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आम्रपाली ग्रुप मामला: सुप्रीम कोर्ट ने निदेशकों की संपत्ति बिक्री का दिया आदेश

यह मामला उस आम्रपाली समूह से जुड़ा हुआ है जो कि करीब 42,000 घर खरीदारों को उनका पजेशन देने में असफल रहा है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 11:50 AM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 11:50 AM (IST)
आम्रपाली ग्रुप मामला: सुप्रीम कोर्ट ने निदेशकों की संपत्ति बिक्री का दिया आदेश
आम्रपाली ग्रुप मामला: सुप्रीम कोर्ट ने निदेशकों की संपत्ति बिक्री का दिया आदेश

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट ने 16 ऐसी संपत्तियों की पहचान की है जो कि आम्रपाली ग्रुप से संबंधित हैं, ताकि इसकी स्थगित परियोजनाओं के लिए धन जुटाया जा सके। अदालत ने कंपनी के सभी निदेशकों, उनके पारिवारिक सदस्यों एवं संबंधित कंपनियों के स्वामित्व वाली संपत्तियों की बिक्री का निर्देश दिया है।

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यह मामला उस आम्रपाली समूह से जुड़ा हुआ है जो कि करीब 42,000 घर खरीदारों को उनका पजेशन देने में असफल रहा है। प्रॉपटी डेवलपर को अब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि फ्लैट खरीदार अपने फ्लैट को समय पर न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 12 सितंबर की तारीख मुकर्रर की है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के निदेशकों की अनगिनत संपत्तियों की एक सूची भी मांगी है।

निवेशकों को झांसे में लेता रहा आम्रपाली: जानकारों की मानें तो आम्रपाली बिल्डर ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत लोगों से अपने आवासीय प्रोजेक्ट में पैसे लगवाए। इसके लिए उसने कई तरह के प्लान भी बनाए, जिसके झांसे में निवेशक आते रहे। बताया जाता है कि आम्रपाली बिल्डर ने खरीदारों को झांसे में लेने के लिए पूरी योजना के साथ फ्लैक्सी प्लान बनाया। इसके तहत बिल्डर ने हाईराइज इमारत में ज्यादातर मंजिल का निर्माण होने पर 95 फीसद पेमेंट की शर्त रखी, फिर बैंकों ने इसी आधार पर लोन भी हुए। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने साजिश के तहत 18 मंजिला इमारतों को 22 मंजिल तक बनाने का फैसला लिया, लेकिन फ्लैक्सी प्लान में बदलाव नहीं किया। नियम के अनुसार मंजिल बढ़ने पर प्लान में भी बदलाव होना चाहिए था।

बिल्डर काम ठप करके भी पैसा लेता रहा निवेशकों से: जानकारों की मानें तो बिल्डर ने सभी प्रोजेक्ट को एकसाथ शुरू करने का लालच देकर बुकिंग जारी रखी। वहीं, फ्लैटों की बुकिंग में तेजी आई, लेकिन काम ठप पड़ गया। इसके साथ ही निवेशकों से जिस प्रोजेक्ट के लिए पैसे लिए गए, उन पैसों को दूसरे प्रोजेक्ट में लगाया। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने नियम-कानून को ठेंगे पर रखकर बिल्डर प्रोजेक्ट का पैसा दूसरी बिजनेस वाली अपनी कंपनियों में लगा दिया गया। जब आर्थिक मंदी के दौर में बुकिंग घटी तो एकसाथ सभी प्रोजेक्ट में काम ठप पड़ गया और बिल्डर ने चालाकी से दिवालिया होने की तरफ खुद चल पड़ा।


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