ऊंची रेटिंग वाले Mutual Funds में भी आ आती है समस्या, एक्सपर्ट से जानिए रेटिंग का गणित
Mutual Funds सबसे पहली बात कि रेटिंग विशुद्ध रूप से अंकगणित है। यह आंकड़ों पर आधारित कवायद है जिसमें सभी फंडों को एक ही पैमाने पर परखा जाता है।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। पिछले कुछ सप्ताह से पाठक मुझसे एक सवाल पूछ रहे हैं। उनका सवाल ऐसे म्यूचुअल फंड के बारे में है, जिनको वैल्यू रिसर्च ने अच्छी रेटिंग दी थी। मगर इस वक्त वे समस्या का सामना कर रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं है। तीन दशक हो गए रेटिंग शुरू हुए और उसी समय से पाठक हमसे अक्सर सवाल करते रहते हैं कि बहुत अच्छी रेटिंग वाले फंड खराब प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं। डेट फंड के मामले में ऐसा कई मौकों पर हुआ है कि बहुत ऊंची रेटिंग वाले डेट फंड एकाएक क्रेडिट क्वालिटी या लिक्विडिटी की समस्या का सामना करने लगे और हाल में ऐसा कुछ फंडों के साथ हुआ है।
मेरा जवाब हमेशा सरल और एक ही रहता है। पिछले दो-तीन दशकों में मेरे जवाब में जरा भी बदलाव नहीं आया है। पाठकों के लिए यह समझना जरूरी है कि रेटिंग सिस्टम क्या है। यह आपके काम कैसे आ सकता है। किस चीज के लिए आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं और किस चीज के लिए नहीं कर सकते हैं। खासतौर पर आपके लिए यह समझना शायद सबसे अहम है कि रेटिंग का इस्तेमाल आप किस चीज के लिए नहीं कर सकते हैं।
सबसे पहली बात कि रेटिंग विशुद्ध रूप से अंकगणित है। यह आंकड़ों पर आधारित कवायद है जिसमें सभी फंडों को एक ही पैमाने पर परखा जाता है। मेरी या वैल्यू रिसर्च में किसी की राय या फैसले की कोई भूमिका रेटिंग में नहीं होती है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि सभी आंकड़े अतीत यानी बीते महीनों या वर्षो के होते हैं। हम भविष्य नहीं जान सकते हैं। तो एक तरह से रेटिंग इस बात का आकलन है कि फंड ने बीते समय में कैसा प्रदर्शन किया है। आमतौर पर यह माना जाता है कि अतीत आपको भविष्य का सही रास्ता दिखा सकता है। कभी-कभी ऐसा नहीं होता है।
निवेश के लिए किए जाने वाले रिसर्च के हर तरीके के बारे में यह बात सच है। इसमें यह मायने नहीं रखता है कि आप किस तरह के निवेश की बात कर रहे हैं। दूसरी बात है कि फंड की रेटिंग इस बात पर नहीं होती है कि फंड कितना अच्छा रहा है। उसकी रेटिंग इस बात पर होती है कि फंड अपनी कैटेगरी के दूसरे फंडों की तुलना में कितना अच्छा रहा है। फंड रेटिंग में इस बात का बहुत गहरा असर होता है। मान लीजिए कि किसी कैटेगरी में सारे फंड ही घटिया या खराब हैं तो सबसे कम घटिया या खराब फंड को फाइव स्टार रेटिंग मिलेगी। और इसका उलटा भी हो सकता है। जैसे, अगर किसी कैटेगरी में सारे फंड बहुत शानदार हैं तो सबसे कम शानदार फंड को वन स्टार मिलेगा। निश्चित तौर पर हकीकत में ऐसा होता नहीं है।
यह हमेशा होता है कि कुछ बहुत शानदार फंड होते हैं और कुछ बहुत घटिया पंड होते हैं। और इनके बीच में समूची रेंज होती है।अब आते हैं सबसे अहम बात पर। अगर फंड की कैटेगरी आपकी जरूरतों के लिहाज से सही नहीं है तो इस बात का कोई मतलब नहीं है कि आपका फंड फोर स्टार है या फाइव स्टार। ये सारे फंड आपकी जरूरतों को पूरी करने में आपकी मदद नहीं कर पाएंगे। हाल के वर्षो में यह बड़ी समस्या रही है। जिन लोगों को इक्विटी हाइब्रिड फंड में निवेश करना चाहिए वे स्मॉलकैप फंड चुन लेते हैं। और जिनको लिक्विड या ओवरनाइट डेट चुनना चाहिए वे क्रेडिट रिस्क फंड चुन लेते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि फिर रेटिंग का इस्तेमाल केसे करें। फंड में निवेश करने की प्रक्रिया का सबसे शुरुआती बिंदु है कि आप अपने लिए सही प्रकार के फंड का चुनाव करें। इसके बाद अगले कदम के तौर पर रेटिंग का इस्तेमाल नेगेटिव फिल्टर के तौर पर करें। इसके बाद आप फंड चुनने की प्रक्रिया शुरू करें। इसमें अपने मकसद और तमाम पैमाने पर फंड का आकलन सावधानी से करना शामिल है।तो क्या हर फंड निवेशक इस पूरी प्रक्रिया को सावधानी से करता है? निश्चित तौर पर ऐसा नहीं होता है। और यही वजह है कि हमने पिछले वर्षो के दौरान म्यूचुअल फंड ईयर बुक जैसे उत्पाद लांच किए हैं।
यह प्रोडक्टर समय के साथ बेस्ट फंड्स ग्रोथ, इनकम एंड शॉर्ट टर्म गोल्स के तौर पर सामने आया है। इसके अलावा वैल्यू 50 भी लांच किया गया जो बाद में फंड विशेषज्ञों की पसंद के तौर पर सामने आया। ये प्रोडक्ट टेक्निकल कैटेगरीज के बजाय निवेशकों के लक्ष्यों को लेते और बहुत कम संख्या में ऐसे फंड सामने रखते हैं जो निवेशकों के लक्ष्य को पूरा करने में मदद कर सकता है। एक कैटेगरी में फंड की संख्या 100 से अधिक हो सकती है लेकिन लक्ष्यों की संख्या बहुत कम होती है। रेटिंग को रिसर्च के लिए प्रोफेशनल और टेक्निकल टूल ही रहने दें। इंडिविजुअल निवेशकों को उनके लक्ष्य पूरे करने में सक्षम रिकमेंडेशन पर फोकस करना चाहिए।
इंट्रोकिसी म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले उसकी रेटिंग के बारे में पड़ताल करना बेहद स्वाभाविक है, और निवेशकों को ऐसा करना भी चाहिए। लेकिन निवेशक यह समझने में अक्सर चूक जाते हैं कि किसी फंड की रेटिंग बहुत अच्छी होने का यह मतलब कतई नहीं है कि उसका प्रदर्शन भी अनिवार्य रूप से उतना ही दमदार हो। फंड की रेटिंग कई बार 'अंधों में काना राजा' जैसी भी होती है कि जहां सब अंधे हैं, वहां एक आंख वाला भी राजा बन जाता है। तात्पर्य यह कि अगर किसी कैटेगरी या सेग्मेंट में सभी फंड्स का प्रदर्शन कमजोर हो, वहां सबसे कम कमजोर फंड ही बेहतरीन होगा। तो फिर फंड की रेटिंग के मायने क्या हैं? ऐसा नहीं कि फंड्स की रेटिंग कुछ कहती नहीं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि ऐसा भी नहीं कि रेटिंग ही सब कुछ कहती है।
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)