आम आदमी को आयकर से राहत देना जरूरी
मोदी सरकार को लेकर बनी हवा शांत होने लगी है। 'अच्छे दिन' के नारे वित्तीय हकीकत से टकरा रहे हैं। ग्लोबल मंदी की चुनौतियों से त्रस्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कई कदमों की योजना बनाई जा रही है। उम्मीद है जीएसटी बिल पास हो जाएगा। इसी के साथ 2016
मोदी सरकार को लेकर बनी हवा शांत होने लगी है। 'अच्छे दिन' के नारे वित्तीय हकीकत से टकरा रहे हैं। ग्लोबल मंदी की चुनौतियों से त्रस्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कई कदमों की योजना बनाई जा रही है। उम्मीद है जीएसटी बिल पास हो जाएगा। इसी के साथ 2016 के बजट में कॉरपोरेट टैक्स की आधारशिला रखी जाएगी।
मगर वित्त मंत्री को जिन मसलों पर विचार करने की जरूरत है वे ऐसे मुद्दे हैं जिनका सामना आम आदमी को करना पड़ रहा है।
इन बातों पर दें अवश्य ध्यान
80सी की सीमा व आयछूट की सीमा :वित्त वर्ष 2014-15 से ही धारा 80सी की 1,50,000 रुपये की सीमा के साथ आयकर छूट की न्यूनतम सीमा 2,50,000 रुपये बनी हुई है। टैक्स दरें भी यथावत हैं। धारा 80सी के डिडक्शन के अंतर्गत स्कीमों व योगदानों की संख्या को देखते हुए सरकार को इसकी सीमा को बढ़ाकर 2,00,000 करने पर विचार करना चाहिए। धारा 80सी के तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा प्रीमियम भुगतान, सुकन्या समृद्धि खाता, ईएलएसस, होम लोन का मूलधन, बच्चों की फीस समेत कई अन्य स्कीमों में किए जाने वालेयोगदान आते हैं।
ईएलएसएस फंडों पर अलग डिडक्शन : इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम यानी ईएलएसएस फंड निवेशकों को शेयर बाजार के उतार-चढ़ावों से सुरक्षा प्रदान करने में मददगार होते हैं। फंड चलाने वाली कंपनियां समझती हैं। आम करदाता उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं। यह तभी संभव है जब ईएलएसएस फंडों में योगदान पर अलग से डिडक्शन की सुविधा मिले। ऐसा करके सरकार छोटे खुदरा निवेशकों को शेयरों में पैसा लगाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
इनमें तीन साल लंबा लॉक-इन पीरियड होता है, लिहाजा इससे बाजार को भी लाभ मिलेगा। डिडक्शन की पुरानी सीमाएं खत्म हों :पढ़ाई और चिकित्सा संबंधी खर्चों में कई गुना बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप बच्चों के शैक्षिक भत्ते, छात्रावास भत्ते तथा चिकित्सा संबंधी पुनर्भुगतानों की पुरानी डिडक्शन सीमाएं निरर्थक हो गई हैं। लंबे अरसे से ये सीमाएं बढ़ाई गई हैं। सरकार को इन्हें बढ़ाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। यदि यह संभव नहीं हो तो इन्हें खत्म कर देना ही बेहतर है। इसके बजाय आयकर छूट की न्यूनतम सीमा बढ़ाना बेहतर रहेगा।
ब्याज आय पर टीडीएस में कमी आयकर विभाग हर साल करोड़ों रुपये का रिफंड करदाताओं को भेजता है। यह इनकम टैक्स विभाग के अलावा आयकरदाता के लिए भी एक अतिरिक्त काम है। इसीलिए कर सुधारों के लिए गठित ईश्वर समिति ने टीडीएस दरों को मौजूदा 10 से घटाकर पांच फीसद पर लाने का सुझाव दिया है। क्योंकि आयकरदाताओं द्वारा वास्तविक रूप से अदा की जाने वाली कर की राशि काफी कम है। उदाहरण के लिए जिस व्यक्ति की वार्षिक आय 7,00,000 रुपये है, वह धारा 80सी का पूरा लाभ लेते हुए अपनी करयोग्य आय को घटाकर 5,50,000 रुपये कर लेता है। इस आय पर भी न्यूनतम 2,50,000 रुपये की छूट प्राप्त करने की अनुमति है। इस तरह उस व्यक्ति की प्रभावी करयोग्य आय केवल 300,000 रुपये बनती है। इसमें से 2,50,000 रुपये पर 10 फीसद के हिसाब से 25,000 रुपये का टैक्स और बाकी 50,000 रुपये पर 20 फीसद के हिसाब से 10,000 रुपये टैक्स बनता है। इस तरह 7,00,000 रुपये की आय पर आयकर विभाग को केवल 35,000 रुपये का वास्तविक टैक्स (बगैर सेस के) प्राप्त होता है। जो कुल आय का महज पांच प्रतिशत हुआ। यही नहीं, यदि इस व्यक्ति ने ब्याज से भी कमाई की हो तो इसका टीडीएस केवल 10 फीसद की दर से काटा जाएगा। ऐसी स्थिति में
उसके द्वारा रिफंड की मांग किए जाने की पूरी संभावना है। स्पष्ट है कि टीडीएस दर को कम करने से आयकर विभाग पर काम का बोझ भी कम होगा।
मृदुला राघवन
कंटेट स्ट्रेटजिस्ट, क्लियरटैक्स डॉट इन