लघु बचत योजना के बचतकर्ताओं पर थोड़ा रहम कीजिए
रिजर्व बैंक तथा आर्थिक टिप्पणीकार लगातार लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरें घटाने की बात कह रहे हैं। लघु बचत योजनाओं पर इस ब्याज दर का भुगतान सरकार करती है। जब तक लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर में कमी नहीं आएगी तब तक बैंकों के लिए डाकघर बचत, पीपीएफ,
रिजर्व बैंक तथा आर्थिक टिप्पणीकार लगातार लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरें घटाने की बात कह रहे हैं। लघु बचत योजनाओं पर इस ब्याज दर का भुगतान सरकार करती है। जब तक लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर में कमी नहीं आएगी तब तक बैंकों के लिए डाकघर बचत, पीपीएफ, वरिष्ठ नागरिक योजना और बालिकाओं के लिए बचत योजना से मुकाबला करना कठिन होगा। इसके पीछे दलील यह है कि अगर इन प्रोडक्ट पर ब्याज दरें कम कर दी जाएं तभी बैंकों को लोन पर ब्याज दर घटाने के लिए पर्याप्त मार्जिन मिल सकेगा। रिजर्व बैंक पिछले दो साल से ब्याज दरों में कटौती कर रहा है लेकिन बैंकों ने इसका बहुत थोड़ा फायदा ग्राहकों तक पहुंचाया है। दूसरी दलील यह है कि अब मुद्रास्फीति कम है इसलिए लघु बचत योजनाओं के बचतकर्ताओं को अधिक ब्याज दर का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।
इसके पीछे विचार यह है कि जब तक सरकार लोगों को लघु बचत पर मिलने वाली ब्याज दर को नहीं घटाती तब तक बैंक अपने उधार पर ब्याज दरें कम नहीं कर सकेंगे भले ही आरबीआइ अपनी ओर से कदम उठाता रहे। व्यक्तिगत बचतकर्ता को लघु बचत योजना पर 8.5 प्रतिशत या उससे अधिक ब्याज दर मिल सकती है, ऐसे में बैंकों की फिक्स्ड जमाएं इसका मुकाबला नहीं कर पाएंगी। जब तक ये सस्ती नहीं होतीं वे सस्ता लोन नहीं पा सकेंगे। इसलिए अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा बंद कर देनी चाहिए।
विकास दर और निवेश के दृष्टिकोण से यह तर्क सही प्रतीत होता है। आखिरकार यह विचार ऐसे लोग दे रहे हैं जो तर्कसंगत बात कहने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि करोड़ों बचतकर्ताओं के दृष्टिकोण से यह विचार उचित नहीं है। लगभग एक दशक तक लघु बचत योजनाओं में मुद्रास्फीति की तुलना में ब्याज बिल्कुल नगण्य मिला है। उस समय कितने लोगों ने यह दलील दी थी कि लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर बढऩी चाहिए? क्या किसी ने यह सवाल उठाया था कि किस तरह बचतकर्ताओं को कम ब्याज दर देकर सरकार, बैंकों और बैंकों से उधार लेने वाले लोगों को सस्ती दर पर लोन मिल रहा था?
अब, पिछले हफ्ते मौद्रिक नीति (लघु बचत पर ब्याज दरें कम करने की कोशिश) के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि सरकार सावधानीपूर्वक ब्याज दरें कम करना चाहती है। उन्होंने विशेषत: बालिकाओं के लिए शुरू की गई बचत योजना का उदाहरण दिया और कहा कि अगर आप सालभर के भीतर ही इस पर मिलने वाली ब्याज दर को तेजी से घटा देंगे तो यह राजनीतिक तौर पर उचित नहीं होगा। ऐसे में आपको उस दिशा में सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाना होगा। इससे ऐसा लगता है कि वह ब्याज दरों को कम करना चाहते हैं। फिलहाल भले ही वह ऐसा न करें, लेकिन इरादा कुछ ऐसा ही है। ऐसा लगता है कि उन्हें ब्याज दर घटाने का विचार सही लगता है लेकिन ऐसा करना राजनीतिक तौर पर व्यावहारिक नहीं है।
मेरे विचार में यह गलत तरीका है खासकर बालिकाओं के लिए बचत योजना तथा वरिष्ठ नागरिकों की योजनाओं के लिए। इस तरह की योजनाओं में जमाराशि की उच्च सीमा अपेक्षाकृत कम है। इन योजनाओं का एक विशिष्ट सामाजिक उद्देश्य और उपयोग है। सरकार कई चीजों पर काफी धनराशि खर्च करती है, इनमें से कई निरर्थक होती हैं। जो बैंक अब अच्छा मार्जिन चाहते हैं वे वही हैं जिन्होंने हजारों करोड़ रुपये बड़ी कंपनियों को उधार दे रखे हैं और जो उधार लौटा नहीं रहे हैं। अगर दलील यह है कि वरिष्ठ नागरिक या बालिकाओं की बचत योजनाओं पर मामूली या नगण्य रिटर्न इसलिए देना है क्योंकि विजय माल्या जैसे लोग अपना लोन नहीं चुकाना चाहते तो फिर जेटली की बात सही है कि यह राजनीतिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं है।
धीरेंद्र कुमार