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घर खरीदने से पहले खुद से पूछिए ये अहम सवाल, मिलेगी वित्तीय सेहत को मजबूती

रियल एस्टेट के सब्जबाग दिखाने वाले आपको हमेशा इस तरह के उदाहरण देंगे कि 40-50 वर्षो में अमुक घर का दाम 100 गुना तक बढ़ गया

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 25 Feb 2018 01:14 PM (IST)Updated: Sun, 04 Mar 2018 08:50 AM (IST)
घर खरीदने से पहले खुद से पूछिए ये अहम सवाल, मिलेगी वित्तीय सेहत को मजबूती
घर खरीदने से पहले खुद से पूछिए ये अहम सवाल, मिलेगी वित्तीय सेहत को मजबूती

जिंदगी भर की जमा पूंजी एक घर खरीदने पर लगा देने वाले परिवार को अगर समय पर घर नहीं मिले, तो उसकी दशा का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। लेकिन यह समझने की जरूरत है कि निवेश के लिए घर खरीदने और रहने के लिए घर खरीदने में बुनियादी फर्क होता है। इस फर्क को समझे बगैर रियल एस्टेट में निवेश करना खतरे से खाली नहीं है। ज्यादातर रियल एस्टेट डेवलपर ग्राहकों की इसी दुविधा का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। वे सपने दिखाते हैं और खरीदार आसपास की चकाचौंध में बिना ठोस फैसले के उस सपने में बहने लगते हैं, जो बाद में कष्ट का कारण बनता है।

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ज्यादातर भारतीयों के लिए, या यूं कहें कि एक आम भारतीय के लिए उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा वित्तीय फैसला अपना एक घर खरीदना होता है। किसी भी अन्य फैसले में किसी की माली हालत पर सबसे अच्छा या सबसे बुरा असर छोड़ने की कूवत नहीं है। जिनकी भी अंटी में गैरकानूनी कमाई का सिक्का खनकता रहा है, उनके लिए रियल एस्टेट सेक्टर एक अरसे से निवेश का बेहद लुभावना क्षेत्र रहा है। शायद आज भी हो, और अगर ऐसा है भी तो मुङो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि ज्यादातर लोग जिंदगी में एक ही बार घर बना पाते या खरीद पाते हैं।

वर्ष 2000 या उसके आसपास से लोगों में यह धारणा बेहद मजबूत हो चली है कि रियल एस्टेट में निवेश सबके लिए निवेश का सटीक और मुख्य माध्यमों में एक है। हकीकत यह है कि ऐसी धारणा सच से कोसों दूर है। असल में सन 2000 के आसपास ब्याज दरें घटने लगीं, हाउसिंग लोन को आयकर छूट में शामिल किया जाने लगा, और वेतनभोगियों की आय भी बढ़ने लगी। ऐसे माहौल में वेतनभोगी परिवारों के लिए ‘एक घर’ खरीदना पहले के मुकाबले कुछ ज्यादा ही आसान हो गया। दुर्भाग्य से वह एक घर ‘कई घरों’ में बदल गया, लोग घरों की खरीद-फरोख्त कर मुनाफा कमाने का ख्वाब देखने लगे। शुरुआती कुछ वर्षो तक तो कुछ लोगों को इससे खासा मुनाफा भी हुआ।

इसका वही नतीजा होना था जो हुआ। रियल एस्टेट उद्योग मकान खरीदारों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी की असली वजह समझने में नाकामयाब रहा और यह बढ़ोतरी फूल कर ऐसा गुब्बारा बनती चली गई, जिसे फूटना ही था। और वह फूट भी गया। नतीजा यह हुआ कि लाखों खरीदार आज भी ऐसे घरों की मासिक किस्त भर रहे हैं, जो बने नहीं हैं और ऐसे परियोजनाओं में फंसे हैं जिनका कोई स्पष्ट भविष्य नहीं है।

यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि रियल एस्टेट सेक्टर के दाम बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की सोची-समझी साजिश का परिणाम है। किसी भी रियल एस्टेट संपत्ति के दाम बढ़ने के पांच प्रमुख कारक होते हैं, और दाम बढ़ना इन पांचों पर ही निर्भर करता है।

पहला, भूमि का प्रकार बदलना और कृषि योग्य या बंजर भूमि का रिहाइशी या व्यावसायिक उपयोग वाला हो जाना। दूसरा, आसपास ऐसे बुनियादी ढांचे का विकास होना जिससे यह भूमि नए प्रकार में उपयोग लायक हो सके। तीसरा, उस भूमि के आसपास जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ उसकी व्यसायिक व्यवहार्यता और जीवन-स्तर में सुधार होना। चौथा, रियल एस्टेट पर प्रभाव डालने वाली समय-समय पर तेजी और मंदी से गुजरना। पांचवां, अर्थव्यवस्था में मजबूती, जिससे उस भूमि के दाम में स्पष्ट बढ़ोतरी हो।

पिछली पीढ़ियां जब संपत्ति या कहिए कि रियल एस्टेट संपत्ति खरीदती थीं, तो वे इसे शुरुआती चरणों में ही खरीद लेती थीं। ऐसे में ऊपर वर्णित दूसरे से पांचवें चरण के सभी फायदे उन्हें दो से तीन दशक में मिलते थे। लेकिन अब जो अपार्टमेंट हम खरीदते हैं, वह रियल एस्टेट डेवलपर से खरीदते हैं। इस नए मॉडल में पहले से तीसरे चरण का पूरा का पूरा फायदा डेवलपर या उस भूमि पर डेवलपर से पहले आने वाले लोग उठा ले जाते हैं। इतना ही नहीं, इस नए मॉडल का सबसे दुखदायी पहलू यह है कि रियल एस्टेट डेवलपर उस प्रॉपर्टी पर आगे भी कमाई करने की कोशिश करता है और कई बार सफल भी हो जाता है। यह कमाई घर खरीदारों से अग्रिम राशि के रूप में होती है। त्रासदी यह है कि अगर डेवलपर ईमानदार हो, तो सामान्य स्थिति में यह दुखदायी नहीं, बल्कि सुखदायी पहलू है। यूं कहें कि अगर बात यहीं खत्म हो जाए तो भी ठीक है, क्योंकि सामान्यतया यही होता आया है। असल दुखदायी पहलू तो उत्तरी भारत के रियल एस्टेट डेवलपर्स के मामले में दिखता है, जिनमें से ज्यादातर डेवलपर घर खरीदारों के पैसे उस प्रॉपर्टी में नहीं लगाकर कहीं और लगा देते हैं और बेचारा घर खरीदार ठगा का ठगा रह जाता है।

सवाल यह है कि इन सभी परिस्थितियों से बचते हुए घर कैसे खरीदा जाए। जवाब यह है कि खरीदा जा सकता है, और इसके लिए कुछ सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है। पहला, सिर्फ एक घर खरीदिए। वो घर खरीदिए जिसमें आपको रहना है, और जिससे किराये की बचत होती है। दूसरा घर मत खरीदिए। अगर आप रियल एस्टेट के कारोबारी नहीं हैं, तो सिर्फ निवेश के उद्देश्य से दूसरा घर खरीदने की सोचिए भी मत। और अगर आप रियल एस्टेट क्षेत्र के निवेशक हैं, तो इस लेख को पढ़ना यहीं बंद कर दीजिए क्योंकि यह लेख आपके लिए नहीं, बल्कि रियल एस्टेट क्षेत्र के पीड़ितों के लिए है।

दूसरा, अपनी औकात से ज्यादा फैलिए मत। कितना भी सुंदर घर क्यों न हो और उसके बारे में कितनी भी अच्छी बातें क्यों न कही जा रही हों, इतना ध्यान जरूर रखिए कि आपके घर की ईएमआइ आपके परिवार की पूरी कमाई के एक-तिहाई से ज्यादा कतई नहीं हो। और यह एक तिहाई रकम निचली नहीं, बल्कि ऊपरी सीमा है। अगर उससे कम में घर मिल रहा हो, तो वही खरीदिए। कुल जमा बात यह है कि सपनों का घर खरीदने और रियल एस्टेट दलालों के झांसे में मत उलझिए। बाद में जब आप तरक्की और कमाई कर लें, तो बेशक पहले वाला घर बेचकर थोड़ा और बढ़िया घर खरीदिए। याद रखिए, घर खरीदना कोई जूते या मोबाइल फोन खरीदने जैसा नहीं है कि थोड़ा कम-ज्यादा पैसे भी लग जाएं तो लंबी अवधि में जेब पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा।

तीसरा, घर खरीदिए जनाब, सपने मत खरीदिए। हालांकि रेरा लागू होने के बाद इस पहलू पर थोड़ा सुधार होने की उम्मीद है। लेकिन यह पता नहीं कि उससे कितना सुधार होगा। हकीकत यह है कि घर खरीदारों की असली दुखती रग औकात से बाहर के घर नहीं, बल्कि समय पर डिलीवर नहीं होने वाले घर हैं।

असल में रियल एस्टेट में निवेश को भी किसी भी अन्य निवेश की कसौटियों पर ही परखना चाहिए। इसमें लिक्विडिटी, सुरक्षा, पारदर्शिता, रिटर्न और इसी तरह की अन्य कसौटियां हैं। ज्यादातर लोग इस बारे में इसलिए गच्चा खा जाते हैं, क्योंकि जिस घर को आप रहने के लिए खरीदते हैं और जिसे निवेश के लिए खरीदते हैं, उन दोनों में बुनियादी अंतर यही है। रियल एस्टेट के सब्जबाग दिखाने वाले आपको हमेशा इस तरह के उदाहरण देंगे कि 40-50 वर्षो में अमुक घर का दाम 100 गुना तक बढ़ गया। उन्हें यह नहीं मालूम कि पिछले 38 वर्षो में बीएसई सेंसेक्स भी 300 गुना बढ़ चुका है। ये बीती बातें हैं। आज का सच यह है कि रियल एस्टेट डेवलपर सब्जबाग ज्यादा दिखाते हैं और आपके लिए उम्मीद कम छोड़ते हैं।

(इस लेख के लेखक धीरेन्द्र कुमार हैं जो कि वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)


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