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बचत को प्रोत्साहन के लिए टैक्स ब्रेक बदलना जरूरी

भारत में उच्च वेतन पाने वालों के छोटे से वर्ग को छोड़कर ज्यादातर लोग बचत या निवेश केवल टैक्स बचाने के लिए करते हैं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 24 Dec 2017 07:19 PM (IST)Updated: Sun, 24 Dec 2017 07:20 PM (IST)
बचत को प्रोत्साहन के लिए टैक्स ब्रेक बदलना जरूरी
बचत को प्रोत्साहन के लिए टैक्स ब्रेक बदलना जरूरी

भारत में वेतन पाने वाले ज्यादातर लोग बचत केवल इसलिए करते हैं ताकि अलग-अलग टैक्स ब्रेक की मदद से उन्हें टैक्स में कुछ छूट मिल जाए। इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है सेक्शन 80 सी का। लेकिन नीति के स्तर पर इस सेक्शन में बड़ी खामियां हैं। पढ़ाई की फीस जैसे खर्च को इस श्रेणी में रखने से लोगों की बचत पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसी तरह टर्म इंश्योरेंस को भी 80सी से बाहर करने के बारे में सरकार को सोचना चाहिए।

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वित्त वर्ष 2018-19 का आम बजट आने में बमुश्किल छह हफ्ते का वक्त शेष है। यह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद पहला और वर्तमान केंद्र सरकार के कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट होगा। इस लिहाज से इस बजट पर लोगों की निगाहें ज्यादा टिकी हुई हैं। हालांकि, देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर बजट का जो भी असर पड़े, लेकिन लोगों के लिए जमा और टैक्स पर बचत व बीमा जैसे विकल्पों के चयन के लिए कदम उठाने का यह सही समय है।

यह एक सच्चाई है कि भारत में उच्च वेतन पाने वालों के छोटे से वर्ग को छोड़कर ज्यादातर लोग बचत या निवेश केवल टैक्स बचाने के लिए करते हैं। अगर आप 10 या 20 फीसद वाली टैक्स स्लैब में आते हैं तो टैक्स ब्रेक को समझना और भी मुश्किल हो जाता है। नोटबंदी ने अमीरों पर निशाना साधा, लेकिन केवल उन अमीरों पर जिनके पास नकदी थी। कागजों पर जो अमीर हैं, उन पर कोई परेशानी नहीं हैं।

ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें टैक्स ब्रेक के बारे में समझाने के लिए ज्यादा सहयोग की जरूरत है ताकि वे ज्यादा बचत कर सकें। टैक्स ब्रेक से जुड़ी सबसे बड़ी बचत आयकर कानून के सेक्शन 80 सी के तहत होती है। इनमें अलग-अलग एसेट की मदद से 1.50 लाख रुपये तक की बचत होती है। इसमें ईएलएसएस इक्विटी म्यूचुअल फंड, यूलिप, बैंक के एफडी, ईपीएफ, एनपीएस, सुकन्या समृद्धि जैसे कई घटक शामिल हैं।

हालांकि कुछ खर्च भी ऐसे हैं, जिन पर 80 सी के तहत छूट मिलती है। इसमें सबसे बड़ा है बच्चों की स्कूल फीस और ज्यादातर करदाता इस विकल्प का इस्तेमाल भी करते हैं। इस मामले में मेरा मत है कि स्कूल या कॉलेज की फीस पर टैक्स में छूट तो मिलनी चाहिए लेकिन इन्हें बचत और निवेश के साथ जोड़कर सरकार लोगों की बचत को कम कर देती है। 80 सी को पूरी तरह से वित्तीय बचत के रूप में होना चाहिए, जिसका मतलब है ऐसा पैसा, जिसे आप जरूरत पड़ने पर निकाल सकें। इसमें किसी खर्च को शामिल करने से बचत पर नकारात्मक असर पड़ता है। पढ़ाई की फीस को अलग से कर योग्य आय में से घटाया जाना चाहिए, न कि 80 सी का हिस्सा बनाकर।

टर्म इंश्योरेंस का मामला भी इसी तरह का है। इस संदर्भ में हमारे कानून और नीति की सबसे बड़ी कमी है बचत के लिए बीमा पॉलिसी और लाइफ कवर के लिए बीमा पॉलिसी के बीच फर्क नहीं कर पाना। इसके कई दुष्प्रभावों में से एक यह है कि बचत करने वाले पर्याप्त टर्म इंश्योरेंस नहीं खरीदते हैं। ऐसे में जबकि इरडा और बीमा उद्योग जमा होने वाले प्रीमियम पर चिंता जता रहे होते हैं, उस वक्त कोई भी इस पर चर्चा नहीं करता है कि हम भारतीय टर्म इंश्योरेंस कितना खरीदते हैं।

इस सबका एक अपराधी, जिसे आसानी से खत्म भी किया जा सकता है, वह है टैक्स ब्रेक के तरीके में बदलाव। टर्म इंश्योरेंस एक बेहद जरूरी खर्च है, बचत नहीं। इसे 80 सी के तहत बचत और अन्य बीमा योजनाओं के साथ रखने के बजाय इस पर अलग से छूट मिलनी चाहिए। इसका कोई अन्य विकल्प नहीं होना चाहिए। कोई भी बीमा योजना जिसमें पूरी तरह से लाइफ कवर के अतिरिक्त कोई भी घटक शामिल हो, उसे इससे बाहर रखा जाना चाहिए। संभवत: यही वह तरीका है, जिससे भारत में लोगों को जीवन बीमा की ओर आकर्षित किया जा सकता है। ऐसा होने से ही लाइफ कवर वाले बीमा में लोग ज्यादा पैसा लगाने को प्रोत्साहित होंगे।

वैसे एक और भी आसान तरीका है, ऐसा करने के लिए। वह तरीका ऐसा हो सकता है कि एक साधारण सा कानून लाया जाए, जिसमें तब तक किसी व्यक्ति को नॉन-टर्म इंश्योरेंस नहीं बेचा जाए, जब तक कि पिछले साल के रिटर्न के हिसाब से उसकी 10 साल की कमाई के बराबर के मूल्य का टर्म इंश्योरेंस उसके पास नहीं हो। जो लोग आयकर के दायरे में नहीं आते हैं या रिटर्न नहीं भरते हैं, उनके लिए लिए भी टर्म इंश्योरेंस की एक न्यूनतम राशि तय की जानी चाहिए। इसके बाद किसी और कदम की जरूरत नहीं रह जाएगी। ऐसा होते ही पूरे बीमा उद्योग की मशीनरी टर्म इंश्योरेंस की ओर जुट जाएगी। क्या यह हो सकता है? मेरे ख्याल से इसमें कोई नुकसान नहीं है।

क्या लोग टैक्स ब्रेक में ऐसे किसी आधारभूत बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं? यह तभी संभव है सरकार इन टैक्स ब्रेकों को लेकर रणनीतिक तरीके से सोचने की बजाय यह सोचे कि कैसे इनसे लोगों की बचत और निवेश को आकार मिलता है। कैसे लोग इनके बहाने से अपने बुढ़ापे के लिए पूंजी बचाते हैं। निश्चित रूप से पढ़ाई की फीस जैसे घटकों को 80 सी में शामिल करना अदूरदृर्शी भरा निर्णय है और इसका परिणाम भी उल्टा होता है। इन कमियों को दूर किया जाना चाहिए।

(यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।)


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