Move to Jagran APP

आम बजट में शहरी गरीबों के लिए मनरेगा जैसी योजना की उम्मीद, संसद की स्थायी समिति ने भी की है सिफारिश

कोरोना संकट के चलते शहरी क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी पर काबू पाने लिए शहरी गरीबों के रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की तर्ज पर मनरेगा जैसी योजना की शुरुआत की जा सकती है। जानें क्‍या है इस वर्ग को बजट से उम्‍मीदें...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 30 Jan 2022 06:30 PM (IST)Updated: Mon, 31 Jan 2022 07:17 AM (IST)
आम बजट में शहरी गरीबों के लिए मनरेगा जैसी योजना की उम्मीद, संसद की स्थायी समिति ने भी की है सिफारिश
शहरी गरीबों के रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की तर्ज पर मनरेगा जैसी योजना की शुरुआत की जा सकती है।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। शहरी क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी पर काबू पाने लिए शहरी गरीबों के रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की तर्ज पर मनरेगा जैसी योजना की शुरुआत की जा सकती है। रोजगार सृजन को लेकर सरकार फिलहाल दबाव में है। राजनीतिक रूप से यह मुद्दा गंभीर होने लगा है। शहरी मनरेगा के आने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ तो पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक रूप यह योजना बूस्टर साबित हो सकता है। शहरी गरीब बेरोजगारों के जीवनयापन के लिए यह बड़ा साधन बन सकता है।

loksabha election banner

आगामी वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट में शहरी मनरेगा का पायलट प्रोजेक्ट लांच किया जा सकता है। शहरी गरीबों के रोजी रोटी के लिए सरकार कुछ नई योजना के आने की पूरी उम्मीद की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत चलाई जा रही योजना काफी लोकप्रिय है। उसी तरह शहरी क्षेत्रों के गरीबों के लिए एक निश्चित समयावधि के लिए न्यूनतम मजदूरी पर रोजगार की गारंटी वाली योजना शुरु की जा सकती है।

कोविड-19 के महासंकट के बाद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसी योजना गरीबों के जीवनयापन का प्रमुख साधन बन गई है। कोविड के दौरान शहरों से पलायन कर गांवों में लौटे मजदूरों की बढ़ी संख्या की वजह से मनरेगा में बहुत अधिक लोगों ने रोजगार मांगा, जिसके उसका बजट बढ़ाना पड़ा। वित्त मंत्रालय में इस तरह की योजना की लागत का आकलन किया गया है।

सालभर पहले लोकसभा में पेश की गई श्रम मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में शहरी मनरेगा जैसी योजना लाने की सिफारिश की गई है। आगामी बजट की तैयारियों के दौरान हुए विचार-विमर्श में औद्योगिक संगठन सीआईआई ने सरकार के समक्ष ऐसी योजना लाने का आग्रह किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के समक्ष इस आशय का एक ज्ञापन भी सौंपा गया।

मनरेगा में ग्रामीण गरीबों को सालभर में प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को एक सौ दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। योजना में गैर कुशल मजदूरों से मैनुअल काम ही कराए जाते हैं। शहरी गरीबी और बेरोजगारी पर नजर रखने वालों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों की इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए अर्बन एंप्लायमेंट प्रोग्राम तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण है।

आम बजट से पहले हुई बैठक में भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने शहरी बेरोजगार गरीबों के लिए वित्त मंत्री सीतारमन के समक्ष इस तरह की रोजगार गारंटी वाली योजना शुरु करने का आग्रह करते हुए प्रतिवेदन दिया है। समाजशास्त्री प्रोफेसर अश्विनी कुमार का कहना है कि वित्त मंत्री सीतारमन के लिए यह बहुत आसान नहीं होगा। लेकिन राजनीतिक रुप में यह योजना आगामी संसदीय चुनाव में तुरुप का पत्ता साबित हो सकती है।

आगामी वित्त वर्ष में इसकी प्रायोगिक शुरुआत (पायलट प्रोजेक्ट) की जा सकती है। सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन एकोनामी (सीएमआईई) के जुटाए आंकड़ों के हिसाब से पिछले एक साल के भीतर शहरी बेरोजगारी का दर तेजी से बढ़ी है। दिसंबर में देश में बेरोजगारी दर 7.91 फीसद रही है, जिसमें शहरी दर 9.3 फीसद थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह दर 7.28 फीसद दर्ज की गई।

वर्ष 2021-22 के आम बजट में मनरेगा के लिए कुल 73 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, जिसे बाद में 11,500 करोड़ रुपए अतिरिक्त और बढ़ाना पड़ा था। शहरों से गांवों की लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा वरदान साबित हुई थी। जानकारों का कहना है अगर ऐसी योजना शहरी क्षेत्र में होती तो यह पलायन की यह नौबत नहीं आती। वर्ष 2020 के दौरान कोविड की पहली लहर में शहरी क्षेत्रों से तकरीबन 15 करोड़ मजदूरों को पलायन कर अपने गांवों की ओर लौटना पड़ा था।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.