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सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी घटने से बढ़ेगी बैंकों की प्रतिस्पर्धा, जमीनी स्तर पर लाभ के साथ होगा समग्र आर्थिक विकास

विनिवेश का उद्देश्य परिसंपत्तियों का निजीकरण करना होता है लेकिन सभी विनिवेश का एकमात्र उद्देश्य निजीकरण नहीं माना जाता है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

By Manish MishraEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 03:59 PM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 09:03 AM (IST)
सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी घटने से बढ़ेगी बैंकों की प्रतिस्पर्धा, जमीनी स्तर पर लाभ के साथ होगा समग्र आर्थिक विकास
सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी घटने से बढ़ेगी बैंकों की प्रतिस्पर्धा, जमीनी स्तर पर लाभ के साथ होगा समग्र आर्थिक विकास

नई दिल्‍ली, डॉ. डी के अग्रवाल। विनिवेश शब्द का तात्पर्य सरकार द्वारा सरकारी परिसंपत्तियों (assets) की बिक्री या लिक्विडेशन से है। दूसरे शब्दों में, जब सरकार केंद्र और राज्य की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों/उद्यमों, परियोजनाओं, या अन्य अचल संपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी को कम करती है, तो इसे विनिवेश प्रक्रिया कहा जाता है। कभी-कभी, विनिवेश का उद्देश्य परिसंपत्तियों का निजीकरण करना होता है, लेकिन सभी विनिवेश का एकमात्र उद्देश्य निजीकरण नहीं माना जाता है।

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यह ध्यान दिया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में कई सार्वजनिक उपक्रमों में कुशल प्रबंधन की कमी, नुकसान की संभावना, संचालन बंद होने और अत्यधिक श्रमशक्ति की प्रवृत्ति देखी गई है। यह स्थिति सरकार को विनिवेश के लिए विवश करती है क्योंकि बाजार की ताकतों के बीच सार्वजनिक उद्यमों के आने से उनके प्रदर्शन सुधार होगा।

विनिवेश को हर पहलू से लाभकारी कहा जाता है क्योंकि विनिवेश की गई यूनिटों के संचालन और उत्पादकता में सुधार लाने का साथ-साथ यह अर्थव्यवस्था के विकास में सकारात्मक योगदान देता है। विनिवेश उस स्थिति को ठीक करता है जहां अक्षम सार्वजनिक उपक्रमों का बोझ उपभोक्ताओं और करदाताओं द्वारा वहन किया जाता है। इस प्रकार, विनिवेश या कम सरकारी हिस्सेदारी से जमीनी स्तर पर अर्थात देश के नागरिकों को लाभ होता है।

भारत में विनिवेश की शुरुआत वर्ष 1991-92 में हुई, जिसमें 31 चुनिंदा सार्वजनिक उपक्रमों को 3,038 करोड़ रुपये में विनिवेश किया गया। 2019-20 में, यह राशि 35 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इस तरह विनिवेश से अब तक कुल 4.7 लाख करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है।

सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में विनिवेश की इसी तर्ज पर चलना, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को कम करना और उनका निजीकरण करने का व्यापक महत्व का है और इससे बहुत लाभ होगा। इससे बैंकों के मुनाफे को बढ़ावा मिलेगा, घरेलू और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और देश के समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

देश में बड़े आकार के बैंक बनाने और बैंकिंग परिचालन (Banking Operations) की वैश्विक स्तर तक पहुंच बढ़ाने के लिए, सरकार ने अगस्त 2019 में सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों को 4 बैंकों में विलय करने का निर्णय लिया। अब,  प्रत्येक स्ट्रेटेजिक क्षेत्र में एक से चार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को रखने की सरकार की नई नीति के आधार पर ऐसी चर्चायें है कि विनिवेश/निजीकरण या बैंकों के एकीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से यह संभवतः बैंकिंग क्षेत्र पर भी लागू होगा।

सरकार द्वारा हिस्सेदारी मे कमी/निजीकरण के परिणामस्वरूप उसके गैर-कर राजस्व में तेजी से वृद्धि होगी। इससे देश की राजकोषीय ताकत को बहाल करने में मदद मिलेगी और COVID-19 के चुनौतीपूर्ण प्रभाव और घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के बीच संसाधनों का स्ट्रेटेजिक रूप से उपयोग हो सकेगा|

बैंकिंग क्षेत्र के मोर्चे पर, विनिवेश/निजीकरण से विनिवेश किए गए बैंकों का प्रशासन बेहतर होगा और कुशल निर्णय लेने में उनकी मदद करेगा। इसलिए, इन बैंकों को अर्थव्यवस्था में अधिक मूल्यवर्धन के लिए सक्षम बनाना आवश्यक है । इसके अलावा, हिस्सेदारी की बिक्री से प्राप्त संसाधनों को व्यावहारिक रूप से सक्षम पीएसबी को मजबूत बनाने, उनकी लिक्विडिटी बढ़ाने और उनकी सहक्रिया प्रदान करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, विनिवेश से बाजार में इन बैंकों की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे इनकी दक्षता, उत्पादकता, लाभप्रदता बढ़ेगी और बदले में निजी विदेशी निवेश आकर्षित होंगे।

इसके अलावा, पीएसबी में सरकारी हिस्सेदारी में कमी से निजी निवेशकों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक गतिशीलता में सुधार होगा। पीएसबी का विनिवेश और निजीकरण से इन इकाइयों का कामकाज और संचालन उन पेशेवर प्रबंधकों को स्थानांतरित हो जाएगा, जो बाजार तंत्र से संचालित होते हैं। बैंकिंग के निजीकरण से ऋण वसूली की प्रक्रिया प्रभावी और शक्तिशाली हो जाएगी। बैंकों के ग्राहक के स्तर पर, बैंकिंग क्षेत्र में निजी निवेशकों की भागीदारी से ग्राहकों को त्वरित सेवा प्रदान करने में दक्षता आएगी।

आर्थिक मोर्चे पर, पीएसबी में सरकार की हिस्सेदारी में कमी से अन्य विकास क्षेत्रों की ओर ध्यान और संसाधनों को स्थानांतरित किया जा सकता है। पीएसबी की हिस्सेदारी की बिक्री/ विनिवेश से प्राप्त धन का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे कि बुनियादी ढांचे में वृद्धि में किया जा सकता है। यह रोजगार के अवसर पैदा करेगा और देश में विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा, जिससे समग्र आर्थिक विकास को मदद मिलेगी। यह धन जब स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में उपयोग किया जाएगा, तो मानव संसाधन विकास को बढ़ावा मिलेगा और अर्थव्यवस्था की वृद्धि तेज हो जाएगी। साथ ही, प्राप्त संसाधनों का उपयोग सार्वजनिक ऋण का भुगतान करने, ब्याज के बोझ को कम करने और वित्तीय बजट के घाटे को कम करने के लिए किया जा सकता है।

संक्षेप में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विनिवेश या हिस्सेदारी को कम करने या निजीकरण करने से बैंकिंग क्षेत्र के स्तर पर जैसे कि मुनाफा, कुशल प्रशासन, निजी निवेश में वृद्धि, ग्राहक के लिए तेज और कुशल सेवाओं की प्राप्ति होगी और आर्थिक स्तर पर सरकार के गैर-कर राजस्व में वृद्धि, राजकोषीय मजबूती की बहाली और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संसाधनों का इस्तेमाल किया जा सकेगा। फिर भी  देश के विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने में पीएसबी की प्रमुख भूमिका के लिए विनिवेश योजना के क्रियान्वयन के लिए एक रणनीतिक (स्ट्रेटजिक) ढांचे के निर्माण की जरूरत है।

(लेखक PHD Chamber of Commerce & Industry के अध्‍यक्ष हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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