राजनीतिक स्थिरता तय करेगी बाजार की दिशा: मोतीलाल ओसवाल
चुनावी वर्ष में सरकारी खर्च बढ़ जाता है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है।
नई दिल्ली (मोतीलाल ओसवाल)। जब भारतीय शेयर बाजारों की बात आती है, तो किसी को यह कहने के लिए माफ किया जा सकता है कि बाजार में तेजी स्थायी और गिरावट अस्थायी हैं!
अगर, हम माइक्रो संकेतों को देखते हैं तो कच्चे तेल उबाल पर है और रुपया कमजोर हो रहा है। इसके बावजूद हमारे बाजार सूचकांक उस अनुपात में नहीं गिर रहे हैं। बैंकिंग और फार्मा सेक्टरों के कमजोर प्रदर्शन के बावजूद कॉर्पोरेट कमाई मजबूत हो रही है और वित्त वर्ष 19 और वित्त वर्ष 20 में 18-20% बढ़ने का अनुमान है। साल भर में कई राज्यों के चुनाव के साथ 2019 में आम चुनाव भी हैं। इसके चलते बाजार को अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता था, लेकिन अगले 12 महीनों में कोई भी 10-11 फीसद रिटर्न की उम्मीद कर सकता था।
चुनावी वर्ष में सरकारी खर्च बढ़ जाता है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है। यह उपभोग और पूंजी निर्माण दोनों के लिए अच्छा है। खपत अच्छी है और ऑटो सेक्टर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से उपभोग को और बढ़ावा मिलेगा और पूंजीगत निवेश को पुनर्जीवित करने में भी मदद मिलेगी। एक अच्छा मानसून की भविष्यवाणियों से भी अर्थव्यवस्था में समग्र वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद मिलनी चाहिए।
मुझे भारत में वित्तीय सेवा क्षेत्र में एक बड़ा अवसर दिखाई देता है, जो तेजी से वैश्विक मानकों की ओर बढ़ रहा है। तेजी से एकीकृत दुनिया में भारतीय शेयर बाजारों को भी वैश्विक स्तर पर क्या हो रहा है उसे प्रतिबिंबित करना होगा।
यदि वैश्विक स्तर पर ट्रेडिंग के लिए विदेशों में स्टॉक एक्सचेंज ने अधिक समय की मांग की है तो इसे भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों को भी पालन करना होगा। अगर, लंबे समय के लिए ट्रेडिंग करने की सहूलियत मिलती है तो यह वैश्विक निवेशकों के साथ भारतीय बाजार के लिए भी बेहतर होगा। ऐसा इसलिए कि अलग-अलग टाइम जोन के निवेशक को लंबे ट्रेडिंग आवर से भारतीय बाजारों में सूचीबद्ध शेयरों को खरीदने और बेचने के लिए अधिक सहूलियत मिलेगी।
हालांकि, लंबे समय तक बाजार में कारोबार के घंटे का असर शेयर ब्रोकरों पर नहीं होगा क्योंकि मैन्युअल रूप से पहले किए गए बहुत सारे काम ऑनलाइन हो गए हैं। पहले, जब उन्हें शेयर खरीदने या बेचने की जरूरत होती थी तो निवेशकों को अपने दलालों को ऑर्डर देने के लिए फोन करना पड़ता था। आज, तकनीक उन्हें किसी भी मानव इंटरफेस के बिना ऑनलाइन अपने खातों को संचालित करने में सक्षम बनाता है।
निजी बैंकों और एनबीएफसी के मामले में पिछले दो तिमाहियों के नतीजों ने कुछ हद तक निवेशकों के आत्मविश्वास को हिलाया था, लेकिन हाल के परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। वित्तीय सेवाओं में वृद्धि काफी बड़ी होने की संभावना है। सब कुछ आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है, जिसमें तेजी से सुधार हो रहा है।
क्रेडिट वृद्धि के सकारात्मक संकेत हैं और हाल ही में एनबीएफसी ने भी अच्छी वृद्धि देखी है। बैंकों के मामले में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में मौलिक समस्याएं जैसे एनपीए और प्रबंधन से संबंधित मुद्दों का निजी क्षेत्र के बैंकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
ब्याज दरें मुद्रास्फीति, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और वित्तीय अनुशासन पर निर्भर हैं। व्यापक आर्थिक संकेतकों के संदर्भ में, मुझे तेल की कीमतों के अलावा कुछ और नहीं दिखता है जो ब्याज दरों के मामले में समस्या पैदा कर सकता है।
कुल मिलाकर, भारतीय बाजारों में निवेश की गति जारी रहनी चाहिए। खुदरा निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड एक अच्छा निवेश माध्यम बना हुआ है।
(यह लेख मोतीलाल ओसवाल, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड ने लिखा है।)