ULIP के बाद भी है क्या लाइफ इंश्योरेंस लेने की जरूरत? पढ़िए एक्सपर्ट की सलाह
ULIP को अक्सर बीमा की सभी जरूरतें पूरी करने वाला बताया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि जीवन बीमा रकम के मामले में यह पर्याप्त नहीं है
नई दिल्ली (धीरेंद्र कुमार)। यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अगर आपको सही मायने में रियल इंश्योरेंस या वास्तविक बीमा चाहिए, तो करीब-करीब पूरी, या कहें तो पूरी ही तनख्वाह इसमें लगा देनी पड़ेगी। बीमा से मेरा तात्पर्य वही है, जिसके लिए कोई भी व्यक्ति बीमा लेता है - वह रकम, जो आपके जाने के बाद आपके परिवार को मिलनी चाहिए।
सामान्य नियम यह है कि किसी भी व्यक्ति की बीमा की रकम उसकी 10 वर्षों की आय के बराबर होनी चाहिए। लेकिन दुनियाभर में यूलिप के लिए एक ही नियम है। वह यह कि उसमें बीमा की रकम 10 वर्षों की कुल आय के बराबर नहीं, बल्कि 10 वर्षों के दौरान यूलिप के प्रीमियम के बराबर होती है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि अगर आपको 10 वर्षों की आय के बराबर वाला जीवन बीमा चाहिए, तो आपकी पूरी की पूरी आय तो यूलिप की किस्त भरने में ही चली जाएगी। इस नियम की कोई काट नहीं है।
भले ही बीमा कर्मचारी या विशेषज्ञ कुछ भी कह लें, हकीकत यही है कि अगर आप परिवार वाले हैं, तो जो यूलिप आय के 10 गुना से कम बीमा वाला हो, उसमें एक पैसा भी मत लगाइए। एक बार आपका परिवार सुरक्षित हो जाए, फिर तो निवेश के साथ खेलने और उसे देखने का नजरिया ही बिलकुल अलग होता है।
चलिए, इसी बात को आंकड़ों की जुबानी विस्तार से समझते हैं। मान लीजिए कि टैक्स भुगतान करने के बाद आपकी सालाना आय 10 लाख रुपये है। ऐसे में आपकी जीवन बीमा रकम कम से कम एक करोड़ रुपये होनी चाहिए। अब, जब आप यह सोचते हैं कि भगवान ना करे लेकिन आपकी अचानक मौत के बाद परिवार का खर्चा चलते रहने के लिए कितनी रकम की जरूरत होगी, तो लगेगा कि एक करोड़ रुपये की रकम काफी नहीं है। ज्यादातर परिवारों की जरूरतें इससे कहीं ज्यादा होगी। यकीन नहीं आए, तो खुद ही जमीनी जरूरतों के साथ कुछ वर्षों का बजट बनाकर देख लीजिए।
अच्छी बात यह है कि अगर ऐसा ही एक प्लान आप टर्म इंश्योरेंस यानी सावधि-बीमा के जरिये लेते हैं, तो एक करोड़ रुपये की जीवन बीमा रकम बुरी नहीं है। लेकिन बुरी बात यह है कि अगर आप इसे यूलिप के जरिये लेने जाते हैं, तो उसके लिए आपको हर महीने की तनख्वाह अपने यूलिप प्रीमियम में झोंक देनी पड़ेगी। फिर आपकी रोजमर्रा की जिंदगी चलेगी कैसे?
अगर यही सवाल आप किसी बीमा कर्मचारी से करें, तो वे आपको बताएंगे कि यूलिप में भी तो इंश्योरेंस के प्रावधान हैं ही। हालांकि सैद्धांतिक रूप से यह बात सही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि समझदार बचतकर्ता को पहले पर्याप्त जीवन बीमा लेना चाहिए। अगर आप ऐसा ही करते हैं तो पता चलेगा कि आपकी सबसे पहली जरूरत एक ही योजना से पूरी हो सकती है और वह है टर्म इंश्योरेंस प्लान। टर्म इंश्योरेंस ले लेने के बाद आप निवेश के कई अन्य विकल्पों पर ज्यादा बेहतर तरीके से विचार कर सकते हैं।
यही तरीका बेहतर क्यों है? इसलिए क्योंकि किसी भी निवेश को लिक्विडिटी यानी तरलता, अस्थिरता, सुरक्षा, पारदर्शिता, रिटर्न और बदलते वक्त के साथ बदलती उपयोगिता जैसी कसौटियों पर परखा जाना ही चाहिए। किसी भी इंसान की बचत जरूरतें बदलते वक्त के साथ बदल जाती हैं। कभी-कभी परिस्थितियां बदलने के साथ आप एक प्रकार के निवेश से कुछ रकम निकालकर उसे दूसरे प्रकार के निवेश में डालना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, आपने किसी ऐसी योजना में निवेश किया है जिसमें रिटर्न तो बहुत बढ़िया है, लेकिन जोखिम भी उतना ही ज्यादा है। ऐसे में आप उसमें से कुछ रकम निकालकर किसी ऐसी सुरक्षित योजना में लगाते हैं जिसमें रिटर्न भले ही थोड़ा कम हो, लेकिन वह सुरक्षित हो। या, कभी ऐसा भी हो सकता है कि एकाएक नौकरी पर कोई जोखिम आ जाए और एक-दो वर्षों के लिए निवेश बंद करना पड़े। ये ऐसे मसले हैं, जिनसे हर किसी को कभी ना कभी दो-चार होना ही पड़ता है। ऐसे में यह सोचना जरूरी है कि क्या निवेश और बीमा के मेल वाला एक अकेला यूलिप प्लान आपकी सभी जरूरतों के लिए उपयुक्त है? आपको अपने आप से यह सवाल जरूर पूछना चाहिए।
इसके साथ ही हर बचतकर्ता को एक और सवाल पूछना चाहिए। वह यह कि यूलिप योजनाओं के तहत सालाना प्रीमियम का सिर्फ 10 गुना लाइफ कवर क्यों दिया जाता है। जवाब बहुत सीधा है और इसी जवाब से पता चलता है कि भारतीय बीमा कंपनियों की दिलचस्पी बीमाकर्ताओं में है ही नहीं। जवाब यह है कि बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आइआरडीए या इरडा) ने यूलिप योजनाओं में सालाना प्रीमियम का कम से कम 10 गुना जीवन बीमा अनिवार्य किया हुआ है। इसलिए बीमा कंपनियों को यूलिप योजनाओं के तहत कम से कम उतना जीवन बीमा रखना ही पड़ता है। आगे सवाल यह है कि आखिर न्यूनतम सीमा ही क्यों? इसका जवाब यह है कि तथाकथित बीमा कंपनियों की रुचि असल में बीमा कारोबार में है ही नहीं, बल्कि उनकी सारी पूंजी तो निवेश के कारोबार में लगती है। इसलिए हमारी बीमा कंपनियां ऐसे प्रॉडक्ट्स बनाती हैं जिनमें जीवन बीमा की रकम कम से कम हो। क्या इससे किसी का फायदा है? जी हां, बीमा कंपनियों और कर्मचारियों के लिए इसमें फायदा ही फायदा है। लेकिन इसमें निवेशक या बचतकर्ता का फायदा है या नहीं, यह तो उसे ही सोचना पड़ेगा।
यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।