घरेलू तेल उत्पादन में 50 फीसद हिस्सेदारी चाहता है वेदांता समूह
हमारे अपने ही देश में विशाल बाजार मौजूदा है जो तमाम तरह के उत्पादों की खपत करने में सक्षम है।
घरेलू तेल उत्पादन में 50 फीसद हिस्सेदारी चाहता है वेदांता समूह
नई दिल्ली। हाल ही में हुए तेल खोज के लिए हुई ब्लॉकों की नीलामी में 55 में से 41 ब्लॉक हासिल कर वेदांता समूह देश के घरेलू तेल उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को लेकर काफी उत्साहित है। समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख नितिन प्रधान से बातचीत में कहा कि घरेलू उत्पादन में समूह अपनी हिस्सेदारी 50 फीसद तक करना चाहता है।
:::साक्षात्कार:::
पेश हैं अग्रवाल से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
- तेल खोज कार्यक्रम में आपके समूह ने सर्वाधिक ब्लॉक हासिल किए हैं? क्या लक्ष्य हैं समूह के?
- देखिए, इस नीलामी से यह तो साफ हो गया है कि इस क्षेत्र में अब निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ रही है। हमारा लक्ष्य स्पष्ट है। हम कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन में 50 फीसद की हिस्सेदारी करना चाहते हैं। तेल खोज के लिए मिले नए ब्लॉक हमें इस लक्ष्य के और नजदीक ले जाएंगे। भारत में बहुत संभावनाएं हैं। यह देश की एनर्जी सुरक्षा के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में बेहद अहम साबित होगा।
- सरकार की इस नीति को आप किस नजरिये से देखते हैं?
- मेरी नजर में सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। यह जिनका काम है, उन्हें करने देना चाहिए। भारत एक सक्षम देश है। इसमें जितनी क्षमता है, उतनी दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। यहां की जमीन के ऊपर जितनी उर्वरा शक्ति है उतनी ही संपन्नता यहां जमीन के नीचे भी है। हरित क्रांति के जरिये हम जमीन के ऊपर काफी कुछ कर चुके हैं। अब जमीन के नीचे की संपन्नता को बाहर लाना आवश्यक है। अभी दिक्कत यह है कि जो संसाधन हमारी अपनी जमीन के नीचे हैं, उनका पर्याप्त दोहन नहीं होने के चलते हमें उनका आयात करना पड़ता है। इसमें न केवल विदेशी मुद्रा खर्च होती है बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा नहीं हो पाते। लिहाजा हमें इस क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है।
- उत्पादन बढ़ने पर उस कच्चे माल की खपत करने के लिए क्या हमारे घरेलू उद्योग सक्षम हैं?
- बिलकुल हैं। हमारे अपने ही देश में विशाल बाजार मौजूदा है जो तमाम तरह के उत्पादों की खपत करने में सक्षम है। अगर अपने पड़ोसी देशों को भी मिला लिया जाए तो हम दुनिया की आबादी में 25 फीसद का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए अगर हम केवल उत्पादन बढ़ाने पर जोर दें तो न सिर्फ अपने बाजार की मांग पूरी कर पाएंगे बल्कि उत्पादों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर पाएंगे।
- लेकिन अभी तो हम ऐसे उत्पादों का भी आयात कर रहे हैं जिनका घरेलू स्तर पर पर्याप्त उत्पादन हो रहा है?
- ऐसा कई क्षेत्रों में हो रहा है। अल्यूमीनियम इसका एक उदाहरण है। हमारे पास खपत से अधिक उत्पादन क्षमता है, लेकिन आज भी हमारे देश में इसका आयात हो रहा है। इसकी एक वजह तो वैश्विक कारोबार में बढ़ी प्रतिस्पर्धा और अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा ट्रेड वार है। इसलिए जरूरी है कि आयात को हतोत्साहित कर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए।
- भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को कैसे आंकते हैं आप?
- बहुत चुनौतियां हैं। रुपये का मौजूदा स्तर काफी मुश्किल स्थिति पैदा कर रहा है, लेकिन इन चुनौतियों से बाहर निकलने का एक ही तरीका है कि घरेलू कंपनियों में उत्पादन बढ़े। सरकारी कंपनियों में भी इतनी क्षमता है कि आप तेजी से उत्पादन बढ़ा सकते हैं। हमारा मानना है कि देश में पब्लिक लिमिटेड कंपनियों की संख्या बढ़नी चाहिए। सरकारी कंपनियों को इस श्रेणी में लाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में भी हमने यही बात कही है।
- रुपये के किस स्तर को ठीक मानते हैं?
- देखिए, हम तो मानते हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपया फिर से 55-60 के स्तर पर आ जाए। ऐसा हो भी सकता है, बशर्ते उत्पादन बढ़े और हम निर्यात बढ़ाएं।
- सरकार फिर से स्ट्रैटेजिक डिसइन्वेस्टमेंट करे तो आपका समूह रुचि लेगा?
- हम ही क्यों पूरी दुनिया की कंपनियों में इसके लिए रुचि होगी। वैसे विनिवेश की प्रक्रिया में 10-20 सार्वजनिक उपक्रम प्राइवेट कंपनियों को दे ही सकते हैं। लेकिन हमारा मानना है कि बाकी में पब्लिक की भागीदारी बढ़े। हमने बाल्को, हिंदुस्तान जिंक को खरीदा, लेकिन एक भी कर्मचारी की नौकरी नहीं गई। कर्मचारी घटाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि उत्पादन बढ़ेगा तो लोगों की जरूरत तो होगी ही।