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रिटायरमेंट के लिए सेविंग प्लानिंग है बहुत जरूरी, जानिए इसके लिए किन चीजों का रखना होगा ध्यान

रिटायरमेंट के बाद अक्सर लोगों को औसतन 25 साल तक इनकम की जरूरत होती है। और इस अवधि में आप उम्मीद कर सकते हैं कि कीमतें लगभग पांच गुना तक बढ़ जाएंगी।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 14 Jun 2020 01:52 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jun 2020 07:27 AM (IST)
रिटायरमेंट के लिए सेविंग प्लानिंग है बहुत जरूरी, जानिए इसके लिए किन चीजों का रखना होगा ध्यान
रिटायरमेंट के लिए सेविंग प्लानिंग है बहुत जरूरी, जानिए इसके लिए किन चीजों का रखना होगा ध्यान

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। बचत करना बहुत बड़ी बात नहीं है। लेकिन बचत का प्रबंधन करना बहुत बड़ी बात है। इसकी मुख्य वजह यह है कि कमा रहे दिनों में बचत के प्रबंधन में जो भी थोड़ी-बहुत ऊंच-नीच होती या की जाती है, उसका सीधा असर रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी पर दिखता है। लेकिन बहुत सधे बचतकर्ता निवेशक भी अक्सर यह मान बैठते हैं कि पूरी बचत किसी सुरक्षित असेट क्लास में लगा दे तो रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आराम से कट जाएगी। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि आपकी मुद्रा यानी रुपये का चढ़ता-गिरता भाव आपकी गाढ़ी कमाई को भी चट करता रहता है। ऐसे में आपके पास एक ही विकल्प बचता है कि निवेश की रकम कम से कम इतनी हो कि उससे हासिल कमाई महंगाई दर को पछाड़ते हुए भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो। आखिर यह कैसे हो सकता है?  

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आमतौर पर मैं बचत और निवेश से जुड़े टॉपिक पर बहुत से सवालों का जवाब देता हूं। लेकिन रिटायरमेंट प्लानिंग पर पूछे गए सवाल मुझे सबसे ज्यादा चिंतित करते हैं। मुख्य रूप से वे सवाल जो रिटायरमेंट के बाद निवेश के प्रबंधन और इनकम हासिल करने के बारे में होते हैं। वास्तव में जब उम्रदराज लोग रिटायरमेंट के बाद इनकम पर सवाल पूछते हैं तो मैं एक तरह का डर महसूस करता हूं। इसकी वजह यह है कि जब आप युवा होते हैं और कमा रहे होते हैं तो आप बचत से जुड़ी गलतियों को थोड़े धैर्य के साथ संभाल सकते हैं। ऐसा होने पर हो सकता है कि आपको थोड़ी असुविधा का सामना करना पड़े। 

वरिष्ठ नागरिकों के लिए कभी-कभी बुरे हालात को टालना मुश्किल हो जाता है। इन समस्याओं की एक अहम वजह एक भरोसा है। भरोसा यह कि रिटायरमेंट सेविंग में सबसे अहम चीज यह है कि पूरी रकम किसी सुरक्षित असेट क्लास में निवेश की जानी चाहिए। और यह सुरक्षित असेट क्लास जरूरी तौर पर एक या दूसरे तरह की फिक्स्ड इनकम डिपॉजिट होनी चाहिए। लेकिन यह सच नहीं है। यहां तक कि जिन लोगों के पास बचत के तौर पर बड़ी रकम होती है उनके लिए भी भारत में रिटायरमेंट प्लानिंग की अहम समस्या महंगाई के लिए भरपाई करने की है। अगर भारत में महंगाई की दर दो या तीन फीसद होती तो समस्या नहीं आती। लेकिन वास्तविकता यह है कि रुपये की घटती खरीद क्षमता हमारी बचत को तेजी से खा रही है। 

रिटायरमेंट के बाद अक्सर लोगों को औसतन 25 साल तक इनकम की जरूरत होती है। और इस अवधि में आप उम्मीद कर सकते हैं कि कीमतें लगभग पांच गुना तक बढ़ जाएंगी। अगर आपको आज मासिक खर्च के लिए 50,000 रुपये की जरूरत है, तो 10 वर्षों बाद एक लाख रुपये की जरूरत होगी। 15 वर्षों के बाद 1.3 लाख रुपये और 20 वर्षो के बाद 1.8 लाख रुपये की जरूरत होगी। आपको रिटायरमेंट कॉर्पस से न सिर्फ समय के साथ ज्यादा रकम निकालने की जरूरत होगी बल्कि समय के साथ पूंजी भी बढ़नी चाहिए जो समय के साथ ज्यादा विड्रॉअल को सपोर्ट कर सके। 

इस समस्या का समाधान आसान नहीं है। वैल्यू रिसर्च में इस बात का आकलन करने के लिए कि आप कितनी रकम निकाल सकते हैं, हमारे पास एक असान तरीका है। यह तरीका आसानी से समझा जा सकता है। इनफ्लेशन एडजस्टेड विड्रॉअल रेट को सपोर्ट करने के लिए जरूरी है कि आप उतनी ही रकम निकालें जितनी महंगाई दर को छोड़कर आपकी सेविंग्स ने कमाई हो। इस पर सावधानी से गौर कीजिए। अगर आपकी सेविंग्स आठ फीसद की दर से कमाई कर रही है तो आपको सिर्फ दो फीसद रकम निकालनी चाहिए। इससे आपकी सेविंग्स कम से कम महंगाई दर के बराबर बढ़ती रहेगी और यह सुनिश्चित होगा कि रिटायरमेंट के बाद समय के साथ आप और गरीब नहीं होंगे। एक फीसद का मतलब है कि 50,000 रुपये की मौजूदा परचेजिंग पॉवर यानी खरीद क्षमता को सपोर्ट करने के लिए आपको तीन करोड़ रुपये की जरूरत होगी। यह बहुत बड़ी रकम है। अगर आप इस तरीके पर अमल करें और यह सोचें कि आपको निवेश के सुरक्षित विकल्पों से कितना रिटर्न मिल सकता है तो आप समझ पाएंगे कि समस्या क्या है। 

आप महंगाई दर को देखें। न सिर्फ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, बल्कि अपनी जिंदगी में वास्तविक महंगाई पर गौर करें। इसके बाद इसकी तुलना मौजूदा समय में मिल रहे एफडी और दूसरे रेट से करें। जो अंतर आएगा वह बहुत बुरा है। वास्तव में यह बहुत बुरा होने से भी आगे की बात है। अक्सर यह अंतर नकारात्मक में आता है। आमतौर पर निवेश के विकल्प उपभोक्ता महंगाई दर से ऊपर मुश्किल से ही कुछ दे पाते हैं। आप बैंक डिपॉजिट से कुछ भी नहीं निकाल सकते हैं। अगर रकम की वास्तविक कीमत की बात करें तो यह कुछ भी नहीं बढ़ती है। इसी वजह से मैं हमेशा कहता हूं कि रिटायरमेंट के बाद की इनकम में कुछ हिस्सा इक्विटी का जरूर शामिल होना चाहिए। यह पूरा इक्विटी नहीं हो सकता है क्योंकि इक्विटी में कम अवधि में उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है। इसीलिए हाइब्रिड फंड जिसे बैलेंस्ड फंड भी कहते हैं, आपकी मदद कर सकता है। 

पिछले दो दशकों के दौरान हाइब्रिड फंड ने चार फीसद सालाना विड्रॉअल रेट को सपोर्ट किया है। हालांकि यह भविष्य के लिए गारंटी नहीं देता है क्योंकि किसी निवेश की गारंटी नहीं है। इससे आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपको महंगाई को मात देने का बेहतर मौका मिल सकता है। आपको याद रखना होगा कि विड्रॉअल रेट फिक्स्ड रिटर्न नहीं है और न ही बचत करने वाला अपने आप इसका पात्र हो जाता है। शुरुआती वर्षो में बेहतर है कि आप कम से कम रकम निकालें, जिससे पूंजी को बढ़ने और भविष्य के लिए कंपाउंड होने का मौका मिले। कभी-कभी बचत करने वाले मुझसे पूछते हैं कि क्या मैं आपकी रिकमेंड की गई रकम से थोड़ा ज्यादा रकम निकाल सकता हूं। मेरा जवाब हमेशा यही रहता है कि आप भविष्य के साथ मोलभाव नहीं कर सकते हैं। बेहतर है कि आप कुछ रकम अपने हाथ में रखें। बचत से जुड़े फैसलों में यह सबसे बड़ा सिद्धांत है लेकिन रिटायरमेंट के बाद यह बहुत जरूरी है।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)


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