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बजट पर टिके निवेश के निर्णय

केंद्र सरकार का बजट बाजार और नीति नियंताओं की सोच को एक दिशा देने का काम करता है। बजट में होने वाली घोषणाएं केवल उद्योग क्षेत्र के लिए ही लाभकारी नहीं होतीं, बल्कि समूचा निवेशक समुदाय इन लाभों से प्रभावित होता है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार ऐसे इंतजाम

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2016 01:28 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2016 02:08 PM (IST)
बजट पर टिके निवेश के निर्णय

केंद्र सरकार का बजट बाजार और नीति नियंताओं की सोच को एक दिशा देने का काम करता है। बजट में होने वाली घोषणाएं केवल उद्योग क्षेत्र के लिए ही लाभकारी नहीं होतीं, बल्कि समूचा निवेशक समुदाय इन लाभों से प्रभावित होता है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार ऐसे इंतजाम करे जिससे उद्योग निरंतर प्रगति करें।

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नवें दशक के आखिर और 2000 के शुरुआती वर्षों में आयकर की धारा 54ईए और 54ईबी के तहत म्यूचुअल फंडों में निवेश करने पर कैपिटल गेन्स टैक्स बेनिफिट मिलते थे। इसके चलते इक्विटी स्कीमों में लंबी अवधि के निवेश के तौर पर

अच्छी खासी राशि म्यूचुअल फंडों में आती थी। इसी राशि ने उद्योगों की रफ्तार को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। फिलहाल यह सुविधा 54ईसी के तहत एनएचएआइ और आरईसी बांडों के तहत अधिकतम 50 लाख रुपये के निवेश पर ही उपलब्ध है। लेकिन यदि इसी धारा के तहत कुछ सिक्योरिटीज को अधिसूचित कर दिया जाए तो पूंजी बाजार में म्यूचुअल फंडों के जरिये लंबी अवधि के लिए बड़ी मात्रा में राशि लाई जा

सकती है। म्यूचुअल फंडों में तीन साल से कम अवधि वाले निवेश शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स के दायरे में आते हैं।

दूसरी तरफ डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश को एक वर्ष से अधिक समय तक बनाए रखने पर 10 फीसद की फ्लैट दर से कर देना होता है। जबकि डेट इंस्ट्रूमेंट्स वाले एक्सचेंज ट्रेडेड फंड म्यूचुअल फंड होने के नाते शॉर्ट टर्म गेन्स टैक्स के दायरे में आते हैं न कि सूचीबद्ध डेट फंड के तौर पर। अगर आगामी बजट में वित्त मंत्री इस पर ध्यान देते हैं और इस विसंगति को समाप्त करते हैं तो यह फिक्स्ड इनकम ईटीएफ के लिए काफी लाभकारी होगा। इसका फायदा अंतत: निवेशकों को मिलेगा। म्यूचुअल फंड निवेश में सेवा कर को लेकर अब भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। किसी भी अन्य उत्पाद या सेवा श्रेणी के समान सेवा कर का भुगतान ग्राहक या उपभोक्ता को ही करना होता है। लेकिन अगर ग्राहक ब्रोकरेज पर सेवा कर नहीं देना चाहता तो उसे सीधे प्लान लेना होता है। अगर सरकार की तरफ से इस बारे में स्पष्टता मिल जाए तो उद्योग देश में वित्तीय समावेश को बढ़ाने पर ज्यादा

फोकस कर सकता है।

यह तो हुई वित्तीय क्षेत्र के टैक्स संबंधी मुद्दों की बात। लेकिन सरकार का बजट बाजार और नीति नियंताओं की सोच को एक दिशा देने का काम करता है। तेल व गैस क्षेत्र देश की सकल जीडीपी में 15 फीसद का योगदान करता है। यह क्षेत्र निवेश के लिहाज से भी काफी अहम है।

इस क्षेत्र में सरकार की तरफ से मिलने वाले नीतिगत निर्देशों का असर लंबी अवधि के निवेश पर भी होता है। कच्चे तेल की कम कीमतों को देखते हुए तेल व गैस क्षेत्र में निवेश प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

इसके लिए क्षेत्र 4,500 रुपये प्रति टन के फिक्स्ड सेस की व्यवस्था को बदलकर मूल्य आधारित प्रणाली को लागू

किया जा सकता है। इसके तहत बिक्री मूल्य का एक निश्चित फीसद सेस के तौर पर वसूला जा सकता है। इसका फायदा अपस्ट्रीम कंपनियों को मिलेगा। साथ ही बजट में एलपीजी और केरोसिन सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने का रोडमैप की मांग भी हो रही है। इसके अलावा इन सभी सब्सिडी को पूरी तरह सीधे बैंकों में जमा कराने की योजना (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी) कब तक लागू हो जाएगी इसका एलान भी इस

बार बजट में होना चाहिए।

इस क्षेत्र में टैक्स हॉलीडे यानी कर अवकाश के दावे की योग्यता और समयावधि को बढ़ाकर उसे इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के समान करने की आवश्यकता है। इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में टैक्स हॉलीडे लगातार दस साल तक मिलता है। गैस पाइपलाइन बिछाने के काम को भी इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के समान सुविधाएं देने की मांग हो रही है। पाइपलाइन बिछाने की परियोजनाओं को सेवा कर के दायरे से बाहर रखने से लेकर शहरी गैस पाइपलाइन प्रोजेक्टों पर सरकारी बजट से प्रोत्साहन देने की मांग की जा रही है। बजट में होने वाली घोषणाएं केवल उद्योग क्षेत्र के लिए ही लाभकारी नहीं होतीं, बल्कि समूचा निवेशक समुदाय इन से मिलने वाले लाभों से प्रभावित होता है।

म्यूचुअल फंड से लेकर तमाम बड़े संस्थागत निवेशक उद्योगों में निवेश करते हैं। खुदरा निवेशक उन म्यूचुअल फंडों की स्कीमों में निवेश करते हैं जिनका पैसा अप्रत्यक्ष तरीके से इक्विटी या डेट के जरिये उद्योगों में लगता है। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार ऐसे इंतजाम करे जिससे ये सभी उद्योग निरंतर प्रगति करें, ताकि उसका प्रतिफल खुदरा समेत पूरे निवेशक समुदाय तक हर हाल में पहुंचा सकें।

विकास एम सचदेव

सीईओ, ईडलवाइज असेट मैनेजमेंट


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