नए नहीं बल्कि जांचे-परखे निवेश के पुराने सिद्धांत अहम
वैल्यू रिसर्च ने व्यावहारिक स्तर पर वही सलाह दी है जो निवेश के लिए आवश्यक है। बेशक कभी-कभी रणनीति बदलने की आवश्यकता हो सकती है
कई बार मैं जो भी लिखता हूं वह महज दोहराव ही होता है। वास्तव में मैंने कई बार कॉलम और एडिटोरियल लिखे हैं जो एक जैसे ही थे। शब्द और लहजा भले ही अलग रही हो लेकिन सिद्धांत और तथ्य एक समान थे।
यह अच्छी बात है। मैं खुश हूं कि हमने वहीं बातें कहीं जो हम पहले कह चुके थे और आप भी ऐसा ही करते। एक ही बात को बार-बार कहने को सहारने के पीछे भी कारण हैं। सोचो, अगर बात इसके विपरीत होती तो क्या होता। यदि शेयर बाजार और इक्विटी फंडों की एनएवी में गिरावट आ रही है तो म्यूचुअल फंड इनसाइट क्या कोई अलग सलाह देते?
किसी समय मैं कहूं कि आपको अपनी समूची फंड होल्डिंग बेच देनी चाहिए और अपना पैसा फिक्स्ड डिपॉजिट में डाल देना चाहिए क्योंकि जोखिम ज्यादा है। दूसरी बार मैं कहने लगूं कि आपको ऐसा फंड चुनना चाहिए जो सबसे ज्यादा गिर चुका है। आपको ऐसे फंड में अपना पूरा पैसा लगा देना चाहिए क्योंकि उसमें तेजी आने की उम्मीद है। तीसरी बार मैं कहूं हूं कि आपको डेरिवेटिव्स में जाना चाहिए और ऑप्शन खरीदने चाहिए ताकि आप इक्विटी में किसी भी प्रतिकूल हलचल को कवर कर सकें। किसी और मौके पर मेरी सलाह हो कि आपको अपनी समूची होल्डिंग बेच देनी चाहिए क्योंकि संकट के दौर में सोना सबसे सुरक्षित निवेश है।
इस तरह की सलाह देना और लिखना हमारे लिए काफी रोमांचक और दिलचस्प होगा। बहुत से पाठकों के लिए यह रोचक हो सकता है। वास्तव में यह सब बहुत ही सामान्य है क्योंकि तमाम निवेश सलाहकार और प्रकाशन यही करते हैं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करता हूं। वस्तुत: ये निवेश रणनीतियां हैं जिनकी सलाह तमाम लोग देते हैं। आपने भी इनके बारे में सुना होगा। हालांकि मेरा मानना है कि वैल्यू रिसर्च की खासियत यह है कि हम हमेशा बिना चूके समान स्थितियों में एक ही बात कहते हैं। मैं हर जगह, हर मौके पर एक ही बात कहेंगे।
एक ही सलाह देंगे। फिर चाहे कोई लेख हो या फिर कोई परिचर्चा। वैल्यू रिसर्च ने व्यावहारिक स्तर पर वही सलाह दी है जो निवेश के लिए आवश्यक है। बेशक कभी-कभी रणनीति बदलने की आवश्यकता हो सकती है। अलग-अलग मौकों पर विभिन्न फंड अच्छा या बुरा प्रदर्शन कर सकते हैं। सेबी जो नियामकीय बदलाव करता है, उन पर और दूसरे उभरने वाले नए पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन निवेश के लिए कोई नई संकल्पना या सिद्धांत नहीं हैं।
कोई नया सिद्धांत न होने पर भी उन्हीं बातों को दोहराने की क्या आवश्यकता है? यह बड़ी अजीब बात है कि हमें उन्हें मूल सिद्धांतों पर लगातार जोर देते रहने की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत भी लगातार आवाजें उठती रहती हैं कि मूल सिद्धांत बार-बार दोहराने के पीछे निवेश सेवाएं देने वालों के व्यावसायिक हित छिपे हैं। कई बार इस शोर में सरल, समझदारी भरे और आजमाए गए सिद्धांत गुम हो जाते हैं। वास्तव में जब दीवाली या नए साल जैसे किसी मौके पर विशेष लेख या परिचर्चा के लिए मुझसे अनुरोध किया जाता है तो मेरे लिए कुछ भी खासा कठिन हो जाता है। अगर आप 2019 की रणनीति के बारे में मुझसे पूछे तो मेरा ईमानदारीपूर्ण जवाब होगा कि आप वहीं रणनीति अपनाएं जो आपने 2015 या 2017 में अपनाई और वही 2030 में अपनाएंगे।
(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार हैं।)