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निवेश के लिए आसान विकल्प की बेहतर, पढ़िए एक्सपर्ट की सलाह

विशेषज्ञ लोग जटिल चीजों का सामना करते हैं, इसलिए अक्सर उनकी बातें भी जटिल हो जाती हैं। इसलिए हम यह मानकर चलते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जो जटिल भाषा बोलता है, वह विशेषज्ञ है।

By Shubham ShankdharEdited By: Published: Sun, 11 Feb 2018 10:44 AM (IST)Updated: Sun, 11 Feb 2018 06:30 PM (IST)
निवेश के लिए आसान विकल्प की बेहतर, पढ़िए एक्सपर्ट की सलाह
निवेश के लिए आसान विकल्प की बेहतर, पढ़िए एक्सपर्ट की सलाह

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। सरल और जटिल सिद्धांत में से जटिल को चुनना मानव स्वभाव है। हम अक्सर किसी समस्या के सरल समाधान को पहले ही यह मानकर खारिज कर देते हैं कि यह काम नहीं करेगा। निवेश के मामले में भी हम जटिल को चुनने में ज्यादा भरोसा रखते हैं। असल में यह गलत अवधारणा है। जो जटिल है, वह बेहतर ही होगा, ऐसा जरूरी नहीं है। पर्सनल फाइनेंस से लेकर निवेश तक किसी भी चुनाव के समय हमें सरल की ओर जाने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा प्रोडक्ट चुनना जरूरी नहीं है, जिसे समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी पड़े।

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बतौर आधुनिक ग्राहक हमें इस बात पर भरोसा करना सिखाया जाता है, ‘दुनिया मेरी समझ से ज्यादा जटिल है। फैसले लेने के लिए मुङो विशेषज्ञों की सलाह लेने की जरूरत होगी।’ विशेषज्ञ लोग जटिल चीजों का सामना करते हैं, इसलिए अक्सर उनकी बातें भी जटिल हो जाती हैं। इसलिए हम यह मानकर चलते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जो जटिल भाषा बोलता है, वह विशेषज्ञ है। ऐसी कोई भी बात, जो जटिल तरीके से कही जाए, वो अच्छी होती है।

मैंने एक दशक पहले लिखा था कि पर्सनल फाइनेंस के मामले में अच्छे फैसले करने की राह में यह एक बाधा है। पर्सनल फाइनेंस के सभी मामलों जैसे बैंक खाते से लेकर क्रेडिट कार्ड, म्यूचुअल फंड, बीमा और ब्रोकरेज अकाउंट तक सभी उत्पादों को हमारी इसी सोच के हिसाब से तैयार किया गया है कि जो जटिल है, वो अच्छा है और जो ज्यादा जटिल है, वो ज्यादा अच्छा है। कुछ समय पहले, रिलेशनशिप मैनेजर (बैंकिंग सेक्टर का सेल्समैन) के तौर पर काम करने वाले युवक ने मुझसे एसेट एलोकेशन फॉमरूले के बारे में पूछा था। वह अपने क्लाइंट के लिए एक ऐसा फॉमरूला तैयार करना चाहता था कि उन्हें कितना पैसा किस एसेट में रखना चाहिए। मैंने उसे सच बता दिया। मेरा स्पष्ट कहना था कि किसी के एसेट एलोकेशन का फैसला उसकी परिस्थितियों के आधार पर ही किया जा सकता है। ऐसा सोचना कि इसका कोई फॉर्मूला भी हो सकता है, यह केवल गलतफहमी है। वह सेल्समैन बहुत निराश हो गया। उसने उम्मीद की थी कि मैं कोई अल्फा, गामा, सिग्मा, पाई और ताओ की बातें करूंगा। कुछ कैलकुलस की बातें होतीं तो उसे और अच्छा लगता। यह उसके लिए किसी क्लाइंट को तैयार करने में प्रभावी रहता। उसने मुङो बताया कि वह निराश हुआ है। वह मुझे समझाना चाहता था कि कोई ना कोई फॉर्मूला जरूर है, या तो मुङो पता नहीं है, या फिर मैं उसे बताना नहीं चाहता हूं।

वारेन बफेट की लोकप्रिय कहावत है, ‘अगर अच्छा निवेशक बनने के लिए कैलकुलस और बीजगणित की जरूरत होती तो मुङो वापस अखबार ही बांटना पड़ता।’ एक सफल निवेशक बनने के लिए किसी को जोड़, घटाना, गुणा और भाग से ज्यादा किसी गणित की जरूरत नहीं होती। हालांकि, जटिलता की बांग देने वाले किसी पेशवर को यह मत कहिए, जो निवेश की दुनिया को संक्रमित करने में लगा हो।

क्रेडिट रेटिंग्स से कर्जदार की योग्यता का सटीक आकलन नहीं हो सकता

असल में जटिलता की यह बीमारी पर्सनल फाइनेंस से इतर निवेश में और कॉरपोरेट फाइनेंस के क्षेत्र में भी फैली हुई है। मुङो करीब 15 साल पहले क्रेडिट रेटिंग पर एक बैंकर से हुई चर्चा याद आ गई। उस वक्त मैं बहुत मासूमियत से यह माना करता था कि कर्जदार योग्य है या नहीं, यह जानने में क्रेडिट रेटिंग जरूर काम आती होगी। लेकिन उस व्यक्ति ने मुङो जो बताया, वो किसी आश्चर्य जैसा था। उसने बताया, ‘इस मामले में असल में केवल दो ही रेटिंग होती है, पहला, जो पैसा वापस करेगा और दूसरा, जो पैसा वापस नहीं करेगा। एक बैंकर अच्छी तरह से जानता है कि कौन सा कर्जदार किस श्रेणी का है। रेटिंग्स केवल कुछ फॉमरूलों में काम आती हैं।’ इस हिसाब से कहा जाए तो दस या इससे ज्यादा रेटिंग्स, आउटलुक और वेरिएशन जो क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां जारी करती हैं, वो सब केवल सामान्य गतिविधियां हैं।

जटिलता के प्रति आकर्षण एक भ्रम

हाल ही में मैंने फरनाम स्ट्रीट ब्लॉग पर इस विषय में एक लेख पढ़ा था कि क्या लोगों में जटिलता के प्रति जन्मजात आकर्षण होता है। लेख में कहा गया था कि यह एक जन्मजात भ्रम है, जिसकी वजह से लोग जटिल सिद्धांतों पर ज्यादा भरोसा करने लगते हैं। दो अवधारणाओं में से हम लोग ज्यादा जटिल वाली को चुनना चाहते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि किसी परेशानी का हल खोजते हुए हम आसान समाधान को यह सोचकर खारिज कर देते हैं कि यह काम नहीं करेगा और जटिल रास्ते की ओर बढ़ जाते हैं। यह संभवत: सच तो है, लेकिन हम इसके गुलाम नहीं हैं। तमाम अवधारणाओं की ही तरह हम जागरूक रहकर इससे भी बच सकते हैं और जो बेहतर है, उसे चुन सकते हैं।

यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।


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