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महिला किसानों के सशक्तिकरण के लिए योजनाओं में है बड़े सुधारों की आवश्यकता

मुद्रा योजना से स्वयं सहायता समूह के केवल एक सदस्य को जोड़ने की सीमा को बढाया जाना चाहिए क्योंकि कुछ समूहों में 1 से अधिक महिला सदस्य कारोबारी के रूप में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 30 Jul 2019 05:47 PM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 08:36 AM (IST)
महिला किसानों के सशक्तिकरण के लिए योजनाओं में है बड़े सुधारों की आवश्यकता
महिला किसानों के सशक्तिकरण के लिए योजनाओं में है बड़े सुधारों की आवश्यकता

नई दिल्ली, (प्रेमकुमार आनंद)। देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार 2.0 के पहले केंद्रीय बजट में महिलाओं के लिए काफी कुछ दिया। बजट में वित्त मंत्री ने महिला किसानों के लिए कई घोषणाएं की थीं। इनमें 10 हजार नये कृषि उत्पादक संगठनों का निर्माण, महिला स्वयं सहायता समूह के लिए ब्याज माफी कार्यक्रम का सभी जिलों तक विस्तार, स्वयं सहायता समूह में से एक सदस्य को मुद्रा योजना के तहत एक लाख तक का ऋण, स्वयं सहायता समूह के जन-धन खाता से जुड़े हर सदस्य को 5,000 रुपये तक के ओवरड्राफ्ट की सुविधा और गांवों को बाजार से जोड़ने वाली सड़कों को अपग्रेड किये जाने की योजना सहित कई योजनाएं शामिल हैं।

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अब महत्वपूर्ण यह है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन महिला किसानों के सशक्तिकरण के प्रयासों में मील का पत्थर साबित हो। बिहार जैसे राज्यों की बात करें, तो यहां रोजगार की तलाश में भारी संख्या में पुरुषों को पलायन करना पड़ता है। इससे यहां महिलाओं के कंधे पर घर के साथ-साथ खेत-खलियान की भी जिम्मेदारी आ जाती है। ऐसे में महिला किसानों के सशक्तिकरण के लिए कई स्तर पर सुधारों की आवश्यकता है। इनमें से कुछ निम्म हैं-

1. पांच हजार रूपये के ओवरड्राफ्ट के लिए जनधन खाता की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए जिससे इसका लाभ अधिक से अधिक महिलाओं तक पहुंचे।

2. मुद्रा योजना से स्वयं सहायता समूह के केवल एक सदस्य को जोड़ने की सीमा को बढाया जाना चाहिए क्योंकि कुछ समूहों में 1 से अधिक महिला सदस्य कारोबारी के रूप में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। वहीं, कुछ समूहों के सदस्यों के लोन की आवश्यकता एवं प्राथमिकता अलग है।

3. महिलाओं के लिए ऋण एवं कारोबार से बड़ी मुश्किल है बाजार, बाजार की प्रतिस्पर्धा एवं आपूर्ति श्रृंखला के हरकदम पर मध्यस्थों का वर्चस्व।

4. इस स्थिति में अगर आपने कृषक उत्पादक संगठन बना भी लिया तो उसकी सफलता को लेकर संशय बना रहता है।

5. देश भर में निर्मित अधिकांश कृषक उत्पादक संगठनों की स्थिति यह बताती है कि कृषक उत्पादक संगठन के निर्माण से ज्यादा महत्पूर्ण है बनाये गए कृषक उत्पादक संगठन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त संसाधन, आवश्यक संरचना एवं बाजार से जुड़ाव की व्यवस्था की जाए।

6. कई बार देखा गया है कि सही बाजार से जुड़ाव नहीं होने के कारण महिलाओं को अपने उत्पादन के लिए सही गुणवत्ता का कच्चामाल नहीं मिल पाता है और ना ही उनके उत्पादों को सही मूल्य।

7. अधिकतर यह देखा गया है कि महिला समूह या लघु महिला कारोबारी को अपना उत्पाद मध्यस्थों को काफी कम मूल्य पर बेचना पड़ा।

8. गाँव एवं शहर के अव्यवस्थित बाजार महिलाओं की निजी सुरक्षा के दृष्टी से भी अनुकूल नहीं हैं। खासकर जल्द सुबह और देर शाम का समय इनके लिए सुरक्षित नहीं होता। इसलिए जरुरी है कि इनके लिए ऋण से पहले सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित बाजार सुनिश्चित किया जाए।

9. आज स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए ऋण से पहले उनके कौशल विकास और उत्पादन से पहले इनके लिए बाजार, मूल्य-संवर्धन एवं भण्डारण की व्यवस्था ज्यादा आवश्यक है।

सरकार के साथ-साथ सामजिक संगठनों, व्यापारिक संगठनों, बाजार को नियंत्रित करने वाली विभिन्न समितियों, बैंकिंग संगठनों, व्यापारियों, कृषि आदान एवं कृषि उत्पादन का व्यापार करने वाली कंपनियों तथा व्यापार एवं सहकारिता से जुड़ी सभी इकाइयों का ये कर्तव्य बनता है कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के प्रयासों में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाएं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों को आगे लेकर जाने की जिम्मेदारी पुरे देश की हैं।

(लेखक आर्थिक न्याय, ऑक्स फैम इण्डिया में कार्यक्रम अधिकारी हैं। उपरोक्त लेख में लेखक के निजी विचार हैं, संस्थान इससे सहमत हो यह आवश्यक नहीं है।)

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