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फुटकर महंगाई बढ़ी, औद्योगिक उत्पादन में कमी

आम बजट की तैयारियों में जुटी सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर दो निराशाजनक खबरें आर्ई हैं। रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर लगातार पांचवें महीने बढ़ते हुए दिसंबर 2015 में 5.61 प्रतिशत हो गई है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2016 09:03 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2016 10:25 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आम बजट की तैयारियों में जुटी सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर दो निराशाजनक खबरें आर्ई हैं। रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर लगातार पांचवें महीने बढ़ते हुए दिसंबर 2015 में 5.61 प्रतिशत हो गई है।

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खुदरा महंगाई दर बढ़ने से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें धूमिल हो गई हो गई हैं। वहीं औद्योगिक उत्पादन की दर भी चार साल के न्यूनतम स्तर पर गिरकर -3.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इससे अर्थव्यवस्था के सुस्ती से उबरने की उम्मीदों को झटका लगा है। ऐसे में सरकार पर अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए आम बजट 2016-17 में उपाय करने का दबाव होगा।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर नवंबर 2015 में 5.41 प्रतिशत तथा दिसंबर 2014 में 4.28 प्रतिशत थी। दिसंबर 2015 में खुदरा महंगाई बढ़ने की वजह खाद्य वस्तुओं की कीमत में वृद्धि है। दिसंबर में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 6.40 प्रतिशत रही।

दालों की कीमत अब भी सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। दिसंबर में दालों की कीमत में 45.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि नवंबर में यह 46.08 प्रतिशत थी। सरकार ने दालों की आपूर्ति बढ़ाने के उपाय किए हैं इसके बावजूद इनकी महंगाई अपेक्षानुरूप कम नहीं हुई है।

खुदरा महंगाई दर बढ़ने से ब्याज दरें घटने की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई की अधिकतम दर की सीमा 6 प्रतिशत तय की है। आरबीआइ दो फरवरी को मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगा। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आरबीआइ ब्याज दरों में कटौती से परहेज कर सकता है।

आर्थिक मोर्चे पर दूसरी चिंताजनक खबर औद्योगिक उत्पादन के संबंध में है। नवंबर 2015 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 3.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इससे अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की उम्मीदों को झटका लगा है।

केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक आइआइपी में गिरावट की वजह मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का खराब प्रदर्शन और पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में कमी आना है। आइआइपी की यह दर चार साल में न्यूनतम है। इससे पूर्व नवंबर 2011 में आइआइपी में 5.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।


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