राज्यों में स्थानीय टैक्सों का बोझ भी कम करना होगा
मैन्यूफैक्चरिंग निर्यातकों को आयातित सामान पर तो जीएसटी अदा करना ही होगा, घरेलू स्तर पर खरीदे गए कच्चे माल पर भी यह टैक्स निर्यातकों को अदा करना है।
नई दिल्ली (गणेश गुप्ता)। जीएसटी का काउंटडाउन शुरू हो गया है। हालांकि निर्यातक इसे लेकर अधिक उत्साहित नहीं हैं। यह अवधारणा कुछ तो इस वजह से बन रही है क्योंकि लोगों में जीएसटी को लेकर समझ का अभाव है। लेकिन इस क्षेत्र की कुछ वास्तविक दिक्कतें भी हैं। मैन्यूफैक्चरिंग पर पड़ने वाले जीएसटी के सकारात्मक प्रभाव का फायदा निर्यात क्षेत्र को भी मिलेगा। इसके लागू होने से लॉजिस्टिक यानी परिवहन में लगने वाले समय और लागत में कमी आएगी। खासतौर पर ई-वे बिल की शुरुआत इसमें मददगार साबित होगी।
मैन्यूफैक्चरिंग निर्यातकों को आयातित सामान पर तो जीएसटी अदा करना ही होगा, घरेलू स्तर पर खरीदे गए कच्चे माल पर भी यह टैक्स निर्यातकों को अदा करना है। ऐसे मर्चेट एक्सपोर्टर्स जो अपने उत्पादन का तीस फीसद निर्यात करते हैं, उन्हें भी मैन्यूफैक्चरर से निर्यात करने योग्य सामान खरीदने पर जीएसटी का भुगतान करना होगा। इन दोनों श्रेणियों को मौजूदा व्यवस्था में इस मामले में छूट प्राप्त है।
अक्सर छोटे निर्यातक वकिर्ंग कैपिटल जुटाने की दिक्कतों का मुद्दा उठाते रहे हैं। लेकिन अब उन निर्यातकों को जीएसटी अदा करने के लिए भी धनराशि जुटानी होगी। कर्ज पर आने वाली लागत इन निर्यातकों के लिए जले पर नमक छिड़कने के समान होगी। यह लागत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में छह से आठ फीसद अधिक है। इसलिए ब्याज का बोझ निर्यातक की प्रतिस्पर्धी क्षमता को करीब दो फीसद कम कर देता है। अगर निर्यात पर आइजीएसटी से बांड को छूट देने का प्रावधान किया जा सकता है तो मचेर्ंट एक्सपोर्टर या निर्यात के लिए खरीदे जाने वाले मैन्यूफैक्चरिंग कच्चे माल पर लागू क्यों नहीं हो सकता। कई देश जीएसटी और वैट के तहत निर्यात के कच्चे माल पर टैक्स से छूट देते हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्यों में इलेक्टिसिटी टैक्स, पेट्रोल व डीजल पर वैट जैसे करों को जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है। पावर और इलेक्ट्रिसिटी को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। ये सभी टैक्स निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी क्षमता को प्रभावित करते हैं। मेरा सुझाव है कि सरकार को इन टैक्स प्रावधानों के बारे में सोचना चाहिए ताकि उन्हें राहत मिल सके। यहां यह बहस का विषय नहीं है कि इन टैक्सों से पहले भी निर्यात प्रभावित होता रहा है। जीएसटी एक क्रांतिकारी कदम है जो टैक्स सिस्टम को स्वच्छ करेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि अपने पिछले खराब अनुभवों को भूलकर इसके साथ आगे बढ़ना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि सरकार समुद्री और हवाई भाड़े से संबंधित इन विसंगतियों पर विचार करेगी क्योंकि अधिकांश मामलों में शिपमेंट पर ढुलाई का खर्च खरीदार को उठाना होता है।
(यह लेख गणेश गुप्ता, प्रेसीडेंट, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गनाइजेशन ने लिखा है)