Franklin Templeton: एक दुखद कहानी का अंत; समझदार निवेशक दें निवेश के सिद्धांतों पर ध्यान
फ्रैंकलिन टेंपलटन की कुछ फिक्स्ड इनकम स्कीमें थीं जिन्हें ज्यादा फायदे यानी हाई-यील्ड वाले फंड्स के तौर पर डिजाइन और बेचा गया। इनका निवेश ऐसे कारपोरेट बांड्स में था जिनके रिटर्न बेहतर थे और एक हद तक इनमें रिस्क भी ज्यादा था
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। फ्रैंकलिन की घटना अब अपनी स्वाभाविक परिणति पर पहुंच चुकी है। निवेशकों का तकरीबन सारा पैसा रिकवर हो गया है और किसी ने कुछ नहीं गंवाया है। शुरुआत से ही लग रहा था कि इस पूरे मामले का अंत कुछ इसी तरह से होगा। और अगर मुठ्ठी भर निवेशक गलत मशविरे पर नहीं चले होते तो इतनी देर भी नहीं लगती। मामला काफी पहले सुलझ गया होता और इतने सारे निवेशक वो परेशानी नहीं भुगतते, जो उन्होंने भुगती। जो लोग अब भी पूरी कहानी नहीं समझे, उनके लिए कम-से-कम शब्दों में इसे कहने की कोशिश है।
फ्रैंकलिन टेंपलटन की कुछ फिक्स्ड इनकम स्कीमें थीं, जिन्हें ज्यादा फायदे यानी हाई-यील्ड वाले फंड्स के तौर पर डिजाइन और बेचा गया। इनका निवेश ऐसे कारपोरेट बांड्स में था, जिनके रिटर्न बेहतर थे और एक हद तक इनमें रिस्क भी ज्यादा था। साल 2020 में जब कोरोना वायरस ने दुनियाभर में कहर बरपाया, तब इनमें से कई बांड्स अपनी लिक्विडिटी खो बैठे। पैसा निकालने की निवेशकों की मांग पूरी करने के लिए इन्हें बेचना मुश्किल हो गया। ऐसे में अप्रैल 2020 के आखिरी हफ्ते तक फ्रैंकलिन ने अपने छह डेट फंड बंद कर दिए। इस तरह से निवेशकों की 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम फ्रीज हो गई। भारत में ओपन-एंड-फंड्स के इतिहास में ये अभूतपूर्व घटना थी। एएमसी ने ये एक्शन इसलिए लिया क्योंकि बॉन्ड बाजार फ्रीज हो गए थे और वो अपने पास रखे बॉन्ड, उस संख्या में नहीं बेच पा रहे थे जिससे निवेशकों की पैसा निकालने की मांग पूरी की जा सके।
एएमसी का प्लान था कि फंड बंद करने के कदम से निवेशकों की मांग कम हो जाएगी। सोच ये थी कि जैसे-जैसे बांड्स बिकते रहेंगे या मैच्योरिटी होगी तो बांड जारी करने वाली कंपनी से रिडीम किया जाता रहेगा। साथ ही जब-जब ब्याज मिलेगा, उसे भी बांट दिया जाएगा। इसी मसले पर सेबी ने रूलिंग दी कि ये प्रक्रिया, ई-वोटिंग के जरिये निवेशकों की रजामंदी से पूरी की जाएगी। हालांकि, सब-कुछ तब रुक गया जब कुछ निवेशकों ने अनियमितता के शक में कोर्ट में केस फाइल कर दिया। उसी समय ये साफ दिख रहा था कि ये ग़ुस्सा कुछ फंड डिस्ट्रीब्यूटरों द्वारा प्रमोट किया जा रहा है। शायद उन्होंने अपने कस्टमर्स को इन फंड्स के हाई रिटर्न के साथ शामिल रिस्क के बारे में बिना बताए निवेश के लिए प्रेरित किया था। सच्चाई ये थी कि इन फंड्स ने ऊंचा रिस्क लिया और बेहतर रिटर्न दिए। बिचौलियों के लिए ऊंचे रिटर्न पर बेचना आसान था, उन्होंने बेचा। निवेशकों को ऊंचे रिटर्न पाना पसंद था, उन्होंने खरीदा। और जब वायरस के चलते बांड मार्केट फ्रीज हो गए, तो हर किसी ने दोष मढ़ने के लिए, किसी दूसरे को खोजना शुरु कर दिया।
ये एक खेदजनक सच्चाई है कि ज्यादातर फंड बेचने वाले और उनके निवेशक यह नहीं समझते कि मार्केट-आधारित सिक्योरिटीज में निवेश करने का क्या मतलब होता है। कुछ छोटे डेट फंड का बंद होना तो 2018 से होता रहा है। हालांकि, ऐसे हर केस में निवेशकों और दूसरे लोगों ने उस फंड को ही इसका जिम्मेदार माना है। एक समझदार निवेशक को निवेश के सिद्धांतों पर ध्यान देना चाहिए। निवेश किए जाने वाले फंड के रिस्क पर गौर करना जरूरी है। बिल्कुल सुरक्षित फंड के लिए लिक्विड फंड में निवेश करें। रिस्क से जुड़ी हर तरह की जानकारी मौजूद है।
फ्रैंकलिन के केस में, कुछ लोग जो महंगे वकीलों और कानूनी प्रक्रिया का खर्च उठा सकते थे, उनकी बेवकूफी से बहुत से लोगों के हितों को चोट पहुंची। अफसोस, 'म्यूचुअल' शब्द का ये दूसरा पहलू है। जिसमें आपकी किस्मत आपके साथी निवेशकों के साथ जुड़ जाती है।
(लेखक सीईओ, वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)