आपके लिए कौन कर रहा है निवेश से जुड़े फैसले? एल्गोरिदम की सलाह पर चलने की जगह खुद लें निर्णय
एल्गोरिदम के जमाने में कंपनियां आपके सामने वही पेश करती हैं जो आकर्षक लगता है। सामान्य जीवन में इससे कितना फर्क पड़ता है यह कहना मुश्किल है। ऐसे में जब भी कोई लिंक या पोस्ट आपके पास पहुंचे तो विरोधी नजरिये उसे जांचने और परखने का प्रयास कीजिए।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। एल्गोरिदम एक नया प्रतीक बन गया है, अच्छाई और बुराई दोनों का। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निग और एल्गोरिदम के जादुई तरीके से कारगर सिद्ध होने का दावा ढेर सारे नए-नए प्रोडक्ट और सर्विस करते हैं। दूसरी तरफ यही एल्गोरिदम तब बुराई का स्त्रोत बन जाता है, जब इंटरनेट मीडिया और डिजिटल कंटेंट कंपनियां इसका इस्तेमाल आपको बरगलाने के लिए करती हैं। एक उदाहरण से समझते हैं। एक पार्टी से लौटने के बाद उसमें शामिल एक युवा ने पोस्ट किया कि पार्टी बहुत शानदार रही। उसी पार्टी के एक और शख्स ने पोस्ट किया कि पार्टी बहुत खराब थी। दूसरी पोस्ट में मेजबान व अन्य साथियों की खिंचाई की गई। स्वाभाविक तौर पर दूसरी पोस्ट पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाएगा। यहीं से मुश्किल शुरू होती है। एल्गोरिदम इस व्यवहार को नोटिस करता है और एंगेजमेंट बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू करता है। अब लोगों की स्क्रीन पर खराब वाली पोस्ट ज्यादा पहुंचने लगती है। इसी को आप बचत और निवेश पर बने इंटरनेट मीडिया और डिजिटल मीडिया के कंटेंट से जोड़कर देखिए। आखिर ऐसा क्यों है कि यहां सब कुछ रातों-रात पैसा बनाने और अद्भुत मुनाफा कमा लेने की बातों से अटा पड़ा है? कारण वही है। ऐसा कंटेंट ज्यादा एंगेज करता है।
जाहिर है कि नए बचत करने वालों पर और निवेशकों के भरोसे व व्यवहार पर इस सब का गंभीर परिणाम होना ही है। ऐसे युवाओं की कमी नहीं, जो मानते हैं कि क्रिप्टो और डे-ट्रेडिंग ही निवेश का इकलौता जरिया हैं। उन्हें लंबी अवधि वाले म्यूचुअल फंड और स्टाक किसी गुजरे जमाने जैसे लगते हैं। आपका तर्क हो सकता है कि जल्दी और बड़े फायदे का यह आकर्षण हमारी सहज प्रकृति का हिस्सा है। आपकी यह बात सही भी होगी। मेरा कहना भी यही है। सहज प्रकृति तो है, मगर एंगेजमेंट को बढ़ाने वाले एल्गोरिदम इसे बहुत तेजी से सर्कुलेट करते हैं। यह पार्टी करने वाले युवाओं की तरह है। एक आर्टिकल या वीडियो या ट्वीट में समझदारी भरे, डायवर्सिफाइड निवेश की बात है। इसमें महंगाई से पांच-छह प्रतिशत ज्यादा फायदा मिलने और एक दशक बाद अच्छा-खासा पैसा बनाने की बात है। वहीं दूसरी तरफ, तीन महीने में आपके पैसे डबल करने का दावा है।
अब बात सबसे अहम मुद्दे पर कि एल्गोरिदम आने से पहले के दिनों में सवाल होता कि आप दोनों में से किस पर क्लिक करेंगे। मगर आजकल, आपके लिए यह फैसला पहले ही किया जा चुका है। आपको केवल दूसरा विकल्प देखने को मिलेगा, क्योंकि उसी पर आपके क्लिक करने की संभावना ज्यादा है। इसी क्लिक की वजह से कोई ज्यादा पैसे बनाएगा। यानि, ज्यादातर मामलों में आपके लिए फैसला पहले ही हो चुका है।
अब सवाल यह उठता है कि आप इसके लिए क्या कर सकते हैं? मैं यहां किसी कानूनी या रेग्युलेटरी बदलावों की सलाह नहीं दे रहा, क्योंकि ऐसा कोई सिस्टम कारगर कैसे होगा, इसे समझना मुश्किल है। इसके बजाय सवाल यह करते हैं कि आप अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं? मुझे लगता है, इसका जवाब पहले ही मौजूद है। और वह है - संदेह कीजिए - हर समय और हर बात पर। सिर्फ इसी बात पर नहीं कि किसी एक कंटेंट में क्या कहा जा रहा है, बल्कि इसे लेकर भी कि ये आपको दिखाया ही क्यों जा रहा है। हमेशा एक विपरीत नजरिया बनाए रखिए और उसके बारे में छानबीन जारी रखिए। यह आपका पैसा है। आपका निवेश है। इसका इस्तेमाल किसी और के बिजनेस के लिए नहीं, बल्कि आप अपने फायदे के लिए कीजिए और ज्यादा से ज्यादा कीजिए।
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)