ओयो रूम्स के संस्थापक रितेश की कामयाबी की कहानी
एक साधारण-सा घटनाक्रम किस तरह हमारी जिंदगी बदल सकता है, 21 वर्षीय रितेश अग्रवाल इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं।
नई दिल्ली। एक साधारण-सा घटनाक्रम किस तरह हमारी जिंदगी बदल सकता है, 21 वर्षीय रितेश अग्रवाल इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। मजबूरी में एक रात सोने के लिए होटल जाना पड़ा, तो अहसास हुआ कि लोगों के लिए जरूरत के वक्त ढंग का होटल खोजना कितना मुश्किल है। चार साल बाद आज रितेश ओयो रूम्स के संस्थापक हैं। फर्म के साथ देश के सौ शहर की 2,200 होटल्स जुड़ी हैं। 1500 कर्मचारियों की इस कंपनी का एक माह का टर्न ओवर 23.39 करोड़ रुपए है।
विचार
करीब चार साल पहले की बात है। दिल्ली स्थित अपने फ्लैट का इंटरलॉक लगने से रितेश बाहर ही फंस गए। रात गुजारने के लिए होटल की तलाश में निकले। उन्होंने पाया कि रिसेप्शनिस्ट सो रहा है। कहीं बिस्तर खराब हैं तो कहीं बाथरूम की दुर्दशा है। जहां ठीक-ठाक व्यवस्था मिली, वहां कार्ड से भुगतान की सुविधा नहीं थी। बकौल रितेश, उस दिन मुझे ख्याल आया कि आखिर भारत में अच्छे होटल और रूम्स किफायती दाम पर क्यों नहीं मिल सकते? यही से ओयो रूम्स की शुरुआत हुई।
शुरुआत
- जून 2013 को उन्होंने 60 हजार रुपए का निवेश कर ओयो रूम्स की शुरुआत की।
- फर्म ने ऐसी होटलों से संपर्क साधा, जो कोई ब्रांड नहीं थीं। उनके मालिकों को सुविधाएं बढ़ाने और स्टाफ का प्रशिक्षित करने के लिए कहा।
- साथ ही ओयो ने उनकी ब्रांडिंग का बेड़ा उठाया। देखते ही देखते इन होटलों का राजस्व बढ़ना शुरू हो गया।
- रितेश ने एक ऐप बनाया, जिसके जरिए लोग अपनी पसंद और बजट का होटल तथा रूम्स बुक कर सकते हैं।
- रितेश के मुताबिक, शुरुआत में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कोई विश्वास करने को तैयार नहीं था कि तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- आखिर में गुड़गांव की होटल से शुरुआत हुई। रितेश बताते हैं कि उस होटल में मैं ही मैनेजर, रिसेप्शनिस्ट और स्टाफ था।
- रात में बैठकर अपने ऐप के लिए कोड लिखता था और वेबसाइट को बेहतर बनाने के लिए काम करता था।
- धीरे-धीरे टीम बनी, काम बढ़ता गया और हमारी सेवाएं लोगों को रास आने लगीं।