बैंकों में शिकायत सुलझाने के लिए नई व्यवस्था की जरूरत
एक्सपर्ट्स का मानना है कि बैंकों में शिकायत सुलझाने के लिए नई व्यवस्था की जरूरत है
(अमित मित्तल-फाउंडर, चीफ कंसलटेंट ऑफिसर, ईसिल्वरबक्स कंसलटेंट)।
पिछले दिनों नोटबंदी के दौरान हमने कई घटनाओं के जरिए देखा कि किस तरह बैंक ग्राहकों को हल्के में लेते हैं। सरकारी बैंकों में तो हाल और भी बुरा है। रिजर्व बैंक की 16 जुलाई 2015 की जारी की हुई गाइडलाइंस के मुताबिक भारत के सभी व्यावसायिक बैंकों अपने सिस्टम की समीक्षा साल में एक बार करनी चाहिए। इस समीक्षा के जरिए सेवा की क्वालिटी में अगर कोई दिक्कत है तो उसको दूर करने का प्रावधान बनाया जाए।
पर क्या पूरे साल में एक बार समीक्षा कर ग्राहकों की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। बिल्कुल नहीं। न सिर्फ आम लोग बल्कि एसएमई और एनजीओ को भी बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थानों में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस के बावजूद भी कई वित्तीय संस्थान सर्विस की क्वालिटी सुधारने को लेकर गंभीर नहीं है। इस कारण ग्राहकों की दिक्कत बढ़ती ही जा रही है। ये जानना ग्राहकों का अधिकार है कि उनको किसी तरह कि सेवा देने से बैंक ने क्यों मना कर दिया।
बैंकों में आम समस्याएं-
- किसी ग्राहक को बिना कोई जानकारी दिए उसे ट्रांजेक्शन से रोकना
- ठोस कारण के बिना होम लोन की अर्जी को रिजेक्ट करना
- ठोस कारण के बिना क्रेडिट कार्ड की अर्जी रिजेक्ट करना
- मंजूर किए कारोबारी लोन को ट्रांसफर करने में देरी करना
शिकायतों में बढ़ोतरी-
ग्राहकों की बढ़ती दिक्कतों को बैंकों में शिकायत काउंटर और उपभोक्ता फोरम में लगी लाइन को देखकर आप आसानी से पता लगा सकते हैं। जब बैंक कोई लोन या क्रेडिट कार्ड की अर्जी को रिजेक्ट कर देता है तो बैंक के कर्मचारी ग्राहकों सिर्फ जानकारी दे देते हैं। कई बार तो वो इसका कोई ठोस कारण भी नहीं बता पाते। ऐसी स्थिति में ग्राहक को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ऐसे कई केस है जिसमें बैंकों के अर्जी रिजेक्ट करने का कोई कारण नहीं है। हर साल बैंक 30 से 40 फीसदी लोन की अर्जियां रिजेक्ट कर देते हैं। इसमें से 60 से 70 फीसदी ग्राहकों की लोन को दोबारा चुकाने की क्षमता होती है। दुर्भाग्यवश भारत में 90 फीसदी लोन रिजेक्ट होने का ग्राहकों को कारण ही पता नहीं चल पता है।
नई व्यवस्था की जरूरत-
लोन की अर्जी रिजेक्ट न हो इसके लिए कई प्राइवेट कंसलटेंट बाजार में सक्रिय हैं। इनकी भूमिका सिर्फ काउंसलिंग, डाक्यूमेंट तैयार करना और सुविधा देने तक ही है। हालांकि ये ग्राहक और बैंकिंग संस्थान के बीच सवांद की दूरी कम नहीं करवा सकते हैं। देश में बैंकिंग ओंबुड्समैन की व्यवस्था है। इसे रिजर्व बैंक ने स्थापित किया है। इसके जरिए ग्राहक और बैंकिंग संस्थान की समस्या सुलझाई जाती है। देश की जनसंख्या 120 करोड़ है और यहां सिर्फ 15 ही बैंकिंग ओंबुड्समैन के ऑफिस हैं। इनके पास सिर्फ 27 प्रकार के केस ही आ सकते हैं। इनकी देश के वित्तीय क्षेत्र में उपस्थिति नगण्य है। अभी कई लोगों को उनकी समस्याओं का सही समाधान नहीं मिलता है। इस स्थिति के कारण कई लोगों को और छोटे कारोबारियों के सामने दिक्कतें पैदा हो रही है। इस कारण देश की आर्थिक विकास दर भी प्रभावित हो रही है। इसलिए केंद्र और रिजर्व बैंक को बैंकिंग ओंबुड्समैन के आगे कुछ सोंचना होगा।
बैंक कारण बताए-
कई अर्थशास्त्री, कारोबारी और जानकार इस अथॉरिटी में बदलाव को लेकर एकमत हैं। इनकी सलाह है कि हर बैंक को ग्राहक को उसकी लोन की अर्जि रिजेक्ट होने का कारण देना चाहिए इससे उसको अपना क्रेडिट स्कोर बेहतर करने में मदद मिलेगी। हालांकि ये क्रेडिट मैनेजर की जिम्मेदारी होती है और अधिकतर बार वो इसको ठीक से नहीं निभा पाते।
एक ग्राहक को अधिकार है कि वो जाने कि उसकी अर्जी किसी डॉक्यूमेंट में कमी, कम सिबिल स्कोर, प्रॉपर्टी की शर्तों को पूरी न करने से रिजेक्ट हुई है। हर बैंक में एक अथॉरिटी होनी चाहिए जो इसकी समीक्षा करे। बैंकों की नियामक संस्था होने के कारण रिजर्व बैंक को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए।