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Rcom दिवालिया मामला: अनिल अंबानी को कर्ज जुटाने में होगी परेशानी, बैंकों को भी उठाना पड़ेगा नुकसान

मुकेश अंबानी की स्पेक्ट्रम डील, आरकॉम को दीवालिया होने से बचा सकती थी लेकिन दूरसंचार विभाग की आपत्ति की वजह से यह डील पूरी नहीं हो पाई।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 03:53 PM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 08:25 AM (IST)
Rcom दिवालिया मामला: अनिल अंबानी को कर्ज जुटाने में होगी परेशानी, बैंकों को भी उठाना पड़ेगा नुकसान
Rcom दिवालिया मामला: अनिल अंबानी को कर्ज जुटाने में होगी परेशानी, बैंकों को भी उठाना पड़ेगा नुकसान

नई दिल्ली (अभिषेक पराशर)। टेलीकॉम मार्केट में एक ''नई कंपनी'' पर बाजार के गणित को बदलने का आरोप लगाते हुए एयरसेल ने पिछले साल मार्च महीने में दीवालिया होने की अर्जी दी थी।

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मुफ्त कॉलिंग और बेहद सस्ती दरों पर डेटा ऑफर कर जियो ने जिस प्राइस वॉर की शुरुआत की थी, उसका पहला शिकार एयरसेल हुआ। अब एक और टेलीकॉम कंपनी ने दिवालिया होने की अर्जी दी है, जिसकी कमान मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी के पास है।

रिलायंस जियो की एंट्री से टेलिकॉम सेक्टर के बदले गणित के कारण आरकॉम को अपना वायरलेस कारोबार बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। पिछले एक सालों में करीब 28 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर्स के साथ जियो भारतीय बाजार की तीसरी बड़ी कंपनी बन चुका है और अभी भी प्राइस वॉर की स्थिति थमती नजर नहीं आ रही है।

मुकेश अंबानी की स्पेक्ट्रम डील, आरकॉम को दिवालिया होने से बचा सकती थी लेकिन दूरसंचार विभाग की आपत्ति की वजह से यह डील पूरी नहीं हो पाई और कंपनी को आखिरकार कर्जदारों के भुगतान के लिए दीवालिया होने का विकल्प चुनना पड़ा।

दूरसंचार मामलों के विशेषज्ञ मनोज गायरोला बताते हैं, 'जियो की दिलचस्पी आरकॉम के खिलाफ चल रहे मामलों की वजह से भविष्य में आने वाली देनदारियों को चुकाने में नहीं थी।' दूरसंचार विभाग इसे लेकर रिलायंस जियो से अंडरटेकिंग की मांग कर रहा था।

जियो ने कहा था कि सरकार को यह भरोसा दिलाना चाहिए कि रिलायंस कम्युनिकेशंस के स्पेक्ट्रम के बकाये के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा।

जियो की तरफ से ऐसी शर्त रखे जाने के बाद दूरसंचार विभाग ने इस डील को मंजूरी देने से मना कर दिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अनिल अंबानी 1400 करोड़ रुपये की कॉरपोरेट गारंटी जमा करा चुके थे।

मुकेश अंबानी के टेलीकॉम मार्केट में कदम रखने के बाद भारतीय दूरसंचार क्षेत्र बेहद दबाव में हैं और करीब एक सालों के भीतर दूसरी कंपनी को दिवालिया होने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जबकि दो बड़ी कंपनियां इस प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए विलय कर चुकी हैं।

एयरसेल बनाम आरकॉम: एयरसेल ने जब दिवालिया होने की अर्जी दी थी, तब उसके ऊपर करीब 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था। आरकॉम के ऊपर मार्च 2018 के आंकड़ों के मुताबिक 46,547 करोड़ रुपये का कुल कर्ज है।

अनिल अंबानी टेलीकॉम के साथ अन्य कारोबारी क्षेत्रों में मौजूद हैं और आरकॉम का दिवालिया होना उनके दूसरे कारोबार की फंडिंग को प्रभावित कर सकता है। एयरसेल के साथ ऐसी स्थिति नहीं थी।

गायरोला बताते हैं, 'अनिल अंबानी के लिए बैंकों से फंड जुटाना आसान नहीं होगा। उन्हें अपने अन्य बिजनेस की फंडिंग के लिए अन्य विकल्पों को तलाशना होगा।' पहले ही मुश्किलों का सामना कर रहे है अनिल अंबानी समूह की अन्य कंपनियों के लिए यह ठीक नहीं होगा।

लेकिन क्या इससे कर्जदारों को फायदा होगा। क्या उनके कर्ज की वसूली हो पाएगी। परिसंपत्तियों की बिक्री कर कर्ज चुकाने की कोशिश का विकल्प बैंकों और अन्य कर्जदारों के लिए अच्छा विकल्प होता है। लेकिन दिवालिया की स्थिति में यह कहना मुश्किल है कि बैंक और अन्य कर्जदार अपने कर्ज का कितना हिस्सा रिकवर कर पाएंगे।

गायरोला ने कहा, 'यह इस बात पर निर्भर करता है कि बोली की प्रक्रिया कैसी रहती है और कितनी कंपनियां आरकॉम के एसेट्स में दिलचस्पी दिखाती हैं।' उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए जियो और एयरटेल, आरकॉम के एसेट्स के संभावित खरीदार हो सकते हैं।

क्या करें निवेशक? दिवालिया की अर्जी लगाए जाने के बाद जब सोमवार को बीएसई में रिलायंस कम्युनिकेशंस के शेयर 50 फीसद से अधिक तक टूट गए। इसका असर अनिल अंबानी समूह की अन्य कंपनियों पर भी हुआ। रिलायंस नैवेल के शेयरों में जहां 15 फीसद से अधिक की गिरावट आई, वहीं रिलायंस होम का शेयर भी 12 फीसद से अधिक तक टूट गया। रिलायंस इन्फ्रा के शेयरों में भी 15 फीसद से अधिक की गिरावट आई हैि

आने वाले दिनों में आरकॉम के साथ समूह के अन्य शेयरों में हलचल की स्थिति रहेगी, जो निवेशकों के लिए ठीक नहीं है।

कार्वी कमोडिटी के रिसर्च हेड रवि सिंह बताते हैं, 'जिन लोगों ने ऊपरी स्तर पर आरकॉम के शेयरों की खरीदारी की है, उनके लिए इस स्तर पर निकलना बेहतर विकल्प है क्योंकि दिवालिया की स्थिति में जाने के बाद कंपनी का भविष्य अनिश्चित हो गया है।' उन्होंने कहा कि आगे इसमें गिरावट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

इसके साथ ही टेलीकॉम इंडस्ट्री को लेकर बैंकों का रुख नकारात्मक हो सकता है। उन्होंने कहा, 'बैंक इस पूरे सेक्टर को लेकर नेगेटिव रुख अपना सकते हैं और कर्ज देने में हाथ पीछे खींच सकते हैं।'

वोडाफोन-आइडिया के मर्जर के बाद टेलीकॉम इंडस्ट्री में अब तीन बड़ी कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इनके बीच प्रतिस्पर्धा और तेज होगी। 

इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च ने भी वित्त वर्ष 2020 के लिए टेलीकॉम सेक्टर के आउटलुक को नेगेटिव रखा है। एजेंसी का मानना है कि प्राइसिंग रिकवरी के मोर्चे पर वित्त वर्ष 2020 में कंपनियों को बमुश्किल ही कोई राहत मिलेगी। 

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