चार तरह के बैंकों को बढ़ावा देगा आरबीआइ, सरकारी बैंकों का निजीकरण एक बड़ी सच्चाईः शक्तिकांत दास
आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने बुधवार को एक तरह से भारत के बैंकिंग सेक्टर के भविष्य का खाका पेश किया। उन्होंने बताया है कि आरबीआइ भविष्य में चार तरह की बैंकिंग व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने बुधवार को एक तरह से भारत के बैंकिंग सेक्टर के भविष्य का खाका पेश किया। उन्होंने बताया है कि आरबीआइ भविष्य में चार तरह की बैंकिंग व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। इसमें पहले श्रेणी में बड़े आकार के ऐसे बैंक होंगे जिनका देश-विदेश में विस्तार होगा। दूसरी श्रेणी में देशव्यापी परिचालन वाले मझोले बैंक होंगे। तीसरी श्रणी में छोटे आकार के वे बैंक, ग्रामीण बैंक या सहकारी बैंक होंगे जो अपेक्षाकृत कम लेनदेन वाले ग्राहकों को सेवा देंगे। चौथी श्रेणी में डिजिटल आधारित वित्तीय संस्थानों को रखा गया है जो सीधे तौर पर या बैंकों के माध्यम से अपनी सेवा देंगे।
एक आर्थिक सम्मेलन में डॉ. दास यह भी संकेत दिया कि सरकारी बैंकों का निजीकरण एक बड़ी सच्चाई है और इस बारे में आरबीआइ व केंद्र सरकार में बात हो रही है। एक दिन पहले ही इस बारे में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई है, जिसमें सरकार के साथ ही आरबीआइ के अधिकारी भी उपस्थित हुए थे। हाल ही में आरबीआइ ने यूनिवर्सल बैंक और स्मॉल फाइनेंस बैंक को नए सिरे से लाइसेंस देने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है। इसके पहले आरबीआइ की एक आतंरिक समिति बड़े कारपोरेट घरानों को बैंकिंग कारोबार में उतरने की अनुमित देने की सिफारिश कर चुकी है। यही नहीं, एक अन्य समिति देश के 30 बड़े एनबीएफसी को सामान्य बैंक के तौर पर काम करने की सिफारिश दे चुकी है।
दास ने कहा भी कि आरबीआइ भारत में एक प्रतिस्पर्धी, प्रभावशाली व विविधता वाले बैंकिंग सेक्टर को बढ़ाने की कोशिश में है। दास की इन बातों को आरबीआइ की तरफ से हाल के दिनों में बैंकिंग सेक्टर में होने वाले बदलावों के संदर्भ देखा जा रहा है। डॉ. दास ने बैंकिंग सेक्टर में कार्यरत सभी संस्थानों से कहा कि दुनिया में जितनी तेजी से तकनीक की स्वीकार्यता बढ़ रही है, उसे देखते हुए इस सेक्टर को भी टेक्नोलॉजी अपनाने को प्राथमिकता देनी होगी। आने वाले दिनों में वित्तीय लेनदेन में और तेजी से बढ़ोतरी होगी जिससे निपटने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी। एक उदाहरण उन्होंने यह दिया कि वर्ष 2017 से वर्ष 2020 के दौरान यूपीआइ से भुगतान शून्य से बढ़कर एक अरब प्रति माह होने लगा।
उसके बाद सिर्फ एक महीने में यूपीआइ भुगतान की संख्या दो अरब हो गई। भारत एशिया का सबसे बड़ा फिनटेक हब बनने के कगार पर है। यूपीआइ और आधार ने डिजिटल भुगतान की पूरी तस्वीर बदल दी है और बैंकों को इससे निबटने के लिए तैयार रहना चाहिए। बैंकों के साथ ही एनबीएफसी को भी बड़े बदलाव करने होंगे ताकि वह जोखिम को समय रहते पहचान कर सकें।