Home Loan लेकर घर खरीदते समय न भूलें कानूनी सलाह लेना, जानें क्यों जरूरी है ऐसा करना
बैंक द्वारा नियुक्त वकील सिर्फ इस बात की जांच करता है कि मकान का टाइटल यानी स्वामित्व से जुड़ी जानकारी सही है या नहीं।
नई दिल्ली, बलवंत जैन। हाल में मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि वह एक मकान खरीदने वाले हैं। मैंने उन्हें घर खरीदने से पहले किसी एक्सपर्ट से लीगल ओपिनियन लेने का सुझाव दिया। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि 'बैंक अपनी ओर से जरूरी जांच-पड़ताल कर रहा है, ऐसे में कानूनी राय के लिए हमें अलग से पैसे खर्च करने की क्या जरूरत है।' इसके बाद मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि घर खरीदते समय बैंक जो जरूरी जांच-पड़ताल करता है, उसके बाद भी कुछ चीजों को लेकर विशेषज्ञ से राय लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके बाद मेरे दिमाग में इस विषय पर आलेख लिखने का विचार आया। संपत्ति की लेनदेन से जुड़े कानून काफी जटिल होते हैं और कई बार काफी जानकार व्यक्ति को भी इसे समझने में काफी अधिक दिक्कत पेश आती है।
आइए यह समझने की कोशिश करते हैं कि बैंक के वकील द्वारा जांच-पड़ताल किए जाने के बावजूद स्वतंत्र तरीके से कानूनी राय लेना क्यों अहम है।
संपत्ति से जुड़े कानूनों का मूल्यांकन
बैंक द्वारा नियुक्त वकील सिर्फ इस बात की जांच करता है कि मकान का टाइटल यानी स्वामित्व से जुड़ी जानकारी सही है या नहीं। साथ ही संपत्ति के टाइटल को लेकर किसी तरह का विवाद तो नहीं है। यहां आप फर्ज करिए कि आप किसी गंभीर बीमारी के इलाज से पहले दूसरे डॉक्टर से भी एक राय जरूर ले लेते हैं। इसी तरह संपत्ति खरीदने से पहले अपने वकील से एक बार सलाह करना काफी अच्छा रहता है क्योंकि आपको लेंडर द्वारा नियुक्त वकील की पेशेवर क्षमता के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।
वहीं, प्रोपर्टी के डेवलपमेंट और निर्माण को लेकर स्थानीय नगर निकाय और राज्य सरकार के कानून में अंतर हो सकता है। ऐसे में स्वतंत्र स्तर पर ली गई राय काफी अहम हो सकती है क्योंकि कई बार लेंडर के वकील इन बातों पर खास ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे में आपकी प्रोपर्टी बाद में किसी तरह के पचड़े में ना पड़े, इसके लिए कुछ अतिरिक्त राशि खर्च करने लेने में कोई बुराई नहीं है।
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प्रोपर्टी लेते समय स्वतंत्र कानूनी राय इसलिए भी होती है अहम
लेंडर का वकील प्रोपर्टी की मार्केटिबिलिटी और टाइटल को लेकर ही नियमों के अनुपालन की तफ्तीश करता है। लेकिन हमारे लिए घर खरीदने का मतलब सिर्फ पैसे जमा करना और पॉजेशन प्राप्त करना भर नहीं है। इसमें अन्य नियमों के अनुपालन भी शामिल होते हैं। इसके अलावा बचत का पहलू भी शामिल है। उदाहरण के लिए खरीदार को स्टांप ड्यूटी का खर्च वहन करना होता है लेकिन कई तरह की छूट की जानकारी नहीं होने पर आपको अधिक स्टांप ड्यूटी का भुगतान करना पड़ सकता है। किसी पुरानी प्रोपर्टी को खरीदते समय बिल्डिंग की आयु और इस आधार पर स्टांप शुल्क में छूट मिल सकती है कि उसमें लिफ्ट है या नहीं। कई राज्य इस तरह की छूट देते हैं। प्रोपर्टी के स्टांप ड्यूटी का मूल्यांकन अधिक होने पर लीगल कंस्लटैंट शुल्क में छूट के लिए अपील दायर कर सकते हैं।
लोग आम तौर पर रियल एस्टेट एजेंट्स को प्रोपर्टी की खरीद से जुड़े दस्तावेज तैयार करने के लिए कहते हैं। वे बस पुराने दस्तावेज को ध्यान में रखते हुए बस जरूरी जानकारी में ही बदलाव करते हैं, जबकि हर मामले में स्थिति अलग होती है। केवल सक्षम और पेशेवर वकील ही समझौते से जुड़ी विभिन्न शर्तों के निहिर्ताथ को अच्छे से समझ सकता है। ऐसे में ड्राफ्टिंग और एग्रीमेंट को समझने के मद में कुछ पैसा बचाना कई बार बहुत भारी पड़ता है।
इनकम टैक्स से जुड़ी इन बातों को समझना भी है जरूरी
प्रोपर्टी के संदर्भ में इनकम टैक्स से जुड़ी चीजों को भी समझना जरूरी होता है। इसी कड़ी में आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि प्रोपर्टी की कीमत और स्टांप ड्यूटी वैल्यूशन में 05 फीसद से ज्यादा अंतर होने पर उसे आय माना जाता है और उस पर टैक्स देनदारी बनती है। उदाहरण के लिए अगर आप 40 लाख रुपये में कोई मकान खरीदने जा रहे है लेकिन उसका स्टांप ड्यूटी वैल्यूशन 50 लाख रुपये बैठ रहा है, तो ऐसे में आपको 10 लाख रुपये के अंतर पर टैक्स देना पड़ सकता है। इसलिए ऐसी प्रोप्रटी को खरीदने से बचना चाहिए और एक्सपर्ट की राय जरूर लेनी चाहिए।
इन सभी पहलुओं के साथ मैं जोर देकर इस बात की हिमायत करता हूं कि हमें प्रोपर्टी खरीदने से पहले विधिक सलाह जरूर लेनी चाहिए। इससे होता ये है कि आप कानूनी सलाह के लिए थोड़ी सी फीस भरकर बड़े वित्तीय खर्च बचा लेते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो जाता है कि आप भविष्य में किसी और कानूनी पचड़े में नहीं पड़ेंगे।
(लेखक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट व ApnaPaisa के चीफ एडिटर हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)