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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की राह में पैसा अब बाधा नहीं, नई शिक्षा नीति आने से पहले सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम

शिक्षा के क्षेत्र को पैसों की कमी से दूर रखने का यह फैसला सरकार ने ऐसे समय लिया है जब बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति आने वाली है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 07:18 PM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 09:46 PM (IST)
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की राह में पैसा अब बाधा नहीं, नई शिक्षा नीति आने से पहले सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की राह में पैसा अब बाधा नहीं, नई शिक्षा नीति आने से पहले सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने को लेकर सरकार की चल रही कोशिशें आने वाले दिनों में अब और तेजी से दौड़ती दिखेगी। इसकी राह में पैसों की कमी की बड़ी बाधा को दूर करने का रास्ता सरकार ने खोज निकाला है। बजट में शिक्षा के क्षेत्र को भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और बाहर से वाणिज्यिक कर्ज जुटाने के लिए खोल दिया है। यानि अब इस क्षेत्र को मजबूती देने और आगे बढ़ाने के लिए सरकार की ओर नहीं ताकना होगा, बल्कि जरूरत से मुताबिक अब सीधे पैसा जुटाया जा सकेगा।

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शिक्षा के क्षेत्र को पैसों की कमी से दूर रखने का यह फैसला सरकार ने ऐसे समय लिया है, जब बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति आने वाली है। जिसमें काफी बड़े बदलावों की सिफारिश की गई है। इसके अमल के लिए काफी पैसे की जरूरत होगी। हालांकि यह नीति कब तक आएगी, यह अभी साफ नहीं है। बावजूद इसके शनिवार को अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इसका जिक्र किया और जल्द ही इसके आने की उम्मीद जताई।

कौशल और ज्ञान की महाशक्ति बनाने का पूरा सपना

यह नीति वैसे भी देश के लिए काफी अहम है, क्योंकि इसके जरिए भारत को कौशल और ज्ञान की महाशक्ति बनाने का पूरा सपना बुना गया है। सरकार ने इसके संकेत आर्थिक सर्वेक्षण के दौरान भी दिए है। वैसे भी वर्ष 2030 तक भारत दुनिया का सबसे कार्यशील आयु वर्ग वाला देश होगा। ऐसे में इन्हें बेहतर कौशल और ज्ञान से जोड़ना जरूरी है, क्योंकि इसके बगैर महाशक्ति बनाने के उस सपने का साकार करना मुश्किल होगा। मौजूदा समय में शिक्षा के अलावा सरकार ने जिन क्षेत्रों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए खोल रखा है, उनमें पर्यटन, रक्षा और सेवा क्षेत्र आदि शामिल है।

प्रतिभाशाली शिक्षकों को तैयार करना

फिलहाल शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए जिन क्षेत्रों में काम करने की सबसे अहम जरुरत है, उनमें प्रतिभाशाली शिक्षकों को तैयार करना, बेहतर प्रयोगशालाएं और उद्योग व बाजार की मांग को देखते हुए नए कोर्स डिजाइन करना आदि शामिल है। इसके अलावा उच्च शिक्षा के क्षेत्र को भी नई उंचाई देना शामिल है। मौजूदा समय में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती उच्च शिक्षा के लिए विदेशों में जाने वाले उस पैसों को रोकने की है, जिसके तहत हर साल बड़ी संख्या में भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों में चले जाते है।

हालांकि इसकी वजह उन शैक्षणिक संस्थानों की बेहतर रैकिंग और सुविधाएं है। सरकार देश में भी ऐसी ही कुछ सुविधाएं जुटाने में लगी है। फिलहाल 20 उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की योजना पर काम चल रहा है।

देश की आय बढ़ेगी

सरकार का मानना है कि भारतीय संस्थानों की गुणवत्ता बेहतर होने और विश्वस्तरीय रैकिंग में आने के बाद भारतीय छात्रों का विदेशों की ओर होने वाले इस पलायन में कमी आएगी। साथ ही इससे देश की आय भी बढ़ेगी। एक अनुमान के मुताबिक भारत से हर साल करीब साढे सात लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते है। जो वहां करीब हर साल करीब 45 हजार करोड़ रुपए खर्च करते है। जो भारत में उच्च शिक्षा पर खर्च होने वाले कुल बजट से भी ज्यादा है।

मौजूदा समय में देश में उच्च शिक्षा की कुल बजट करीब 38 हजार करोड़ का है। सरकार का साफ मानना है कि उच्च शिक्षा को बेहतर बनाकर वह विदेशों में जाने वाले इस पैसे को रोक सकती है। यही वजह है कि वह शिक्षा के क्षेत्र में एक साथ बड़ी पूंजी लगाकर उसे मजबूत करना चाहती है। एफडीआई को लाने के पीछे भी कुछ ऐसी ही सोच है।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वालों को मिलेंगे इंटर्नशिप के ज्यादा मौके

इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर छात्रों के बीच आकर्षण को बरकरार रखने को लेकर सरकार ने स्टार्टअप इंडिया योजना को इंजीनियरिंग संस्थानों के साथ भी जोड़ने की घोषणा की है। इसके तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय जल्द ही एक ऐसी योजना शुरु करेगा, जिसके तहत इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके निकलने वाले नए इंजीनियरों को इंटर्नशिप के ज्यादा मौके मिलेंगे।

फिलहाल देश भर के स्थानीय निकायों को इससे जोड़ा जाएगा। जहां वह एक साल तक प्रशिक्षण ले सकेंगे। सरकार की यह घोषणा इसलिए भी अहम है, क्योंकि मौजूदा समय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर रूझान में कमी देखने को मिल रही है। इसके चलते पिछले कुछ सालों में करीब एक हजार इंजीनियरिंग कालेज बंद हुए चुके है। इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे भी इंजीनियरिंग कालेज है, जहां बड़ी संख्या में सीटें हर साल खाली रह जा रही है।


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