अपना घर खरीदने का सही मौका
अफोर्डेबल होम का मतलब ऐसे मकान से है जो किफायत के पहले से तय मानदंडों पर खरा उतरता हो। नियम यह है कि मकान की कीमत आपकी सकल आय के 30 फीसद से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अन्य कई बातें भी देखी जाती हैं। मसलन, आमदनी का स्तर, मकान का
अफोर्डेबल होम का मतलब ऐसे मकान से है जो किफायत के पहले से तय मानदंडों पर खरा उतरता हो। नियम यह है कि मकान की कीमत आपकी सकल आय के 30 फीसद से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अन्य कई बातें भी देखी जाती हैं। मसलन, आमदनी का स्तर, मकान का आकार और लागत।
अपने घर का सपना हम सबके दिल में रहता है। इसे हकीकत में बदलने के लिए अपनी हैसियत की पड़ताल जरूरी होती है, क्योंकि घर खरीदने का निर्णय जिंदगी में अहम बदलाव ला सकता है। यूं तो डेवलपर मकान खरीदने के तरह-तरह के ऑफर देते हैं, मगर यह देखना हमारा काम है कि हम उनका मकान खरीद सकते हैं या नहीं।
अफोर्डेबल होम यानी किफायती घर का मतलब ऐसे मकान से है जो किफायत के पहले से तय मानदंडों पर खरा उतरता हो। मोटा-मोटा नियम यह है कि मकान की कीमत आपकी सकल आय के 30 फीसद से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा अन्य कई बातें भी देखी जाती हैं। मसलन, आमदनी का स्तर, मकान का आकार और लागत। इनमें पहले दो पैमाने एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। लेकिन तीसरे पैमाने का संबंध रीयल एस्टेट संबंधी नीतियों से होने के कारण यह देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग होता है। विभिन्न महानगरों व शहरों में जमीन के अलग दाम होने से भारतीय रीयल एस्टेट मार्केट में कीमतें भी काफी विविधतापूर्ण हैं। उदाहरण के लिए मेट्रो शहरों में 65 लाख तक के मकान को किफायती माना जाता है। गैर मेट्रो नगरों में यह सीमा 50 लाख रुपये तक है।
आज घर खरीदने के इच्छुक लोग कई तरह की किफायती हाउसिंग सोसाइटियों के जरिये अपने मकान का सपना पूरा कर सकते हैं। ये न केवल अपने वर्ग में सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं प्रदान करती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के भी समकक्ष हैं। इनकी लोकेशन भी अच्छी होती है। अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ परिवहन, इलाज, शिक्षण व मनोरंजन की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। चूंकि अच्छी लोकेशन पर बनने वाले हाउसिंग प्रोजेक्टों का तेजी से विकास हो रहा है, लिहाजा इनमें लगाए गए पैसे से अच्छे रिटर्न की संभावना रहती है। इसके अलावा नई लोकेशनों का भी सुनियोजित ढंग से विकास हो रहा है। जहां बेहतर जीवन स्तर के साथ हरियाली व इंफ्रास्ट्रक्चर का सही संतुलन दिखाई देता है।
किसी हाउसिंग प्रोजेक्ट की उपयोगिता का आकलन उसकी कीमत, परिवहन सुविधाओं, खुली जगह व शांतिपूर्ण वातावरण के अलावा मार्केट, मनोरंजन, स्कूल, अस्पताल जैसे अतिरिक्त सामाजिक फायदों से किया जाता है। मकान का चयन करते वक्त खरीदारों को कार्यालय से नजदीकी के अलावा खुले स्थान और शांतिपूर्ण माहौल को सबसे ज्यादा तरजीह देनी चाहिए। हालांकि, जो खरीदार अभी तक औपचारिक चैनल का हिस्सा नहीं बने हैं, उनके लिए कम लागत के अलावा आसान कर्ज सुविधा सबसे अहम होती है। मकान खरीदने वालों को अपनी स्थिति के मुताबिक इन सारी बातों को ध्यान में
रखना चाहिए।
आजकल ऐसे युवाओं की तादाद तेजी से बढ़ रही है जिन्हें जॉब के सिलसिले में एक से दूसरे महानगर में जाकर रहना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए घर की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। इसी कारण मेट्रो शहरों में रेजीडेंशियल प्रॉपर्टी का तेजी से विकास हो रहा है। मगर टियर-2 और टियर-3 शहरों में मांग व आपूर्ति का भारी अंतर है। आने वाले दिनों में इन शहरों के विकास के साथ यहां भी मकानों की मांग में तेज इजाफा होगा।
एक अनुमान के अनुसार भारत का हाउसिंग सेक्टर अगले एक दशक के दौरान सालाना दो अंकों की दर से बढ़ेगा। प्रधानमंत्री के '2022 तक सबके लिए घरÓ के सपने को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण सुधारों के अलावा नियामक मंजूरी की प्रक्रिया को दुरुस्त करने की जरूरत है। निर्माण क्षेत्र में एफडीआइ के नियमों को सरकार पहले ही ढीला कर चुकी है। इससे प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग के अवसरों का
विस्तार होगा।
टाटा हाउसिंग के रिसर्च के मुताबिक भारत में फिलहाल दो करोड़ 47 लाख मकानों की कमी है। इनमें ज्यादातर किफायती मकान शामिल हैं। बेहतर सरकार, आर्थिक सुधारों तथा अनुकूल निवेश वातावरण के परिणामस्वरूप रीयल एस्टेट उद्योग में सुधार के लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
ब्रोतिन बनर्जी
एमडी एवं सीईओ, टाटा हाउसिंग