीय संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी।'' हालांकि अभी तक सरकार की तरफ से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। सरकार और बैंक के बीच टकराव की पड़ताल पर एक नहीं बल्कि कई कारण सामने आते हैं, जिन्हें हम बारी-बारी से समझने की कोशिश करते हैं।

NPA पर आरबीआई के एक्शन से नाराज सरकार बैंकिंग सिस्टम में मौजूद एनपीए की समस्या से निपटने के लिए आरबीआई ने सरकारी बैंकों पर कई तरह की सख्ती कर दी है। एनपीए की समस्या से निपटने के लिए आरबीआई ने जिस प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) को तैयार किया है, उसमें उसने कुल 12 बैंकों को रखा हुआ है, जिसमें से 11 सरकारी बैंक हैं।

पीसीए में आने की वजह से आरबीआई ने इन बैंकों के नए कर्ज देने, नए ब्रांच खोलने और लाभांश वितरण पर रोक लगा दी है।

हालांकि सरकार इनमें से कुछ नियमों में ढील चाहती है। केंद्र सरकार चाहती है कि इन बैंकों को कर्ज देने से नहीं रोका जाना चाहिए ताकि आर्थिक विकास को मदद मिल सके। हालांकि बैंकिंग सिस्टम के लिए एनपीए जिस स्तर पर पहुंच चुका है, वैसी स्थिति में आरबीआई की तरफ से राहत नहीं दिए जाने का फैसला तर्कसंगत नजर आता है। आचार्य के मुताबिक यह प्रतबिंध इसलिए लगाए गए ताकि बैंकों के बैलेंस शीट में आगे कोई और समस्या न आए।

वहीं एनपीए को लेकर आरबीआई का नया नियम भी सरकार को परेशान कर रहा है। आरबीआई ने इस साल से नया नियम बनाया है, जिसके तहत अगर कोई भी कंपनी अगर निर्धारित समय से एक दिन बाद भी भुगतान करती है तो उसे डिफॉल्टर घोषित करना होगा।

आरबीआई की यह कोशिश हालांकि पावर सेक्टर में एनपीए से निपटने की कोशिश रही है। सरकार के अधिकारी इस नियम में ढील देने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस दिशा में सफलता नहीं मिल पाई। आरबीआई की इस सख्ती से मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुद्रा योजना के दौरान कर्ज बांटने में कमी हो सकती है।

लाभांश को लेकर विवाद सरकार का मानना है कि बैंकों की तरफ से आरबीआई को मिले लाभांश का अधिकांश हिस्सा उसे देना चाहिए। हालांकि आरबीआई ने ऐसा करने से मना कर दिया। आरबीआई का कहना है कि लाभांश में ज्यादा हिस्सेदारी मांग कर सरकार आरबीआई की स्वायत्ता पर प्रहार कर रही है, खासकर वैसे समय में जब आरबीआई को उसकी बैलेंस शीट को मजबूत करने की जरूरत है।

वहीं सरकार को अगर ज्यादा लाभांश मिलता है तो उसे बजट लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी। पिछले साल आरबीआई ने सरकार को 100 अरब रुपये से अधिक का अंतरिम लाभांश दिया था।

गौरतलब है कि आईएलएंडएफस संकट के बाद नकदी किल्लत की आशंका को लेकर निवेशक सहमे हुए हैं और इसलिए आरबीआई लगातार बाजार में पूंजी डाल रहा है।

हाल ही में आरबीआई ने खुले बाजार सेस करीब 40,000 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदारी की घोषणा की है ताकि सिस्टम में नकदी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। खबरों के मुताबिक सरकार आईएलएंडएफएस संकट से निपटने के लिए इस कंपनी को बेचे जाने समेत अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है।

इस कंपनी पर कुल 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसके डिफॉल्ट होने की स्थिति में गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो सकता है। दुनिया के कुछ देशों में एेसी स्थिति का सामना करना पड़ा है, जब केंद्रीय बैंक में राजनीतिक हस्तक्षेप का खमियाजा वहां की अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ा है।

पेमेंट रेग्युलेटर को लेकर विरोध आरबीआई ने सरकार की तरफ से गठित उस अंतर मंत्रालयी समिति की सिफारिशों का विरोध किया है, जिसमें एक अलग पेमेंट रेगुलेटर को बनाने की सिफारिश की गई है। आरबीआई का मानना है कि पेमेंट रेगुलेटरी बोर्ड को आरबीआई के अधीन रहना चाहिए, जिसकी कमान आरबीआई गवर्नर के हाथों में ही हो।

19 अक्टूबर को जारी नोट में आरबीआई ने कहा, ‘पेमेंट रेगुलेटरी बोर्ड का स्वरुप फाइनैंस बिल में बताई गई घोषणा के मुताबिक नहीं है।“

ब्याज दरों को लेकर रार पिछले कुछ महीनों के दौरान महंगाई में कमी आई है और यह मध्यम टर्म में आरबीआई के अनुमान के मुताबिक (4 फीसद) ही रहा है। हालांकि इसके बावजूद बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की बजाए उसे बढ़ा दिया।

सरकार रिजर्व बैंक से मौद्रिक सख्ती की उम्मीद नहीं कर रही थी लेकिन आरबाई ने अनुमानों को धता बताते हुए उसे बढ़ाने का फैसला लिया।

गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान भारतीय बाजार से निवेशकों ने पैसा निकालना शुरू किया है, जिससे पूंजी बाजार में अस्थिरता का माहौल बन रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार और आरबीआई के बीच का टकराव अर्थव्यवस्था की सेहत को बिगाड़ सकता है। 

यह भी पढ़ें: सरकार और RBI में अनबन के बीच आज जेटली से मिलेंगे उर्जित पटेल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.