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आर्थिक माहौल को बदलने में जुटी सरकार, उपायों की घोषणा से बढ़ी तेजी की उम्मीद

GDP Growth Rate घटने से लोगों की आमदनी खपत और निवेश सब पर असर पड़ रहा है। जिन सेक्टरों पर इस मंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है वहां पर नौकरियां घटाने के ऐलान हो रहे हैं।

By Manish MishraEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 12:04 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 12:04 PM (IST)
आर्थिक माहौल को बदलने में जुटी सरकार, उपायों की घोषणा से बढ़ी तेजी की उम्मीद
आर्थिक माहौल को बदलने में जुटी सरकार, उपायों की घोषणा से बढ़ी तेजी की उम्मीद

नई दिल्‍ली, राहुल लाल। ताजा अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी वृद्धि दर पांच प्रतिशत रह गई है। विकास दर का यह स्तर छह साल में न्यूनतम है। ज्ञात हो कि जीडीपी विकास दर पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 5.8 फीसद थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विनिर्माण की वृद्धि दर मात्र 0.6 प्रतिशत है, जबकि पिछले साल समान तिमाही में यह 12.1 प्रतिशत थी। जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत और निवेश, सब पर असर पड़ रहा है। जिन सेक्टरों पर इस मंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है, वहां पर नौकरियां घटाने के ऐलान हो रहे हैं।

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एक दौर में प्रभावशाली निजी विमान सेवा कंपनी जेट एयरवेज आज बंद हो चुकी है। एयर इंडिया काफी घाटे में चल रही है। बीएसएनएल आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने हाल में बाजार से एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेकर कर्मचारियों को वेतन दिया। भारतीय डाक सेवा का वार्षिक घाटा 15 हजार करोड़ हो चुका है। देश की सबसे बड़ी कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कंपनी ओएनजीसी का अतिरिक्त कैश रिजर्व घट रहा है। सरकार द्वारा गैर जरूरी अधिग्रहण के चलते आज यह कंपनी एक बड़े कर्ज के दबाव में आ गई है।

खपत में गिरावट : विकास दर घटने से लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ रहा है। बाजार की एक बड़ी शोधकर्ता कंपनी की रिपोर्ट कहती है कि तेजी से खपत वाले सामान एफएमसीजी यानी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स की बिक्री की विकास दर इस साल जनवरी से मार्च के बीच 9.9 प्रतिशत थी, लेकिन इसी साल अप्रैल से जून की तिमाही में ये घटकर 6.2 फीसदी रह गई। एफएमसीजी के उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि लोग अब अनिवार्य आवश्यकताओं में भी कटौती कर रहे हैं।

ग्राहकों की खरीदारी के उत्साह में कमी का बड़ा असर ऑटो उद्योग पर पड़ा है। इस सेक्टर में बिक्री घटी है और नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती हो रही है। भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी की जुलाई में पिछले साल के मुकाबले कारों की बिक्री में 36 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस कारण टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों को गाड़ियों के निर्माण में कटौती करनी पड़ी है। नतीजन कल-पुर्जे और दूसरे तरीके से ऑटो सेक्टर से जुड़े हुए लोगों पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। 

उदाहरण के लिए जमशेदपुर का टाटा मोटर्स का प्लांट दो माह से 30 दिनों में केवल 15 दिन ही चलाया जा रहा है। इससे जमशेदपुर और आस-पास के इलाकों में 1,100 से ज्यादा कंपनियां बंदी के कगार पर खड़ी हैं, जो टाटा मोटर्स को कई चीजों की सप्लाई कर रही थीं। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ऑटोमोबाइल सेक्टर की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि विनिर्माण में इसकी हिस्सेदारी करीब 50 फीसद है।

निर्यात में लगातार गिरावट : आमतौर पर जब घरेलू बाजार में खपत कम हो जाती है तो भारतीय उद्योगपति अपना सामान निर्यात करते हैं और विदेश में बाजार तलाशते हैं। अभी स्थिति यह है कि विदेशी बाजार में भी भारतीय सामान के खरीदार का विकल्प बहुत सीमित है। पिछले दो सालों से जीडीपी विकास दर में निर्यात का योगदान घट रहा है। मई माह में निर्यात की विकास दर 3.9 प्रतिशत थी, लेकिन इस साल जून में निर्यात में 9.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। ये 41 महीनों में सबसे कम निर्यात दर है। चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर का विस्तार भारत के साथ भी हो रहा है। 

ऐसे में निर्यात वृद्धि के लिए विशिष्ट रणनीति की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए चीन में अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ने से एक रिक्तता पैदा हुई है, ऐसे में भारत लगभग 57 प्रकार के उत्पादों को चीन में बेच सकता है, जो चीन के साथ हमारे एकपक्षीय व्यापार में संतुलन बना सकता है। हम लोग देख सकते हैं कि किस तरह ट्रेड वॉर के संकट को वियतनाम और बांग्लादेश ने अपने लिए अवसर में बदला। जब चीन ने टेक्सटाइल सेक्टर को छोड़कर अधिक मूल्य वाले उत्पादों पर जोर दिया तो उस जगह को भरने के लिए बांग्लादेश और वियतनाम तेजी से आए, वहीं भारतीय टेक्सटाइल इसका लाभ नहीं उठा सका। 

इसी तरह वियतनाम ने ट्रेड वॉर का लाभ ‘मोबाइल निर्माण’ क्षेत्र में भी लिया। दुनिया भर में स्मार्टफोन का कारोबार 300 बिलियन डॉलर का है। इसका 60 प्रतिशत हिस्सा चीन के पास है। ट्रेड वॉर के बाद चीन के मोबाइल निर्माता कम जोखिम वाले क्षेत्र की तलाश में थे। वियतनाम ने इसके लिए पूर्व तैयारी की थी। अंतत: अब स्मार्टफोन के ग्लोबल निर्यात में वियतनाम की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत हो गई है, जबकि भारत की हिस्सेदारी नगण्य है।

बचत में गिरावट : अर्थव्यवस्था का विकास धीमा होने का रियल इस्टेट सेक्टर पर भी बुरा असर पड़ा है। एक आकलन के अनुसार इस वक्त देश के 30 बड़े शहरों में 12.76 लाख मकान बिकने को पड़े हुए हैं। कोच्चि में मकानों की उपलब्धता 80 महीनों के उच्चतम स्तर पर है, जयपुर में 59 महीनों, लखनऊ में 55 महीनों और चेन्नई में ये 75 महीनों के अधिकतम स्तर पर है। इसका ये मतलब है कि इन शहरों में जो मकान बिकने को तैयार हैं, उनके बिकने में पांच-छह वर्ष लग रहे हैं। 

आमदनी बढ़ नहीं रही है और बचत की रकम बिना बिके मकानों में फसी हुई है। वित्त वर्ष 2011-12 में घरेलू बचत, जीडीपी का 34.6 प्रतिशत थी, लेकिन अब यह बचत दर जीडीपी के अनुपात में घटकर 30 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले 20 वर्षो में सबसे कम है। घरेलू बचत की जो रकम बैंकों के पास जमा होती है, उसे ही बैंक कारोबारियों को कर्ज के तौर पर देते हैं। जब भी बचत में गिरावट आती है, बैंकों के कर्ज देने में भी कमी आती है। जबकि कंपनियों के विकास और नए रोजगार के लिए कर्ज का अहम रोल है। बैंकों के कर्ज देने की विकास दर भी घट गई है। इस वर्ष अप्रैल में कर्ज देने की विकास दर 13 प्रतिशत थी, जो मई में गिरकर 12.5 फीसद ही रह गई।

विदेशी निवेश प्रभावित : अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल हों, तो इसका असर विदेशी निवेश पर भी पड़ता है। अप्रैल 2019 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 7.3 अरब डॉलर था, लेकिन मई माह में यह घटकर 5.1 अरब डॉलर ही रह गया। रिजर्व बैंक ने जो अंतरिम आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक देश में आ रहा कुल विदेशी निवेश, जो शेयर बाजार और बॉन्ड मार्केट में निवेश किया जाता है, वह अप्रैल में तीन अरब डॉलर था। लेकिन मई में यह घटकर 2.8 अरब डॉलर ही रह गया था।

हालांकि, विगत माह भारत में सऊदी अरब की कंपनी ‘अरैमको’ ने 15 अरब डॉलर के निवेश समझौता पर हस्ताक्षर किया। यह कंपनी रिलायंस इंडस्‍ट्रीज लिमिटेड की ऑइल-टू-केमिकल का 20 प्रतिशत शेयर खरीदेगी। इसे भारत में अब तक का सबसे बड़ा निवेश बताया जा रहा है। इससे पहले एस्सार की तेल व गैस कंपनी में रूस की रॉसनेफ्ट कंपनी ने 12 अरब डॉलर का निवेश किया था। एक तरह से इस डील को प्रमुख तेल उत्पादक सऊदी अरब और प्रमुख तेल उपभोक्ता भारत के विशिष्ट डील के रूप में देखा जा रहा है। यह मंदी के बीच एक खुशखबरी है।

कृषि विकास दर की चुनौती : पिछले पांच वर्षो में औसत कृषि विकास दर 2.7 प्रतिशत रही। प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी। इसके लिए नीति आयोग के तत्वावधान में अशोक दलवाई समिति का गठन किया गया, जिसने कृषि आय दर को दोगुना करने के लिए कृषि विकास दर को 12 प्रतिशत तक पहुंचाने की सिफारिश की। परंतु कृषि विकास दर 12 प्रतिशत के स्थान पर ताजा तिमाही आंकड़ों में केवल दो प्रतिशत है। मालूम हो कि कृषि क्षेत्र देश में सबसे अधिक रोजगार प्रदान करता है। ऐसे में घरेलू मांग पैदा करने के लिए इस सेक्टर का विकास अहम है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 अगस्त को आर्थिक मंदी के बीच अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ‘32 सूत्रीय’ उपायों की घोषणा की थी। इसमें सर्वप्रथम कदम फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआइ) और घरेलू इक्विटी इन्वेस्टर्स पर बढ़ाए गए ‘सुपर रिच सरचार्ज’ को वापस लेना था। माना जा रहा था कि पांच जुलाई को घोषित बजट में सुपररिच सरचार्ज को लगाने से अधिकतम 1,400 करोड़ की आमदनी होती, परंतु सरकार के इस निर्णय से भारत से करीब 25 हजार करोड़ रुपये निवेश की राशि दूसरे देशों की तरफ चली गई, जबकि इस अफरातफरी में मार्केट कैपिटलाइजेशन में लगभग 15 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। ऐसे में सरकार ने इस क्षेत्र में बजट के प्रमुख भूल में सुधार कर लिया, अन्यथा इससे और भी अधिक नुकसान हो सकता था।

इसके अतिरिक्त सरकार ने बैंक लोन और रेपो रेट को जोड़ने की भी घोषणा की। पिछले दिसंबर से अब तक रेपो रेट में चार बार कटौती की गई है, लेकिन स्वयं आरबीआइ का कहना है कि यह कटौती उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच रही है। ऐसे में यह घोषणा भी महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त सबसे अहम घोषणा यह थी जिसमें कहा गया कि पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) का लंबित वस्तु एवं सेवा कर बकाया 30 दिन की तय अवधि में निपटाया जाएगा। सरकार ने वाहन उद्योग को राहत देने के लिए उच्च पंजीयन शुल्क को टाल दिया गया है तथा गाड़ियों के सरकारी खरीद पर रोक अब हटा दी गई है। इसके साथ ही सरकार अब नई पॉलिसी लाने वाली है, ताकि गाड़ियों की मांग को बढ़ाया जा सके।

इस बीच शनिवार को वित्त मंत्री ने निर्यात और हाउसिंग सेक्टर के लिए 70 हजार करोड़ रुपये का बड़ा पैकेज घोषित किया है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अगले वर्ष पहली जनवरी से एक नई स्कीम- रेमिशन ऑफ ड्यूटीज ऑर टैक्सेस ऑन एक्सपोर्ट प्रोडक्ट (आरओडीटीईपी) शुरू करने और दुनिया भर में विख्यात दुबई शॉपिंग फेस्टिवल की तर्ज पर देश में चार ‘मेगा शॉपिंग फेस्टिवल’ आयोजित करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही हाउसिंग क्षेत्र को संकट से उबारने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का नया फंड बनाने का निर्णय लिया है, जिसका प्रयोग अधूरे फ्लैट्स को शीघ्र पूरा करने के लिए किया जाएगा। इससे लगभग 3.5 लाख फ्लैट खरीदारों को राहत मिलने की उम्मीद है।

सरकार के ये उपाय दर्शाते हैं कि अब सरकार संकट को नकारने के दौर से बाहर आ चुकी है और यह मान रही है कि अर्थव्यवस्था के समक्ष गंभीर चुनौतियां हैं। सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि इस स्थिति में कई बिजनेस कंपनियां नौकरी जाने का भय दिखाकर बड़ी रियायतें वसूलने में लगी हैं, ऐसे में सरकार कंपनियों को राहत देने के स्थान पर स्वयं बाजार में मांग उत्पन्न करने का प्रयास करे। इसके लिए कृषि क्षेत्र में किसानों को डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर जैसी स्कीम काफी अच्छी है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में मांग पैदा होगी। इसी तरह आधारभूत संरचना और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के व्यय में वृद्धि करने से भी लोगों की क्रय क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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