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Equity vs Gold: अस्थिर बाजार में किस पर दांव लगाना सुरक्षित?

कोविड-19 के प्रसार के बाद वैश्विक बाजार ध्वस्त हो गए क्योंकि इसने सभी आर्थिक गतिविधियों और पैसा कमाने की संभावनाओं को प्रभावी ढंग से रोक दिया।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sat, 18 Jul 2020 12:00 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 12:29 PM (IST)
Equity vs Gold: अस्थिर बाजार में किस पर दांव लगाना सुरक्षित?
Equity vs Gold: अस्थिर बाजार में किस पर दांव लगाना सुरक्षित?

नई दिल्ली, अनुज गुप्ता। कोरोनवायरस महामारी के धीमा पड़ने के कोई संकेत फिलहाल नहीं दिख रहे हैं, ऐसे में निवेशकों ने बाजार में उतार-चढ़ाव की ऐसी अवधि में निवेश विकल्प कम होने पर चिंता शुरू कर दी है। एक संपत्ति के रूप में सोना हासिल करना आज भी भारत में एक अलग आकर्षण को कायम रखा है। सॉफिस्टिकेटेड आधुनिक बाजार के डायनामिक्स समीकरण को कॉम्प्लेक्स बनाते हैं, क्योंकि इसमें कई फैक्टर शामिल हैं। सुरक्षित विकल्पों से जुड़े बारहमासी प्रश्न ने एक बार फिर इक्विटी बाजार और सोने के बीच तुलना करने को मजबूर किया है। पिछले 10 वर्षों में दोनों बाजारों की ग्रोथ ट्रैजेक्टरी हमें यह बता सकती है कि अनिश्चितता के वर्तमान समय में बेहतर विकल्प क्या है। 

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दशक की बात: इक्विटी और सोने के बाजारों के ट्रेंड

पिछले 10 वर्षों में, भारतीय सूचकांक जैसे सेंसेक्स (बीएसई 30) और बीएसई-500 ने क्रमशः 9.05% और 8.5% का सीएजीआर दर्ज किया है। हालांकि, 2010 और 2015 के बीच की अवधि में 2012 की आर्थिक मंदी के बावजूद एक क्रमिक वृद्धि देखी गई - बाद में फरवरी 2016 से जनवरी 2020 तक वृद्धि देखी गई है। दिसंबर-2019 तक सेंसेक्स की वृद्धि लगभग 17,500 अंक से बढ़कर 40,000 अंक तक पहुंच गई, जो पूरे सेक्टर में इक्विटी से आए धन को बताता है, हालांकि इस बीच वैश्विक रुझानों के कारण उतार-चढ़ाव भी हुआ। 

कोविड-19 के प्रसार के बाद वैश्विक बाजार ध्वस्त हो गए, क्योंकि इसने सभी आर्थिक गतिविधियों और पैसा कमाने की संभावनाओं को प्रभावी ढंग से रोक दिया। इसके परिणामस्वरूप अप्रैल-2020 की शुरुआत तक भारतीय बाजार भी ढह गए और 23% से अधिक यानी 27,400 बेस अंक तक गिर गए। अधिकतम गिरावट 40% के आसपास थी। हालांकि, अप्रैल के बाद से रिकवरी काफी महत्वपूर्ण रही, उभरते बाजारों में उभरते ट्रेंड्स पर निवेशकों के रुख की वजह से यह देखने को मिला।  

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दूसरी ओर, सोने के बाजारों में तेज वृद्धि देखी गई है। लोग अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए सोने का उपयोग करते हैं, खासकर जब संकट उभरने के संकेत थे। 2008 में सोना ₹8,000 से 25,000 की ओर पहुंच गया था, जबकि 2016 के बाद सोने की कीमतें 31,000 रुपए प्रति 10 ग्राम सोने से भी आगे बढ़ गई। भारत में आर्थिक विकास की गति धीमी होने के परिणामस्वरूप पिछले वर्ष के भीतर ही कीमतों में 35,000 से लेकर 50,900 तक की वृद्धि हुई है। हालांकि, अप्रैल में सोने में निवेश ने 11% रिटर्न दिया, इसके बाद के महीनों में कई गुना रिटर्न बढ़ने की उम्मीद है। उथल-पुथल के समय में सोना और संबंधित असेट क्लास लंबे समय से सुरक्षित विकल्प रहे हैं और वर्तमान संकट इससे जुदा नहीं है। बढ़ते कोविड-19 मामलों ने वैश्विक विकास को प्रभावित किया है। कई वैश्विक वित्तीय संस्थानों और परामर्श फर्मों ने इक्विटी बाजारों में गिरावट का अनुमान लगाया है। 

प्रभावशाली कारक और निवेश विकल्प

2008 में प्रमुख बैंकों और दुनिया के बाजारों को टूटने के कगार पर लाने के बाद यूएस फेड और अन्य सेंट्रल बैंकों ने बड़े प्रोत्साहन पैकेजों से वैश्विक वित्तीय प्रणाली में रिकवरी लाई थी। बाद के वर्षों में कई बाजारों पर उसका प्रभाव जारी रहा। ग्रीस जैसे छोटे यूरोपीय देश कर्ज में डूब गए और यूरोपीय संघ के एकल बाजार को मजबूत करने के लिए यूरोपीय सेंट्रल बैंक को प्रोत्साहन देना पड़ा। महामारी के बाद के उपायों के संबंध में वैश्विक बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों को कम करने के लिए उत्सुकता दिखा रहे हैं। 

चूंकि, ब्याज दरों और सोने की कीमतों में नकारात्मक संबंध है। ऊपर उल्लेखित आर्थिक मंदी की स्थिति में इक्विटी बाजार बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जून-2020 के ग्रोथ फोरकास्ट में ग्लोबल ग्रोथ को 2020 के लिए 4.9% रेंज में रखा, जो अप्रैल के फोरकास्ट से 1.9% नीचे है। इसके अलावा आईएमएफ की अप्रैल-2020 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में 3% की गिरावट का अनुमान लगाया गया था, जो कि 2008 के वित्तीय संकट के दौरान बनी स्थिति से भी बदतर है। 

इसी तर्ज पर कंसल्टिंग फर्म डेलोइट का आउटलुक प्रमुख तकनीकी व्यवधानों को इंगित करता है, जिससे बाजारों और बैंकों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं और काम की प्रकृति बदल सकती है। इसमें बॉन्ड यील्ड, क्रूड की कीमतें और ब्याज दरों में और कमी की संभावना का जिक्र किया गया है। ये फैक्टर लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए किए गए हैं जो बाजारों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके साथ ही कोविड-19 महामारी की वजह से बैंकिंग संस्थानों और शॉर्ट-टर्म फाइनेंशियल जोखिमों और रेगुलेटरी कम्प्लायंस मुद्दे भी बाजारों को चेतावनी दे रहे हैं। कोविड-19 के दीर्घकालिक जोखिम, हालांकि, अनपेक्षित रूप से आकलन के लिए अप्रत्याशित हैं। संकट अब भी खत्म होता नहीं दिख रहा है।   

भारत सरकार ने हाल ही में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है। यह फाइनेंशियल मार्केट्स और बांड असेट क्लास को बहुत नुकसान पहुंचाएगा। लिक्विडिटी और सीमित गतिविधि के अधिक स्तर के साथ, अप्रत्याशित भविष्य के लिए सोने में निवेश का ट्रेंड कायम रहने की संभावना है। हालांकि, सोने की कई निवेश संभावनाओं पर ध्यान देना आवश्यक है, जो मुद्रास्फीति के ट्रेंड से मुकाबला कर सकती हैं।  

चूंकि, कोविड के समय में सोने की भौतिक संपत्ति में तेजी से वृद्धि हो रही है, इसलिए गोल्ड-बैक्ड ऑप्शन जैसे कि गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) एक भरोसे वाला विकल्प हैं। भारत में सोने के सकारात्मक प्रवाह ने इस साल की शुरुआत में 35 टन प्रति माह के औसत को पीछे छोड़ दिया है, जो कि मार्च 2020 से 39.8 टन है। वैश्विक स्तर पर, केंद्रीय बैंकों ने लंबे समय से सोने का रिकॉर्ड स्तर खरीद रखा है। यह संकेत देता है कि आगे बढ़ने वाले समय में बाजारों में तेजी रह सकती है। डिफॉल्ट रूप से इसका प्रभाव इक्विटी पर पड़ेगा और बाजार की अस्थिरता में यह अपना योगदान देगा। तो, ऐसे में फिलहाल तो सोना और सोने के समर्थन वाले साधन एक बेहतर निवेश विकल्प लग रहे हैं। 

(लेखक एंजल ब्रोकिंग लिमिटेड में कमोडिटीज एंड करेंसीज रिसर्च विभाग में डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)


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