बाजार में तेजी की वजह हो सकती है लिक्विडिटी, क्या यह लंबी अवधि में बाजार को ऊपर ले जाने के लिए पर्याप्त है?
इक्विटी मार्केट में तेजी की वजह लिक्विडिटी है। यह इस बात को कहने का एक अलग तरीका है कि जब तक बाजार में शुद्ध रकम नहीं आती है तब तक सामान्य तौर पर स्टॉक कीमतें ऊपर नहीं जाएंगी।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। एक निवेशक के तौर पर यह जानना अहम है कि बाजार में रकम का प्रवाह क्यों है? रकम किस तरह के स्टॉक्स में आ रही है? जिनकी रकम बाजार में आ रही है उनका भविष्य का नजरिया क्या है? रकम बाजार में तेजी देखकर आ रही है या निवेश करने वाले अवसर देख रहे हैं? मुनाफा या नुकसान का अनुमान इन बातों पर गौर करके ही लगाया जा सकता है।
बाजार में पिछले कुछ समय की तेजी की वजह लिक्विडिटी हो सकती है, लेकिन लंबी अवधि में सिर्फ लिक्विडिटी ही बाजार को ऊपर नहीं ले जा सकती। इक्विटी मार्केट में तेजी की वजह लिक्विडिटी है। यह इस बात को कहने का एक अलग तरीका है कि जब तक बाजार में शुद्ध रकम नहीं आती है तब तक सामान्य तौर पर स्टॉक कीमतें ऊपर नहीं जाएंगी। यहां शुद्ध रकम का मतलब बाजार में खरीद के तौर पर आने वाली रकम और बिक्री के तौर पर जाने वाली रकम में अंतर से है।
जैसे, बाजार में 100 रुपये की खरीद हुई और 80 रुपये की बिक्री, तो बाजार में शुद्ध राशि सिर्फ 20 रुपये आई। अगर यह सही है तो इसका उलटा भी सही है। जब बाजार में कोई शुद्ध रकम नहीं आ रही है तो बाजार एक स्तर के आसपास ही बना रहता है और जब बाजार से शुद्ध रकम बाहर जाती है तो बाजार गिरता है। वास्तव में यह कहना कि रकम बाजार में आ रही है, इसलिए बाजार बढ़ रहा है, एक ही बात को दो अलग तरीके से कहना है।
पिछले सप्ताह तक बाजार में तेजी का दौर चल रहा था तो लोग अटकलें लगा रहे थे कि ऐसा क्यों है। निश्चित तौर पर कोरोना का तात्कालिक असर उतना ज्यादा नहीं रहा है जितना होने की आशंका जताई जा रही थी। लेकिन कोराना की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। दुनियाभर में कंपनियां और लोग कोरोना से होने वाले नुकसान को लेकर डरे हुए हैं। ऐसे में शेयर बाजार की मजबूती थोड़ी अनुपयुक्त है।
इन सभी विषमताओं का ही नतीजा है कि निवेशकों का बड़ा हिस्सा बाजार में जारी तेजी से चिंतित है और साफ है कि ऐसा लिक्विडिटी की वजह से हो रहा है। पश्चिमी देशों के केंद्रीय बैंकों के पास एक ही ट्रिक बची है। यह ट्रिक है - अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादा से ज्यादा रकम डालना। मौजूदा हालात में केंद्रीय बैंकों को भी गलत नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जितने बड़े पैमाने पर सिस्टम में रकम डाली जा रही है वह कुछ ज्यादा ही है।
यूएस फेडरल रिजर्व की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में उपलब्ध कुल डॉलर का 40 फीसद पिछले वर्ष पहली मार्च के बाद जारी किया गया है। और यह मात्रा हर दिन बढ़ रही है। यह बहुत बड़ी रकम है और यह रकम कहीं तो जाएगी। इस तर्क के जवाब में आप मीडिया और एनॉलिस्ट की एक राय देख सकते हैं कि अकेली लिक्विडिटी लंबे समय तब बाजार में तेजी नहीं बनाए रख सकती है। बैंक ऑफ जापान इस बात का एक बड़ा उदाहरण है। बैंक यह तरीका दशकों से अपना रहा है, लेकिन इसका असर कुछ खास नहीं रहा है। इसके अलावा भी कई उदाहरण हैं, जो यह बताते हैं कि इक्विटी मार्केट में तेजी बनाए रखने में अकेली लिक्विडिटी सक्षम नहीं है।
जो भी हो, लिक्विडिटी को लेकर किसी अकादमिक बहस में एक निवेशक के तौर पर उलझना हमारा काम नहीं है। हम व्यावहारिक निवेशक हैं और हम यहां कमाने के लिए हैं। इस नजरिये से लिक्विडिटी को लेकर की जा रही बहस का कोई आधार नहीं है। बाजार की ग्रोथ पौधे की तरह है। पौधे के लिए मिट्टी, बीज और मौसम, उर्वरक और पानी - ये सभी चीजें जरूरी हैं। लिक्विडिटी तो बस उर्वरक है। पौधे को पेड़ बनने के लिए और दूसरी चीजें भी सही होनी चाहिए। बहरहाल, हमारा काम इन सब चीजों के बारे में चिंता करना नहीं है। हम यहां जड़ें जमाने और फल देने वाले पेड़ों की पहचान करने और इसकी जानकारी साझा करने के लिए हैं।
(लेखक वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डॉट कॉम के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)