Investment Tips: मुश्किलों से भरे मौजूदा दौर के लिए बस एक ही मंत्र है, बेसिक पर अड़े रहिए
हमें अपनी वित्तीय जरूरतों व सीमाओं का विश्लेषण करते हुए ऐसा रास्ता तलाशना चाहिए जिससे हम अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाए रखते हुए इस संकट से बाहर निकल पाएं।(PC Pexels)
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कोविड-19 ने दुनिया को एक झटके में बदल दिया है। चीन, जापान, अमेरिका और यूरोप के सबसे ज्यादा प्रभावित शहर कोविड से अब तक करीब-करीब उबर चुके हैं और वहां चीजें तेजी से सामान्य हो रही हैं। वहां के अखबारों में छप रहे आलेख भी कोविड-19 के विनाशकारी प्रभावों से अटे पड़े नहीं हैं। उन आलेखों में इससे उबरने, इकोनॉमी के वापस पटरी पर आने तथा चीजें कोरोना पूर्व के दिनों की स्थिति में आने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। लेकिन निवेश के मामले में एकमात्र सच यह है कि अच्छे दिनों में एकाध गलती का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होता। लेकिन वर्तमान हालात जैसे चुनौतीपूर्ण दौर में छोटी गलती भी बड़ा नुकसान कर जाती है। इसलिए सलाह बहुत सरल है - बेसिक नियमों पर अड़े रहिए।
मेन स्ट्रीम मीडिया यानी अखबार, न्यूज चैनल और पत्रिका बहुत सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रहा, मगर उथल-पुथल से भरी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं है। इस लिहाज से कोविड महामारी की मौजूदा समस्या असामान्य साबित हो रही है। यह समस्या चीन के एक ऐसे शहर से शुरू हुई जिसे ज्यादातर लोग जानते तक नहीं जानते होंगे और वहां से निकली यह समस्या अब यह मानव जीवन की एक बड़ी समस्या के तौर पर देखी जा रही है। हालांकि एक दिन पहले के कोरोना केस के बारे में बड़ी-बड़ी हेडलाइन बनाई जा रही हैं। लेकिन वास्तव में घटनाएं इतनी सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही हैं कि ऐसा लगता है कि कई महीनों से कुछ बदला ही नहीं है।
आपको लगता है कि कुछ बदला है? यह आलेख लिखते हुए जब मैंने यूरोप के अखबारों के कुछ पन्ने खंगाले तो साफ हो गया कि कोविड के बाद वाली दुनिया को लेकर बदलाव उतना ही अचानक था जितना कोविड से पहले की दुनिया में एकाएक कोविड का आ जाना था। अखबार में स्वास्थ्य को लेकर कई लेख थे और उसमें बताया गया था कि कंपनियां व अर्थव्यवस्था किस तरह से बुरे दौर से गुजरने जा रहीं हैं। लेकिन इनमें ऐसा कुछ नहीं था कि आसमान गिरने जा रहा है। उन लेखों में माहौल वैसा ही बनाया और दिखाया गया था जिसकी लोग उम्मीद कर रहे थे। उन लेखों को देखकर स्पष्ट हो रहा था कि इटली, स्पेन और जर्मनी जैसे देशों में कोरोना का डर और उससे हुई क्षति का शोक जा चुका है। उनके लिए आगे का रास्ता एकदम साफ है।
चीन से लेकर ताइवान, जापान से लेकर अमेरिका और लगभग पूरा यूरोप व काफी हद तक अमेरिका कोविड को लेकर सबसे खराब दौर को पीछे छोड़ चुके हैं। अगर वायरस से स्वास्थ्य पर असर पड़ने की बात करें तो यहां लोगों को इससे उबरने का रास्ता दिख रहा है। इन देशों में लॉकडाउन खत्म हो चुका है, अर्थव्यवस्था खुल रही है और उन देशों में हर तरफ ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि बहुत बड़ी बाधा जैसा कुछ नहीं है। भारत अभी इस स्थिति से दूर है, लेकिन ये देश भी कई सप्ताह पहले उसी तरह के हालात में थे जैसे हालात आजकल भारत में हैं। अब यह बात तो साफ हो गई है कि किसी भी सूरत में यह महामारी अपने आप में स्थायी आपदा या लंबी अवधि तक रहने वाली आपदा जैसी तो नहीं है, जैसा कि कुछ समय पहले बताया जा रहा था।
ये बात हमें यह बताती है कि निवेश के तौर पर हमें किस बात की चिंता करनी चाहिए। वैल्यू रिसर्च के प्रकाशनों और मेरे आलेखों के पाठक के तौर पर आपने इस बात पर गौर किया होगा कि हमारी हमेशा से राय रही है कि यह भी गुजर जाएगा। इतना ही नहीं, हमने जोर देकर कहा था कि कोविड महामारी निवेश के बुनियादी नियमों को न तो निलंबित कर सकती है और न ही इसे बदल सकती है। वास्तव में कोविड बीमारी निवेश के बुनियादी नियमों को और मजबूती देती है। जब अच्छा समय चल रहा हो और बाजार में तेजी का दौर हो तो आप कुछ गलत फैसले करके भी बच सकते हैं। लेकिन मुश्किल हालात में कुछ गलत फैसले बहुत ज्यादा नुकसान कर सकते हैं।
मैं वह बात फिर से दोहराने जा रहा हूं जो मैंने कुछ माह पहले लिखी थी। मेरे कुछ पाठक कहते हैं कि कोविड संकट शुरू होने के बाद से मैं एक मंत्र कुछ ज्यादा ही दोहरा रहा हूं। यह मंत्र है -- बेसिक पर अड़े रहो। लेकिन वे पूरी तरह से गलत हैं। मैं यह मंत्र पिछले 25 साल से दोहरा रहा हूं। इसका कोविड संकट से कोई लेना देना नहीं है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले दशकों तक मैं यह करता रहूंगा। सबसे अहम बात, उम्मीद करता हूं कि आप निवेश में भी इसे अमल में लाते रहेंगे।
कड़वा सच यही है कि हम आज ऐसी स्थिति में हैं जहां पर कोई अनुमान लगाना मुश्किल है। हालांकि हालात उतने मुश्किल नहीं हैं जितने कुछ माह पहले थे। हमारे साथ निवेश के कुछ बार-बार खरे साबित हुए नियम और सिद्धांत हैं। इसके अलावा हम और क्या-कदम उठाते हैं यह हमारे हाथ में है। छोटी अवधि में या मध्यम अवधि में क्या होगा इसके बारे में किसी को नहीं पता। हमें अपने कदमों पर फोकस करना चाहिए। हमको अपनी वित्तीय जरूरतों और सीमाओं का विश्लेषण करते हुए ऐसा रास्ता तलाशने का प्रयास करना चाहिए जिससे हम अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाए रखते हुए इस संकट से बाहर निकल पाएं।
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)