किसी भी IPO में निवेश से पहले आम निवेशकों को किन बातों का रखना चाहिए ध्यान, जानें एक्सपर्ट की राय
Investing In An IPO इस लेख में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं कि किसी भी आइपीओ में निवेश से पहले आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस को पढ़कर कंपनियों के बारे में जानकारी जुटाना निवेश से पहले क्यों जरूरी है।
नई दिल्ली, हर्ष जैन। इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) एक प्रक्रिया है जिसमें एक कंपनी पहली बार अपनी शेयर्स स्टॉक मार्केट में जनता को, फंड जुटाने के लिए ऑफर करती है। एक आइपीओ में, इंस्टीट्यूशंस और साथ ही रिटेल इन्वेस्टर्स, दोनों भाग ले सकते हैं और इस कारण से, इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग में इंवेस्टमेंट्स, इन्वेस्टर्स द्वारा काफी उत्साह से देखा जाता है। स्टॉक की कीमत आइपीओ के दौरान इश्यू सेल द्वारा निर्धारित की जाती है, जो ऊपर या नीचे जा सकती है और यह कंपनी के स्टॉक में इन्वेस्टर्स की रुचि (इंटरेस्ट) पर निर्भर करती है।
साल 2021 के दौरान, भारत में विभिन कंपनियों ने 1.2 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड पैसा आइपीओ के द्वारा स्टॉक मार्केट में इन्वेस्टर्स से जुटाए थे जो कि भारत में किसी एक कैलेंडर साल में अब तक का, आइपीओ से उठाये गए सबसे बड़ा अमाउंट है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के डेटा के अनुसार, साल 2021 में कुल मिला कर 115 कंपनियों ने SEBI के पास अप्रूवल के लिए अपने डाक्यूमेंट्स जमा किए थे। इनमे से 63 इंडियन कंपनियों ने साल 2021 में आइपीओ स्टॉक मार्केट में लॉन्च किए थे।
IPO में उपयोग की जाने वाले प्रमुख टर्म्स
नीचे इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग में इस्तेमाल किये जाने वाले टर्म्स दिए गए हैं जिनका उपयोग अक्सर तब किया जाता है जब हम आइपीओ पर चर्चा या उसकी एनालिसिस करते हैं:
Abridged प्रॉस्पेक्टस – यह आइपीओ प्रॉस्पेक्टस का समरी है जिसमें प्राइमरी प्रॉस्पेक्टस की सभी मुख्य विशेषताएं शामिल हैं।
Draft Red Herring Prospectus, ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) – यह डॉक्यूमेंट सिक्योरिटीज & एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) को, कंपनी द्वारा आइपीओ के 21 दिन पहले जमा किया जाना चाहिए।
एप्लीकेशन सपोर्टेड बाई ब्लॉक्ड अमाउंट (ASBA) – इसमें इन्वेस्टर्स द्वारा शेयरों के लिए पेमेंट किया गया पैसा इन्वेस्टर्स के खाते में रहता है। जब तक इन्वेस्टर्स को कंपनी द्वारा शेयर एलॉट नहीं किए जाते तब तक अमाउंट ब्लॉक्ड रहता है।
रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस- इस डॉक्यूमेंट में वे सभी शामिल हैं जो इन्वेस्टर्स को कंपनी के बारे में जानना चाहिए, जैसे कि कंपनी का बिज़नेस अकाउंट, मैनेजमेंट क्वालिफिकेशन्स (Management Qualifications), बिज़नेस का फ्यूचर एप्रोच, आइपीओ प्राइस बैंड आदि।
लिस्टिंग डेट, लिस्टिंग की तारीख– यह वह दिन है जिस दिन स्टॉक एक्सचेंज में आइपीओ शेयरों का कारोबार शुरू होता है।
लॉट साइज – शेयरों की मिनिमम संख्या जिसके लिए आइपीओ में बोली लगाई जा सकती है। यदि आप अधिक शेयरों के लिए बोली लगाना चाहते हैं, तो आप मल्टीप्लेस में बोली लगा सकते हैं।
ऑफर डेट, ऑफर की तारीख– यह वह शुरुआती तारीख होती है जिस दिन से इन्वेस्टर्स आइपीओ में शेयरों के लिए बोली लगाना शुरू कर सकते हैं।
मिनमम सब्सक्रिप्शन (Minimum Subscription) – यह आइपीओ शेयरों का मिनिमम प्रोपोरशन है जिसे रिटेल इन्वेस्टर्स को आइपीओ के लिए सब्सक्राइब करना चाहिए, जो करेंटली 90% है।
ओवर सब्सक्राइब– यह तब होता है जब इन्वेस्टर्स, कंपनी द्वारा प्रोपोसड शेयरों की संख्या से अधिक बोली लगाते हैं।
प्राइस बैंड – यह वह मूल्य लिमिट है जिसके अंदर इन्वेस्टर आइपीओ शेयरों के लिए बोली लगा सकते हैं।
बुक बिल्डिंग प्रोसेस – यह आइपीओ के लिए इश्यू प्राइस तय करने की प्रोसेस है जो इन्वेस्टर्स द्वारा बोली लगाने वाली कीमतों पर निर्भर करती है।
फ्लोर प्राइस – यह आइपीओ के लिए आवेदन करते समय प्रति शेयर का सबसे कम कीमत है।
इश्यू प्राइस - यह वह कीमत है जिस पर शेयर, एक्सचेंज में लिस्टेड होने पर इन्वेस्टर्स को अलॉट किया जाता है।
कट-ऑफ प्राइस – यह सबसे कम इश्यू प्राइस है, जिस पर शेयर्स एलॉट किए जाते हैं।
अंडरराइटर (underwriter) – वे इन्वेस्टमेंट बैंकर्स हैं जो कंपनी की इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग और बुक बिल्डिंग प्रोसेस मैनेज करते है। आइपीओ में इन्वेस्ट करने से पहले, नीचे दिए गए कुछ विशेष बातों को चेक करें।
रेड हेरिंग प्रॉ स्पेक्टस पढ़ें
ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस एक कंपनी द्वारा सेबी (SEBI) के पास जमा किया जाता है जब वह जनता को अपने शेयर बेचकर धन जुटाना चाहती है। यह डॉक्यूमेंट बताता है कि कंपनी कैसे, जुटाई जाने वाली जनता के पैसे का उपयोग करना चाहती है, और इन्वेस्टर्स के लिए पॉसिबल रिस्क्स क्या हैं। DRHP में कंपनी के बारे में वह सब कुछ लिखा होता है जो एक इन्वेस्टर को कंपनी के बारे में पता होना चाहिए। जैसे फाइनेंसियल हिस्ट्री, कंपनी का स्ट्रेंथ, रिस्क, कंपनी के विरुद्ध कोई कानूनी प्रक्रिया चल रही है या नहीं, आदि। इसलिए, इन्वेस्टर्स को किसी भी आइपीओ में इन्वेस्ट करने से पहले इस डॉक्यूमेंट को पढ़ना चाहिए ।
फंड जुटाने के पीछे कारण
ध्यान दें कि यह जांचना आवश्यक है कि कंपनी द्वारा IPO से जुटाई गई फंड्स का उपयोग कैसे किया जाएगा। यह भी जांचना चाहिए कि क्या कंपनी अपना कर्ज चुकाना चाहती है या अगर कंपनी व्यवसाय का एक्सपेंशन करने या कॉ रपोरेट कारण के लिए फंड्स का उपयोग करने के लिए फंड्स जुटाने की योजना बना रही है। ऑफर फॉर सेल भी शेयर बाजार से पैसे जुटाने का एक तरीका है। जुटाए गए धन उन प्रमोटरों के पास जाएंगे जो अपने शेयर बेच रहे हैं।
बिजनेस मॉडल को समझना
इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग में इन्वेस्ट करने से पहले इन्वेस्टर्स को यह समझना चाहिए कि कंपनी का किस तरह का बिजनेस मॉडल है। एक बार जब वे समझ जाते हैं कि कंपनी किस तरह के व्यवसाय में है, तो अगला कदम बज़ार में नए अवसर को पहचानना है। यह इंडीकेट करेगा कि क्या बड़ा अवसर आने पर कंपनी क्षमता विस्तार (capacity expansion) में इन्वेस्ट करने में सक्षम होगी और अपने इन्वेस्टर्स को प्रॉफिट का शेयर देने के लिए पर्याप्त धन जेनेरेट कर पाएगी? यह तभी हो पायेगा जब कंपनी की मार्केट शेयर पर कब्जा करने की क्षमता हो। अगर कंपनी का बिज़नेस एक्टिविटी (गतिविधियां) इन्वेस्टर्स के पास साफ नहीं है, तो उन्हें उस कंपनी के आइपीओ से दूर रहना चाहिए। इसके अलावा निम्नलिखित बातों पर भी गौर करें।
- मैनेजमेंट और प्रमोटर्स के बैकग्राउंड चेक करें ।
- DRHP के माध्यम से कंपनी के ताकत और कमजोरी को जाने ।
- कंपनी के वैल्यूएशन को चेक करें।
- उससे यह पता लगेगा की कहीं कंपनी जिस सेक्टर में है उसकी तुलना में ऑफर प्राइस अंडर वैल्यूड या ओवर वैल्यूड तो नहीं है।
- कंपनी के फाइनेंसियल स्वास्थ्य की जांच करें
- कितने समय के लिए इन्वेस्ट करना चाहेंगे यह भी साफ़ होना चाहिए
बाकि कंपनियां जो उस बिज़नेस में हैं उनके साथ आइपीओ इश्यू करने वाली कंपनी की फाइनेंशियल और वैल्यूएशन की तुलना DRHP द्वारा करें। इसके अलावा, बाज़ार में कंपनी का पोटेंशियल क्या है, चेक करें।
(लेखक ग्रो इंडिया के सह-संस्थापक और सीओओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)