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कंपनियों की आमदनी पर टिकी है बाजार की रफ्तार

भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से वह ऊंची उड़ान भर सकता है। वित्त वर्ष 2016- 17 से यदि कंपनियों की आमदनी में वृद्धि होना शुरू होती है और ब्याज दरों में नरमी का लाभ नीचे तक जाता है तो यह बाजार में दीर्घकालिक निवेश के अवसर पैदा

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2016 01:17 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2016 01:24 PM (IST)
कंपनियों की आमदनी पर टिकी है बाजार की रफ्तार

भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से वह ऊंची उड़ान भर सकता है। वित्त वर्ष 2016- 17 से यदि कंपनियों की आमदनी में वृद्धि होना शुरू होती है और ब्याज दरों में नरमी का लाभ नीचे तक जाता है तो यह बाजार में दीर्घकालिक निवेश के अवसर पैदा कर सकता है। ऐसा होने से इक्विटी बाजार एक सकारात्मक उड़ान शुरू कर सकता है।

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बीता साल अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी घटनात्मक रहा। आर्थिक विकास दर के लिहाज से भारत ने चीन को पछाड़ा और तेजी से विकसित होता विकासशील देश बना। 2016 में भी अर्थव्यवस्था में इसी तरह का रुख बने रहने की उम्मीद है। महंगाई की दर, नरम ब्याज दरें और सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक सुधारों की तरफ होने की वजह से यह वर्ष भी आर्थिक विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण रहेगा। वित्त वर्ष 2015 में 7.3 फीसद की आर्थिक विकास दर 2016 में 7.5 और 2017 में 7.8 फीसद रहने का अनुमान लगाया जा रहा

है।

ऐसे वक्त में जब दुनिया करीब करीब शून्य ब्याज दर से उपजी स्थितियों से जूझ रही है, भारत में अभी भी

ब्याज दरें उच्चतम स्तर पर हैं। इससे स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक के समक्ष अभी ब्याज दरों को नरम बनाने की

काफी संभावनाएं हैं। हालांकि 2015 में रिजर्व बैंक 125 आधार अंकों (1.25 फीसद) की कमी पहले ही

कर चुका है।

दूसरी तरफ भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हो रही कमोडिटी कीमतों का भी लाभ मिलेगा। इनमें

कच्चा तेल प्रमुख है। यदि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले स्थिर रहती है तो कमोडिटी की कीमतों में हो

रही तेज गिरावट का और अधिक लाभ मिल सकता है।

इससे महंगाई की दर पर भी लगाम लगाने में मदद मिलेगी। 18 महीने में आर्थिक सुधारों की रफ्तार बाजार

की उम्मीद से धीमी रही है, लेकिन जितने कदम अब तक सरकार ने उठाए हैं वे सही दिशा में लिए गए हैं।

डीबीटी, एनर्जी रिफॉर्म, कारोबार करना आसान बनाना, एफडीआइ को आकर्षित करने संबंधी कदम, बैंकों का

पुनर्पूंजीकरण जैसे कई अहम कदम सरकार की तरफ से उठाए गए हैं। अगर जीएसटी विधेयक और बैंकरप्सी

विधेयक संसद से पारित हो जाए तो यह अर्थव्यवस्था और बाजार दोनों पर अहम प्रभाव डालेंगे। एक अनुमान

के मुताबिक जीएसटी जब पूरी तरह से लागू हो जाएगा तो यह देश के टैक्स जीडीपी रेशियो में 200 आधार

अंकों की वृद्धि करेगा। इसे यदि राजस्व में तब्दील किया जाए तो सरकार को अतिरिक्त 50 अरब डॉलर

की आमदनी होगी। इसी तरह बैंकरप्सी कानून भी बैंकों के बढ़ते एनपीए के जोखिम को कम करेगा। साथ ही

कंपनियों को बंद करने की प्रक्रिया भी आसान हो सकेगी। 2015 में रुपया डॉलर के मुकाबले सात

फीसद कमजोर हुआ। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2016 में भी डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल

लगभग इसी तरह बनी रहेगी। डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी और अन्य आर्थिक आंकड़ों की धीमी

रफ्तार के बावजूद राजकोषीय घाटे, चालू खाते के घाटे, औद्योगिक उत्पादन और मुद्रा बाजार की स्थिति में

सुधार हुआ है। अलबत्ता कंपनियों की आमदनी पर इसका सकारात्मक असर नहीं हुआ और इस पर अभी

भी दबाव बना हुआ है। इसकी मूल वजह खराब मानसून के चलते ग्रामीण क्षेत्र से मांग कम होने,

ग्लोबल अर्थव्यवस्था की चुनौतीपूर्ण स्थिति और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की कीमत का आपस में बिगड़ता

तालमेल ज्यादा जिम्मेदार है। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि 2016 की पहली तिमाही में कंपनियों की

आमदनी में कुछ फर्क दिखाई दे सकता है।

जहां तक बाजार के लिए मध्यावधि जोखिमों का सवाल है उनमें बैंकों के एनपीए, भू-राजनीतिक

परिस्थितियां, वैश्विक स्तर पर बनी मंदी की स्थिति और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत

की वैल्यूएशन का महंगा होना शामिल हैं। ऐसा कहा जाना उचित होगा कि भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है

जहां से वह ऊंची उड़ान भर सकता है। वित्त वर्ष 2016-17 से यदि कंपनियों की आमदनी में वृद्धि होना

शुरू होती है और ब्याज दरों में नरमी का लाभ नीचे तक जाता है तो यह बाजार में दीर्घकालिक निवेश के

अवसर पैदा कर सकता है। ऐसा होने से इक्विटी बाजार एक सकारात्मक उड़ान शुरू कर सकता है। मांग में

कमी है, चीन अपनी उत्पादन क्षमता को सीमित कर आपूर्ति की रफ्तार को धीमा कर रहा है। देश इस वक्त

ऐसी अवस्था में है जहां कुछ उपाय तो हो रहे हैं। लेकिन अल्पकालिक सेंटीमेंट प्रभावित हो रहे हैं। चीन में जब

तक घरेलू मांग रफ्तार नहीं पकड़ती, वहां की अर्थव्यवस्था तकलीफ में रहेगी। बाकी बाजारों से मैं

कोई सीधा संबंध घरेलू बाजार के साथ नहीं देखता जब तक ये देश अपनी मुद्रा का तेज अवमूल्यन नहीं करते,

क्योंकि ऐसे कदमों का असर सभी बाजारों पर होता है।

अनूप माहेश्वरी

ईवीपी, इक्विटी एंड कॉरपोरेट स्ट्रैटेजी

ब्लैकरॉक


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