नई सरकार की मुसीबत बनेगा अल निनो
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। चुनाव जीतकर केंद्र की सत्ता संभालने वाली सरकार के स्वागत में महंगाई पहले ही पांव पसारे बैठी होगी, जिस पर काबू पाना आसान नहीं होगा। मई में गठित होने वाली नवनिर्वाचित सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। आगामी खरीफ खेती पर सूखे का कहर बरपने वाला है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा होगा। महंगाई पर काबू क
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। चुनाव जीतकर केंद्र की सत्ता संभालने वाली सरकार के स्वागत में महंगाई पहले ही पांव पसारे बैठी होगी, जिस पर काबू पाना आसान नहीं होगा। मई में गठित होने वाली नवनिर्वाचित सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। आगामी खरीफ खेती पर सूखे का कहर बरपने वाला है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा होगा। महंगाई पर काबू के लिहाज से बैंकों की ब्याज दर में कमी होने की उम्मीदें नहीं के बराबर होंगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था समेत समूचे एशियाई देशों के लिए खतरे की यह घंटी प्रशांत महासगर में बन रहे अल निनो से बजने लगी है। मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली विश्व की लगभग सभी बड़ी एजेंसियों ने अल निनो के प्रभाव के बारे में पहले से ही चेतावनी दे दी है। भारतीय मौसम विभाग का पूर्वानुमान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में आने वाला है। प्रशांत महासागर की सतह का तापमान असामान्य तरीके से बढ़ने लगा है, जिसे मौसम विज्ञान में अल निनो प्रभाव के नाम से जाना जाता है। इसके चलते मानसूनी हवाओं का रुख बदल जाता है, और उनका बहुत कम हिस्सा भारतीय उप महाद्वीप की ओर मुड़ता है।
प्रशांत महासागर के बिगड़ते वातावरण से मानसून का रुख बदलने के आसार बन रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद आने वाली आपदा अर्थव्यवस्था की दर को बिगाड़ सकती है। सबसे बड़ी खतरा तो खाद्य सुरक्षा कानून के अमल में आने वाली है। कानून के क्रियान्वयन की राह खाद्यान्न की कमीपहले साल में ही आड़े आने वाली है। इससे तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी हालत हो सकती है। चुनाव बाद खाद्य उत्पादों में आने वाली महंगाई से जहां जनता हलकान होगी, वहीं केंद्र में बनने वाली संभावित सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। खाद्य सुरक्षा कानून के लिए कुल 6.12 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी।
भारत में हर साल जून से सितंबर तक मानसून सक्रिय रहता है। इससे जहां खरीफ सीजन में लगभग 40 फीसदी खाद्यान्न की पैदावार होती है, वहीं रबी सीजन की खेती के लिए मिंट्टी को अनुकूल नमी मिल जाती है। इससे पैदावार बढ़ जाती है। अल निनो प्रभाव के बारे में सवा सौ साल तक पुराने मौसम के ट्रेंड के मुताबिक अल निनो ने हमेशा ही मानसून को प्रभावित किया है। कभी कम तो कभी ज्यादा। 1997 के अल निनो प्रभाव से मानसून की बारिश सामान्य रही थी, लेकिन 2009 के अल निनो प्रभाव से भारत में तीन दशकों का सबसे भीषण सूखा पड़ा था। तब दिसंबर में महंगाई दर 20 फीसद के उच्चतम स्तर को छूने लगी थीं।