Corona: शेयर बाजार की चाल कैसी भी हो, निवेशक बुनियादी सिद्धांत को पकड़कर चलें
जोखिम और अनिश्चितता के माहौल में उचित निर्णय लेना तो इक्विटी निवेश की आत्मा है।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। शेयर बाजार अपने आप में अर्थव्यवस्था नहीं है। यह बात आपको विशेष तो क्या, सामान्य दिनों में भी नहीं भूलनी चाहिए। शेयर बाजारों की रोजमर्रा की चाल सिर्फ इतना बताती है कि कारोबारी जगत की सम्मिलित राय के मुताबिक अगले दिन, सप्ताह या महीने के दौरान कौन-कौन सी घटनाएं हो सकती हैं। जब वक्त बहुत अनिश्चित होता है तो यही समय महीने से घटकर सप्ताह, सप्ताह से घटकर दिन और उससे भी ज्यादा अनिश्चित हो तो अगली सुबह तक सिमट जाता है और कारोबारी जगत इससे आगे का अंदाजा नहीं लगाना चाहता है। जहां तक आजकल शेयर बाजारों का हाल है, तो कारोबारियों का प्रमुख मकसद अगले कारोबारी सत्र तक खुद को बाजार में बरकरार रखना है।
जब Sensex या Nifty 30 या 40 प्रतिशत टूट जाए, बाजार के कारोबारियों का विचलित होना स्वाभाविक है। लेकिन बाजारों के इतना टूट जाने को कोई इससे जोड़कर देखने लगे कि अगले दो-तीन वषों में इकोनॉमी की दशा क्या होगी, तो इसे समझदारी भरा अंदाजा कतई नहीं कह सकते हैं। बाजार में एक सर्किट लग गया या दो-तीन, इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। सर्किट लगना तो सिर्फ एक संख्या है, जो यह बताता है कि बाजार के चंद केंद्रित खिलंदड़ अगली सुबह तक की क्या-क्या संभावित घटनाएं देखते हैं। और ये घटनाएं भी असल नहीं, बल्कि उनके पूर्वानुमान हैं। दिलचस्प यह है कि शेयर बाजारों की पिछले कुछ दिनों की जो चाल रही है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पिछले दिनों के ऐसे सभी आकलन पूरी तरह अनुमान साबित हुए हैं। और पिछले कुछ दिनों के दौरान शेयर बाजारों में जिस तरह की अस्थिरताएं दिखी हैं, उससे सिर्फ यह पता चलता है कि महज अनुमानों के आधार पर निवेशकों ने शेयर बाजारों की दुर्गति कर दी।
जिन बचतकर्ताओं ने इक्विटी आधारित सेविंग्स उपकरणों में पूंजी लगा रखी है वे सब सदमे में हैं। यह बेहद स्वाभाविक भी है क्योंकि उन्हें लग रहा है कि शेयर बाजारों में पिछले दिनों की उठापटक इस बात का संकेत है कि भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कुछ बुरा, बहुत बुरा होने वाला है। यह कतई सही नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा कि परिस्थितियां बुरी नहीं होंगी या नहीं हो सकतीं। मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि इसकी भविष्यवाणी का कोई आधर नहीं है। शेयर बाजारों में इस वक्त जो भी हो रहा है उसका कारण बेहद स्पष्ट है। ये कारण अंदरुनी नहीं हैं, बाहरी हैं। यह एक प्राकृतिक आपदा है, जो एक साथ दुनियाभर के देशों में एक साथ प्रकट हुई है। इसके वैश्विक स्वरूप के चलते ही इसे वित्तीय रूप में समझना और इसका सामना करना लगभग असंभव है। एक बार वर्ष 2007-08 के दौर की वैश्विक आर्थिक मंदी के बारे में सोचिए। उस समय दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को मंदी से उबरने का एक ही तरीका समझ में आया - इकोनॉमी में पूंजी डालिए, कारोबार को चलाइए और खपत बढ़ाइए ताकि इकोनॉमी का पहिया चल निकले। हालांकि इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आए, लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि पूंजी का चक्र घूमता रहा और कई देश ग्लोबल आर्थिक सुस्ती से उबर गए।
बहरहाल, कोरोना संकट के मौजूदा काल में भी बहुत से देश और लोग उसी मंत्र को अपनाते दिख रहे हैं, जो पहली नजर में समझ के बाहर है। यह प्राकृतिक आपदा का दौर है और ऐसे वक्त में सभी चीजों को पटरी पर बनाए रखने के लिए सबसे पहली जरूरत यह है कि इसके स्वास्थ्य संबंधी पहलू पर ध्यान दिया जाए और उसके बाद लोगों की भोजन संबंधी जरूरतों की ओर देखा जाए। यह आपदा इकोनॉमी पर नहीं आई है और इसका समाधान भी सबसे पहले इकोनॉमी को दुरुस्त कर नहीं किया जा सकता।
इस वक्त यह कहना और सुनना आकर्षक लग सकता है कि बाद में बहुत सी चीजें बदलेंगी। बहुत संभव है कि बहुत से उद्योगों और कारोबारों की बदलाव की ओर गति काफी बढ़ जाए। जिन चीजों को अब तक डिजिटल स्वरूप ले लेना चाहिए था और जो सिर्फ अपनी मंद गति की वजह से अब तक भौतिक रूप में थीं, उनका क्षरण जल्दी होगा। यह बेहद स्वाभाविक निष्कर्ष है। लेकिन इस तरह के निष्कर्ष और उस असर को वास्तविक रूप लेता देखने के बीच अभी बहुत फासला है। अगर बचतकर्ता और निवेशक के रूप में उस स्थिति की हम अभी से परिकल्पना करने लगें और उसे निवेश व्यवहार में ले आएं, तो इससे हम सिर्फ और सिर्फ गलतियां करेंगे।
यह कहना शायद दुनिया की सबसे नीरस बातों में एक हो, लेकिन एक बार फिर कहूंगा कि यह वक्त बुनियादी सिद्धांतों पर टिके रहने का है। असल में बुनियादी सिद्धांतों से टिके रहने का मशविरा बिल्कुल उन्हीं मौकों पर सटीक बैठता भी है, जब बाजारों में या तो तेज गिरावट हो या वे तेज उछाल ले रहे हों। बाजारों में जब-जब अस्थिरता बढ़ती है, बुनियादी सिद्धांतों के साथ टिके रहने का मशविरा ही काम आता है। ये सिद्धांत बेहद सरल हैं। बाजार की तात्कालिक परिस्थितियों में मत बहिए, गुणवत्तापूर्ण निवेश चुनिए, परंपरावादी बने रहिए, निवेश का ठीक से बंटवारा कीजिए, इक्विटी में सिर्फ लंबी अवधि वाले निवेश कीजिए, डेट-इक्विटी का संतुलन बनाए रखिए और बाजार के उतार-चढ़ाव से विचलित हुए बगैर बेहतर स्टॉक्स में निवेश करते रहिए.. यही समझदार निवेशक होने के गुण भी हैं और विपरीत परिस्थितियों में बुनियादी सिद्धांतों पर टिके रहने का मतलब भी।
जोखिम और अनिश्चितता के माहौल में उचित निर्णय लेना तो इक्विटी निवेश की आत्मा है। हमें यह बिल्कुल नहीं पता कि कल क्या होने वाला है। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि हमें यह भी नहीं पता हो कि करना क्या है। यह सुनने में अजीब लगे, लेकिन सच यही है कि वक्त अच्छा हो या बुरा इक्विटी निवेश में यही होता है। अनिश्चितता के दौर में हो सकता है कि थोड़े वक्त के लिए उस पर से हमारी नजर चूक जाए।
शेयर बाजार की चाल को इकोनॉमी की हालत समझने वालों के साथ अक्सर दिक्कतें आती हैं। अभी शेयर बाजारों में जो हो रहा है, वह इकोनॉमी की हालत नहीं है। कुछ लोग इसकी तुलना 12 वर्ष पहले की वैश्विक आर्थिक मंदी से भी करने लगे हैं। सरकारें भी इससे निपटने का वही पुराना तरीका अपना रही हैं। लेकिन हमें समझना होगा कि यह संकट आर्थिक नहीं बल्कि स्वास्थ्य-जनित है और इसके निदान के लिए भी पहले स्वास्थ्य संबंधी मोर्चे पर लड़ाई लड़नी होगी। बहरहाल, निवेशकों के लिए एक ही मंत्र है कि बाजार की हालत कैसी भी हो, आप निवेश के बुनियादी सिद्धांतों पर टिके रहें। वे बुनियादी सिद्धांत आखिर क्या हैं?
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ है। ये उनके निजी विचार हैं।)