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किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जमीनी स्तर पर कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार की है जरूरत

भारत में कृषि क्षेत्र अभी भी लाखों लोगों की आजीविका का प्राथमिक स्रोत है और देश में कुल कार्यबल का 40 फीसद से अधिक अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करता है।

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 07 Aug 2020 11:50 AM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 07:15 PM (IST)
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जमीनी स्तर पर कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार की है जरूरत
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जमीनी स्तर पर कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार की है जरूरत

नई दिल्‍ली, डॉ. डी के अग्रवाल। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कृषि क्षेत्र की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करता है। यह क्षेत्र उद्योगों के विशाल क्षेत्र के लिए भोजन, चारा और कच्चे माल की सप्लाई करता है। भारत में कृषि क्षेत्र अभी भी लाखों लोगों की आजीविका का प्राथमिक स्रोत है और देश में कुल कार्यबल का 40 फीसद से अधिक अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करता है। इसलिए, न केवल ग्रामीण लोगों के बीच खरीद क्षमता उत्पन्न करने के लिए, बल्कि कीमतों में स्थिरता, मांग में बढ़ोत्‍तरी और रोजगार सृजन के लिए कृषि क्षेत्र में लगातार वृद्धि अनिवार्य है। 

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माननीय प्रधानमंत्री ने 28 फरवरी, 2016 को बरेली में राष्ट्र के नाम संबोधन में किसानों की आय को दोगुना करने के विजन की घोषणा की। इस विजन को धरातल पर उतारने के लिए छह साल (2016-17 से 2022-23) की समय सीमा को निश्चित किया गया था। किसानों की आय को दोगुना करने के रोडमैप में फसलों की उत्पादकता में वृद्धि, पशुधन के उत्पादन में वृद्धि, इनपुट के उपयोग की दक्षता में सुधार, फसल गहनता में वृद्धि, अधिक मूल्य वाली विविध फसलों की खेती, किसानों द्वारा बेहतर कीमतों की प्राप्ति, और गैर-कृषि नौकरियों में बढ़ोतरी को शामिल किया गया है। 

एक बड़े कदम के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से कृषि निर्यात नीति 2018 को मंजूरी दी है। इस संबंध में, कृषि उत्पादों का निर्यात इस उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस कदम से कृषि और खाद्य प्रसंस्करण निर्यात में रोजगार के व्यापक अवसर पैदा होने, पारंपरिक कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी के खाद्य प्रसंस्करण और कृषि निर्यात की ओर स्थानांतरित होने और युवाओं की बढ़ती अकुशल, अर्ध-कुशल और कुशल कार्यबल के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होने की उम्मीद है।

भारत को विश्व स्तर पर कई कृषि और संबंधित उत्पादों का प्रमुख उत्पादक माना जाता है। विश्व स्तर पर, भारत को विविध कृषि जलवायु क्षेत्रों की उपलब्धता के साथ दूध, केला, आम, अमरूद, पपीता, अदरक, भिंडी, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, चाय, गन्ना, काजू, अनाज, नारियल, सलाद पत्ता (लेट्टुस), चीकरी, इलायची और काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता है। भारत दुनिया की 2.4 फीसद भूमि और 4 फीसद जल संसाधन के साथ दुनिया की लगभग 18 फीसद आबादी का भरण-पोषण कर रहा है। इसलिए उत्पादकता, फसल कटाई के पूर्व और पश्चात प्रबंधन, प्रसंस्करण और मूल्य-संवर्धन, प्रौद्योगिकी का उपयोग और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निरंतर प्रयास भारतीय कृषि के लिए आवश्यक हैं। 

सरकार का यह विजन इस विश्वास को मजबूत करता है कि कृषि क्षेत्र, जो भारत के परिश्रमी किसानों द्वारा संचालित है, देश के विकास मार्ग के प्रमुख स्तंभों में से एक है और आने वाले समय में इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर विकास संभावनाएं है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि से किसानों के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान होगा और उनकी आय का स्तर भी बढ़ेगा। 

महामारी Covid-19 की मौजूदा कठिन परिस्थितियों में, कृषि सबसे नाजुक क्षेत्र है। ऐसे समय में, हमारे पास कृषि क्षेत्र को आवश्यक गति प्रदान करने के लिए माननीय वित्त मंत्री द्वारा हाल ही में घोषित राहत उपायों द्वारा और प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि के विकास को अधिक से अधिक बढ़ावा देने का अवसर है। इससे मैन्‍युफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास भी होगा और देश की समग्र आर्थिक विकास की गति भी बढ़ेगी। 

किसानों और कृषि क्षेत्र के उपायों में ग्रामीण चिंता को दूर करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, किसानों के कल्याण को बढ़ावा देने, मैन्‍युफैक्चरिंग क्षेत्र में मांग और विकास को समर्थन देने, रोजगार सृजित करने और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को प्राप्त करने में सहायता करने की दिशा में ध्यान केंद्रित किया गया है। रबी उत्पादनों का फसल उपरांत प्रबंधन और खरीफ फसलों के लिए प्रारंभिक कार्य को प्रभावी ढंग से करने के लिए, नाबार्ड के माध्यम से 30,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूंजी कोष और 2 लाख करोड़ रुपये का रियायती ऋण किसानों को प्रदान किए गए हैं। किसानों को एपीएमसी में केवल लाइसेंसधारियों को कृषि उपज बेचने का मानदंड को हटाने की घोषणा बेहद सराहनीय है क्योंकि यह उन्हें एक आम बाजार में आकर्षक कीमतों पर अपनी उपज बेचने के लिए पर्याप्त विकल्प प्रदान करेगा। 

किसानों को बेहतर मूल्य की प्राप्ति के लिए सक्षम बनाने के उद्देश्य से निजी निवेश को आकर्षित करने और कृषि क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन और अनाज, खाद्य तेलों, तिलहन, दालों, प्याज और आलू सहित कृषि खाद्य सामग्री को नियंत्रण-मुक्त करने की घोषणा की गई है। किसानों को एक बेहतर मूल्य प्राप्ति की दिशा में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ६ महीने के लिए ऑपरेशन ग्रीन का विस्तार टमाटर, प्याज और आलू (टॉप) से सभी फलों और सब्जियों (टोटल) के लिए किया गया है। इससे बर्बादी कम होगी और उपभोक्ताओं के लिए सस्ते उत्पादों का बढ़ावा मिलेगा। 

कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए एक लाख करोड़ रुपये के आवंटन से किसानों के लिए खेतों के आसपास के क्षेत्र में कोल्ड चेन और फसल-पश्चात प्रबंधन के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाएगा। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) के तहत मछुआरों के लिए 20,000 करोड़ रुपये के आवंटन से समुद्री, अंतर्देशीय मत्स्य और जलीय कृषि के उत्पादन और निर्यात को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिलेगा और मछली पकड़ने के बंदरगाह, कोल्ड चेन और बाजारों के लिए बुनियादी ढांचे को और मजबूती मिलेगी। 15,000 करोड़ रुपये के पशुपालन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड की स्थापना की घोषणा से डेयरी प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और पशु चारा बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को जबरदस्त समर्थन मिलेगा। 

ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका में सहायक गतिविधियों को बढ़ावा, आय में वृद्धि, महिलाओं की क्षमता का विकास और उपभोक्ताओं को अधिक गुणवत्ता वाले शहद की डिलीवरी और मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की गई है। इसके अलावा, भारत में हर्बल खेती को बढ़ावा देने और साथ ही आने वाले समय में किसानों की आय में अहम बढ़ोतरी के लिए 4,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ अगले 2 वर्षों में 10 लाख हेक्टेयर को हर्बल खेती के दायरे में लाए जाने का निर्णय लिया गया है। 

कृषि मार्केटिंग सुधारों को लागू करने के निर्णय, कृषि उपज मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता का आश्वासन और 100 फीसद पशुओं का टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पशु रोग कार्यक्रम के तहत 13,343 करोड़ रुपये के कुल व्यय से कृषि और संबद्ध क्षेत्र को बहुत आवश्यक रफ्तार मिलेगी। 

किसानों, कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए इन कई राहत उपायों से किसानों की आय दोगुनी करने और आत्म-निर्भर भारत के निर्माण करने के हमारे माननीय प्रधान मंत्री के विजन के साकार होने की संभावना है। इसके साथ ही, क्लस्टर आधारित रणनीति के तहत माइक्रो फूड एंटरप्राइजेज़ (MFE) की औपचारिकता के लिए 10,000 करोड़ रुपये का फंड हमारे माननीय प्रधान मंत्री के 'वोकल फॉर लोकल' के विजन को और मजबूत करेगा और विश्व स्तर पर हमारी पहुंच बढ़ेगी। 

अन्य दूरगामी सुधारों के अलावा, किसानों की आय को दोगुना करने के लिए केंद्रीय बजट 2020-21 में कृषि क्षेत्र को लेकर एक्शन पॉइंट पर व्यवस्थित फ़ोकस काफी उत्साहजनक है। बजट में कृषि, सिंचाई और संबद्ध गतिविधियों के लिए 1.6 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जिसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने, कृषि आय बढ़ाने, खपत-मांग बढ़ाने और भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊर्जा प्रदान करने के लिए बढ़ावा देना है। 

इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों के दौरान, कृषि क्षेत्र के विकास और किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कई तरह की योजनाओं और पहलों की घोषणा की गई है। इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएं मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार(NAM) के तहत अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का शुभारंभ, प्रधानमंत्री आवास बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), समर्पित ऑनलाइन इंटरफ़ेस ई-कृषि संवाद, किसान उत्पाद संगठनों (FPQ), माइक्रो इरिगेशन फंड (MIF), पशुधन, मछुआरों और अन्य लोगों के लिए योजनाओं के अनुकूल कराधान हैं। 

आगे हम देखते है कि, छोटी अवधि में, किसानों के साथ-साथ कृषि प्रसंस्करण उद्योगों के लिए लिक्विडिटी बढ़ाने की आवश्यकता है, और जहां भी संभव हो, कृषि क्षेत्र और किसानों पर से महामारी Covid-19 के प्रभाव को कम करने के लिए और इस क्षेत्र के विकास की रफ्तार को तेजी प्रदान करने और इस तरह कृषि आय बढ़ाने के लिए उपाय प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में होना चाहिए, कृषि प्रसंस्करण/खाद्य प्रॉसेसरों/फूड पार्कों के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के लिए 12 महीनों की अवधि के लिए 4% ब्याज छूट होना चाहिए, कृषि प्रसंस्करण/ प्रसंस्कृत खाद्य मैन्‍युफैक्चरर्स के सभी उत्पादों के लिए जीएसटी स्लैब में 4 फीसद की तत्काल कमी आवश्यक है। 

मध्यम और लंबी अवधि में, कृषि क्षेत्र में कृषि उत्पादकता और किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए व्यापक सुधार की आवश्यकता है। किसानों की पूंजी की लागत को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ताकि वे कम लागत की उधारी पर कृषि गतिविधियों को करने में सक्षम हो सकें। गांवों की आसान पहुंच के भीतर, विशेष रूप से अत्यंत छोटे किसानों के लिए पर्याप्त और कुशल वेयरहाउसिंग की सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। इससे वे अपनी उपज को न्यूनतम कीमतों पर स्टोर कर सकते हैं, और ऋण के लिए भंडारण की रसीद का उपयोग कर सकते हैं, या बाद में कीमत बढ़ने पर अनाज को बाजार में बेच सकते हैं। इसके अलावा, आगे जिन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना चाहिए उनमें किसानों को मशीनीकृत खेती को अपनाने के लिए शिक्षित करना, बर्बादी को 30 से 35 फीसद के मौजूदा स्तर से 10 फीसद तक कम करना, कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, तकनीकी सुधार के साथ कृषि को और अधिक आधुनिक बनाना अहम है। 

संक्षेप में, कृषि भारत में आम जनता की आजीविका के लिए एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। इसका मांग और सप्लाई को लेकर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से गहरा संबंध होता है। आगे बढ़ते हुए, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि निर्यात को बढ़ावा देना भारत के लिए वैश्विक मानचित्र पर स्थान बनाने और किसानों की आय की बढ़ोतरी में योगदान करने के लिए काफी महत्व रखता है। कृषि क्षेत्र के विकास और निर्यात को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन के लिए कुछ सुझाव हैं: 

  • कृषि व्यवसाय की सुगमता पर ध्यान दें: कृषि क्षेत्र की वृद्धि के लिए व्यवसाय करने में आसानी का होना काफी अहम है। देश भर में विभिन्न नीतिगत विकास, प्रोत्साहन की पेशकश, कृषि सहायक संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं के लिए एक स्थान पर जानकारियाँ उपलब्ध कराने के लिए माहौल को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। 
  • क्लस्टर अप्रोच का विकास और बढ़ावा : क्लस्टर अप्रोच को बढ़ावा देने और कृषि आधारित अधिक खाद्य प्रसंस्करण क्लस्टर स्थापित करने से मूल्य श्रृंखला में विभिन्न चरणों में लगातार बुनियादी ढाँचे की सुविधा को बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत उद्यमियों को लंबे समय तक सहायता मिलेगी।
  • कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करते रहने की आवश्यकता: सड़क तक पहुंच, ग्रामीण क्षेत्रों से संपर्क को बेहतर करने और कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता है। कच्चे माल के सप्लायरों और प्रसंस्करण यूनिटों के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए बाजारों का गांवों से संपर्क बेहतर करने की प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आने वाले समय में पीपीपी मोड पर स्थलीय बन्दरगाह सहित लॉजिस्टिक्स, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और बन्दरगाह के विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • कृषि क्षेत्र में प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ाना: छोटे पैमाने पर और असंगठित खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों में आमतौर पर काफी अधिक संख्या में अकुशल, अर्ध-कुशल और कुशल ग्रामीण श्रमिक होते हैं। बेहतर और अनुकूल कामकाजी माहौल बनाने के लिए, जनशक्ति के प्रशिक्षण और कौशल विकास, निरंतर प्रौद्योगिकी अपग्रेडेशन, विविधीकरण और उत्पादों की मार्केटिंग, खाद्य सुरक्षा और आवश्यकताओं के बारे में जानकारियों में बढ़ोतरी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) और प्रौद्योगिकी अपग्रेडेशन पर ध्यान दें: अनुसंधान और विकास, विशेष रूप से पैकेजिंग, उत्पाद विकास, खाद्य प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में, को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। अनुसंधान संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए प्रायोजित (स्पॉन्सर्ड) अनुसंधान और अनुदानों के प्रावधान को समय-समय पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • गुणवत्ता मानकों/प्रमाणन का कार्यान्वयन: वैश्विक मानचित्र पर भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए खाद्य उत्पादों की न्यूनतम गुणवत्ता/मानक का पालन आवश्यक है। बड़े पैमाने पर सेमिनारों, कार्यक्रमों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से खाद्य उत्पादों के मानकों की गुणवत्ता के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

 

(लेखक डॉ. डी के अग्रवाल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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