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एसआइपी की ही तरह फायदेमंद है सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान

निसंदेह एसआइपी की तरह एसटीपी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 22 Oct 2017 01:03 PM (IST)Updated: Sun, 22 Oct 2017 01:03 PM (IST)
एसआइपी की ही तरह फायदेमंद है सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान
एसआइपी की ही तरह फायदेमंद है सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान

निवेश के लिए एसआइपी तो एक तरीका है ही, लेकिन एकमुश्त निवेश को भी बांटने का एक सुरक्षित तरीका है। इस तरीके को एसटीपी यानी सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान कहा जाता है। हाथ में आए एकमुश्त पैसे को एक ही बार में और एक ही जगह निवेश कर देने से बेहतर है एसटीपी का रास्ता अपनाना। इसमें किया गया निवेश एसआइपी की तरह पूर्ण सुरक्षित तो नहीं है, लेकिन काफी हद तक बाजार में अचानक होने वाली गिरावट से बचाने में यह जरूर सहायक हो सकता है।

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आज की तारीख में हर व्यक्ति थोड़ा बहुत निवेश करना चाहता है। हालांकि निवेश को लेकर किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले तमाम रिस्क फैक्टर उसके फैसले पर असर डालते हैं। ऐसे में जो व्यक्ति म्यूचुअल फंड में बहुत कम रुचि रखता है, वह एसआइपी का रास्ता चुनता है। म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे सरल तरीका एसआइपी है। इसमें हर महीने एक निश्चित राशि का निवेश होता है। इस तरीके से निवेश के कई लाभ हैं।

रिटर्न के नजरिये से देखा जाए तो फंड खरीद का आपका औसत मूल्य ऐसा रहता है, जिससे रिटर्न में बढ़ोतरी होती है। स्टॉक की कीमतों में गिरावट का दौर निवेशक के लिए फायदेमंद साबित होता है। गिरावट वाली स्थिति में एसआइपी का निवेशक उतनी ही राशि में ज्यादा शेयर खरीद पाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि मासिक रूप से निवेश का यह तरीका आमदनी के भी अनुकूल होता है। व्यक्ति अपने वेतन के हिसाब निवेश को जारी रख पाने में सक्षम होता है।

हालांकि कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति के पास किसी अन्य माध्यम से अचानक ज्यादा पैसा आ जाता है। यह पैसा मासिक निवेश के पैटर्न से ज्यादा होता है और व्यक्ति वह पूरा पैसा एक बार में ही निवेश कर देना चाहता है। यह निवेश अक्सर लंबी अवधि के लिए होता है, और लोग इक्विटी में ही निवेश का विकल्प चुनते हैं। इस प्रक्रिया में सबसे आसान तरीका लगता है कि पूरे पैसे को एक ही बार में एक जगह निवेश कर देना। फंड बेचने वाला कोई भी व्यक्ति आपको यही सलाह देगा। ऐसी सलाह देने के पीछे कारण यह भी होता है कि इस तरह का एकमुश्त निवेश करवाने से उसे अच्छा कमीशन मिल जाता है। लेकिन यह तरीका खतरों से भरा है। सोचिए कि अगर आपके निवेश के कुछ समय बाद ही बाजार में 10-20 फीसद की गिरावट आ जाए तो? निश्चित रूप से आपको अच्छा-खासा नुकसान हो जाएगा। और फिर अधिकतम संभावना इस बात की होगी कि आप घबराकर वहां से पैसा निकाल लेंगे।

इस स्थिति का भी बड़ा आसान सा समाधान है, लेकिन बहुत कम निवेशक ही इस बारे में जागरूक होते हैं। इसे एसआइपी के ही परिवार का सदस्य कहा जा सकता है, जिसमें एसआइपी की तरह ही अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद रहती है। एसआइपी की ही तरह इसमें रिस्क भी कम रहता है और इसकी बड़ी खासियत है कि यह एक ही बार के निवेश की प्रक्रिया है। इसे कहते हैं सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान यानी एसटीपी। एसटीपी में नियमित अंतराल पर एक फंड से दूसरे में पैसा ट्रांसफर किया जाता है। यह एसआइपी की तरह ही है, लेकिन इसमें स्रोत के रूप में आपकी मासिक आय की जगह पर किसी अन्य म्यूचुअल फंड में लगी राशि का इस्तेमाल होता है। अब आप सोच रहे होंगे इसका फायदा क्या होता है?

इसका फायदा है, क्योंकि इसमें आप शुरुआत में पैसा डेट फंड में लगाते हैं, जिसमें रिटर्न का अनुमान आसानी से लग सकता है और ज्यादा उतार-चढ़ाव भी नहीं होता। इसे इस उदाहरण से समझते हैं। मान लिया कि आपके पास 10 लाख रुपये हैं, जिन्हें आप इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं। यह पैसा आपको हो सकता है बोनस के रूप में मिला हो या कोई संपत्ति बेचकर या किसी भी और तरीके से। अगर आप इस पूरी राशि को एक ही जगह पर निवेश कर देते हैं, तो इससे इक्विटी बाजार में अचानक आने वाली किसी भी गिरावट से आपको बड़ा नुकसान हो सकता है।

ऐसे में आपको करना ये है कि अपना इक्विटी फंड चुनिए और फिर उसी फंड कंपनी से कोई शॉर्ट टर्म डेट फंड चुनिए। पूरे पैसे को डेट फंड में निवेश कीजिए। फिर फंड कंपनी को अपना निवेश ट्रांसफर करने का निर्देश दीजिए। कंपनी से अपने चुने हुए इक्विटी फंड में हर महीने एक लाख रुपये निवेश करने का निर्देश दीजिए। निवेश 11 या 12 महीने के लिए कीजिए। दस महीने के लिए मत कीजिए, क्योंकि निवेश पर मिलने वाला रिटर्न भी उसमें जुड़ता जाएगा। ऐसा करने से धीरे-धीरे आपका पूरा पैसा इक्विटी फंड में ट्रांसफर हो जाएगा। इस प्रक्रिया में इक्विटी खरीद का औसत मूल्य आपके लिए उस पूरी अवधि के औसत के बराबर होगा, जिससे बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव से आप काफी हद तक बचे रहेंगे।

निसंदेह एसआइपी की तरह एसटीपी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है। पिछले एक दशक में बाजार की गति पर नजर डालेंगे तो आपको अनुभव होगा कि एसटीपी आमतौर पर व्यक्ति को अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचाता है और निवेश को औसत स्तर पर ले आता है, लेकिन यह पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है। अगर बाजार लगातार बढ़ोतरी में रहे, जैसा 2003 से 2008 के दौरान हुआ था और फिर तेजी से गिरे, तो एसटीपी भी आपको नुकसान से नहीं बचा सकता। इक्विटी तो इक्विटी ही है और कोई भी तरीका ऐसा नहीं है कि जो जोखिम को पूरी तरह से खत्म कर दे।

हालांकि अगर पिछले दो दशक के ट्रेंड को देखें तो किसी निवेश को एक से तीन साल के बीच में बांटने से काफी हद तक नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है। इस स्थिति में सबसे अहम सवाल उठता है कि अवधि का चुनाव किसी को कैसे करना चाहिए? इसका फैसला इस बात के आधार पर किया जा सकता है कि निवेश की कुल राशि आपकी कुल संपत्ति के लिहाज से कितना महत्व रखती है। उदाहरण के तौर पर, अगर यह किसी प्रॉपर्टी को बेचकर मिला पैसा है, जिस पर भविष्य की कोई योजना टिकी है, तब तीन से चार साल की अवधि पर्याप्त है।

वहीं, अगर यह बोनस में मिला पैसा है, जो कुछ महीने के वेतन के बराबर है, तब छह महीने भी पर्याप्त हो सकते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि इसका कोई नियम नहीं है- यह रिस्क को समझने की आपकी स्थिति पर निर्भर है।आखिर में एक निवेशक के सामने सबसे बड़ा सवाल है शॉर्ट टर्म इक्विटी मार्केट के जोखिम और लांग टर्म के रिटर्न के संबंध को समझना। जहां तक सवाल है कि अगर हम 2003 से 2008 के दौर की बात करें, यह तो किसी प्राकृतिक आपदा जैसा ही होता है। आप ऐसी स्थितियों के लिए तैयारी तो कर सकते हैं, लेकिन ऐसे हालात से बचने का कोई 100 फीसद सुरक्षित तरीका नहीं है।

(यह लेख धीरेन्द्र कुमार ने लिखा है जो कि वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)


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