फ्रैंकलिन टेंपलटन मामलाः जानें इस प्रकरण के अदालत में जाने से निवेशकों पर पड़ेगा किस तरह का असर
Franklin Templeton Crisis भारत के डेट फंड में लिक्विडिटी का संकट जटिल हो गया है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि कुछ निवेशक इस मामले को लेकर अदालत में चले गए हैं।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। संकट में कानून की शरण में जाना हर नागरिक का अधिकार भी है और कई बार सहज प्रतिक्रिया भी। लेकिन कई किसी मामले को कानून तक ले जाना उसे सुलझाने से पहले उलझा देता है। फ्रैंकलिन टेंपलटन मामले को अदालत तक ले जाने का मामला भी उनमें से ही एक प्रतीत हो रहा है। इस मामले को जिस तरह से अदालत ले जाया गया है, उससे स्पष्ट दिख रहा है कि कुछ निवेशकों को नियामकों में भी विश्वास नहीं रह गया है। इसका एक असर यह भी होगा कि जिन निवेशकों को मामला अदालत के बाहर और बिना किसी कानूनी पचड़े के सुलझता दिख रहा था, उन्हें भी अब लंबा इंतजार करना पड़ेगा। शायद इस पूरे तंत्र का कोई हिस्सा अपनी गलती दूसरे पर थोपने की मंशा के तहत ऐसा ही चाहता होगा।
भारत के डेट फंड में लिक्विडिटी का संकट जटिल हो गया है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि कुछ निवेशक इस मामले को लेकर अदालत में चले गए हैं। वैसे तो यह किसी भी भारतीय का अधिकार है कि अगर वह चाहता है तो कानून की मदद ले। लेकिन इस मामले में निवेशकों का ऐसा करना शायद उनके हित में न हो।
पहले हम पीछे मुड़ कर देखते हैं कि यह स्थिति पैदा क्यों हुई। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में फ्रैंकलिन टेंपलटन ने अपने छह डेट फंड बंद कर दिए। इस तरह से निवेशकों की लगभग 30,000 करोड़ रुपये की रकम फ्रीज हो गई है। इनमें फ्रैंकलिन इंडिया लो ड्यूरेशन फंड, फ्रैंकलिन इंडिया अल्ट्रा शॉर्ट बांड फंड, फ्रैंकलिन इंडिया शॉर्ट टर्म इनकम प्लान, फ्रैंकलिन इंडिया क्रेडिट रिस्क फंड, फ्रैंकलिन इंडिया डायनमिक एक्युरल फंड और फ्रैंकलिन इंडिया इनकम ऑपरच्युनिटीज फंड शामिल हैं।
भारत में ओपन-एंड फंड के इतिहास में यह अप्रत्याशित है। फ्रैंकलिन ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उसने पाया कि बांड मार्केट फ्रीज हो गया था और वह इन फंडों द्वारा खरीदे गए बांड्स बेच नहीं पा रही थी, जबकि फंड खरीदने वालों की ओर से अपना निवेश भुनाने की रिक्वेस्ट सिर पर थी। फंड हाउस का प्लान यह है कि वह निवेशकों की मांग पर फंड भुनाना बंद करेगी, जैसा कि ओपन-एंडेड फंड आमतौर पर काम करते हैं। लेकिन जब वह बांड्स बेच पाएगी या बांड्स की मैच्योरिटी खत्म होगी तो वह रकम को भुनाती रहेगी। बांड्स पर इंटरेस्ट पेमेंट मिलने पर भी इसे निवेशकों को दिया जाएगा।
कंपनी के निवेशक नौ जून को सेबी द्वारा मंजूर की गई समूची प्रक्रिया को अधिग्रिहीत करने के लिए ई-वोटिंग में शामिल होने वाले थे। हालांकि इससे पहले चार कोर्ट केस ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया। निवेशकों को शक है कि इन फंडों को चलाने में किसी तरह की अनियमितता हुई है और वे चाहेंगे कि इसकी जांच हो। और इसका असर यह हुआ है कि अब उनको रेगुलेटर यानी नियामक पर भी भरोसा नहीं रहा है कि वह उनके हितों की रक्षा करेगा।
वहीं, कुछ लोगों को महसूस हो रहा है कि समूची प्रक्रिया को तेज किया गया है और कारोबारी उम्मीदों में सुधार दिख रहा है। ऐसे में संभव है कि फ्रैंकलिन चीजों को ठीक करने और फंड बचाने में कामयाब हो जाए। जहां तक कानून की बात है जब तक वोटिंग प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है तब तक फंड को इंटरेस्ट या दूसरे मदों से मिलने वाली रकम को भी निवेशकों में वितरित नहीं किया जा सकता है। कानून में यह बहुत बड़ी बाधा है इसमें बदलाव जल्दे से जल्द किया जाना चाहिए। कोई भी निवेशक यहां तक कि जो कोर्ट गए हैं, वे भी नहीं चाहेंगे कि उनकी रकम इस तरह से ब्लॉक हो जाए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि अगर किसी को लगता है कि उसके साथ गलत हुआ है तो कानून की मदद लेना उसका अधिकार है। लेकिन यह भी साफ है कि भारतीय डेट फंड निवेशक अब तक इस बात को पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि ऐसे फंड में निवेश का मतलब क्या है जो बाजार समर्थित सिक्युरिटीज में निवेश करता है।
फ्रैंकलिन एपिसोड अचानक नहीं हुआ है। लगभग दो वर्ष पहले से ही डेट में कई छोटे-छोटे झटके लगते रहे। और मौजूदा संकट बहुत बड़ा है। निवेशकों ने जो व्यवहार दिखाया है उससे लगता है कि उनको फंड कंपनियों और फंड इंटरमीडियरीज के द्वारा उकसाया जा रहा है। वास्तव में इस मौके पर कुछ हद तक फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स निवेशकों के गुस्से को भड़का रहे हैं। फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने पहले तो निवेशकों को इन फंडों में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया और अब खुद को सवालों से बचाने के लिए निवेशकों से कह रहे हैं कि फंड में कुछ अनियमितताएं हुई हैं। फ्रैंकलिन के फंडों ने ज्यादा रिस्क लिया और ऊंचा रिटर्न कमाया। इंटरमीडियरीज ने पाया कि ऊंचे रिटर्न के वजह से इन फंडों को बेचना आसान है। निवेशकों ने भी ऊंचे रिटर्न को पसंद किया। अब जब फंड ने झटका दिया है तो हर कोई इसके लिए किसी और को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास कर रहा है। और जब वकील पिक्चर में आते हैं तो कस्टममर अलग तरह के तर्क का सहारा लेते हैं और उनका व्यवहार कोई और तय करता है।
बंद हुए फंडों में निवेश करने वाले निवेशकों की एक बड़ी संख्या कोर्ट के मुकदमों में पार्टी नहीं है। और उनको शायद इस कानूनी पचड़े में पड़ने में भी कोई दिलचस्पी नहीं होगी, क्योंकि इससे निश्चित तौर पर मामले के अंतिम समाधान में देरी होगी। दुर्भाग्य यह है कि म्यूचुअल फंड का नेचर ऐसा है कि कुछ बड़े निवेशक, जो ताकतवर वकीलों की सेवा ले सकते हैं, निवेशकों की एक बड़ी संख्या को अपने पीछे खींच सकते हैं।
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)