छोटी अवधि के निवेश से मिलने वाले रिटर्न के पीछे भागने से हो सकता बड़ा नुकसान, जानें कैसे
Investment Tips कुछ निवेशकों में ऐसी आदत देखी गई है की वह अपने निवेश की कीमत बार-बार देखते रहते हैं। मार्केट में शेयर की कीमतें बढ़ी या कम हुई? आज मार्केट बंद होते वक्त शेयर का भाव क्या था? फंड की नेट असेट वैल्यू क्या थी?
नई दिल्ली, कैलाश कुलकर्णी। कुछ निवेशकों में ऐसी आदत देखी गई है की वह अपने निवेश की कीमत बार-बार देखते रहते हैं। मार्केट में शेयर की कीमतें बढ़ी या कम हुई? आज मार्केट बंद होते वक्त शेयर का भाव क्या था? फंड की नेट असेट वैल्यू क्या थी? बहुत लोगों को लगता हैं कि उन्हें बार-बार खबरें देखते रहना चाहिए जिससे वह अपने निवेश का प्रबंधन अच्छी तरह से कर सकेंगे। उनकी दलील होती है, ''निवेश की दुनिया इतनी गतिशील और हर पल बदलनेवाली होती है, इसमें रोज कई बदलाव आते हैं, ऐसे हर पल बदलनेवाली दुनिया में अगर हम हमेशा तैयार न रहें, तो हमारे निवेश फायदेमंद नहीं साबित होंगे।"
हमें यह समझना और सीखना होगा कि निवेश का प्रबंधन कैसे होता है। दरअसल, निवेश करना टी-ट्वेंटी मैच नहीं, बल्कि क्रिकेट का टेस्ट मैच खेलने जैसा है। दूसरे शब्दों में कहें तो 100 मीटर दौड़ में दौड़ना नहीं बल्कि मैराथन में दौड़ने जैसा है। जरा सोचिए, अगर एक बल्लेबाज बैटिंग करते वक्त खेल पर ध्यान रखने के बजाय बार-बार स्कोरबोर्ड की तरफ देख रहा हो और अगले बॉल पर क्या करना है, इसका हिसाब कर रहा हो तो क्या वह अपने खेल पर ध्यान दे पाएगा? उसके आउट होने की संभावना कितनी बढ़ जायेगी? टेस्ट मैच हो या फिर मैराथन, आपको शुरुआत में केवल अपना खेल अच्छा करने पर ध्यान देना है और मैदान में बने रहना है और यह काफी अहम है। अगर इस तरह से योजना नहीं बने, तो जीतने की कोई संभावना नहीं है।
निवेश में भी बिल्कुल यही बातें लागू होती हैं। असल में निवेश करना, क्रिकेट टेस्ट मैच या मैराथन से भी लंबा चलने वाला खेल है। अगर कोई इसे खेल कहना चाहें तो समझने की बात यह है कि टेस्ट मैच पांच दिन में खत्म हो जाता है और मैराथन तो कुछ घंटों में ही। मगर निवेश का यह खेल तो तबसे शुरू होता है जब कोई कमाना शुरू करता है और यह जिंदगी भर चलनेवाला गेम है। कभी-कभी, जब जायदाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी कों सौंपी जाती हैं तो निवेश एक पीढ़ी से भी ज्यादा समय तक चलता है।
इस निवेश की दुनिया में अगर अल्पकालिक लाभ हासिल करने की आदत या चाहत हो, व्यक्ति बार-बार लिवाली- बिकवाली का कारोबार करता रहता है। बहुत बार तो या जरूरी भी नहीं होता, और महंगा भी पड़ता है। इसकी वजह यह है कि हर कारोबार के साथ कोई न कोई कीमत जुड़ी होती हैं- फिर शायद वह कारोबार का शुल्क-जैसे की दलाली या कर हो- पूंजीगत कर हो या फिर सिक्युरिटीज कारोबार का कर। तो यह शुल्क और कर हमारे निवेश से मिलनेवाले रिटर्न्स यानी लाभ को कम करते हैं।
हर बार जब कोई निवेशक ऐसे कारोबार करता है तो उसमे गलती होने की भी गुंजाइश होती हैं। शोध से यह साबित हुआ है कि जब आप अपने निवेश में बार-बार और ज्यादा फैसले लेते हो या वैसी कार्यवाही करते हो, तब आपकी गलती करने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं, खासकर अगर आप नौसिखिये निवेशक हैं तो।
जब कोई दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्य के लिए निवेश कर रहा है, तो उसका ध्यान भी हमेशा अपने निवेश के क्षितिज के साथ मेल खाता हुआ होना चाहिए। अगर आप अल्पकालीन लाभ के पीछे दौड़ेंगे, तो उसमें जोखिम भी ज्यादा होता है और शुल्क तथा कर का खर्च भी बढ़ता है |
(लेखक एल एंड टी म्यूचुअल फंड के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)