चालू खाता संबंधी नियम में बदलाव से RBI का इनकार, गवर्नर डॉ. दास बोले जमा राशि रखने वालों के हितों की रक्षा ज्यादा अहम
जिस बैंक से कर्ज उसी में चालू खाता खोलने संबंधी RBI के नये नियमों पर आपत्ति जताने वाले उद्योग जगत को आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास से कोई आश्वासन नहीं मिला। (प्रतीकात्मक तस्वीर
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जिस बैंक से कर्ज उसी में चालू खाता खोलने संबंधी RBI के नये नियमों पर आपत्ति जताने वाले उद्योग जगत को बुधवार को आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास से कोई आश्वासन नहीं मिला। डॉ. दास ने इस मामले में फिलहाल नये नियमों को ही जारी रहने का साफ संकेत देते हुए कहा कि बैंकों को यह मालूम होना चाहिए कि वह जिस कारोबारी को कर्ज दे रहे हैं उसके कैश फ्लो की स्थिति क्या है। यह समूचे बैंकिंग सिस्टम के लिए सही कदम है।
इसके साथ ही आरबीआइ गवर्नर ने यह भी स्पष्ट किया कि बैंकों को जमाकर्ताओं के हितों का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। कोविड-19 महामारी से प्रभावित कर्ज खाते को रिस्ट्रक्चरिंग में भी इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि बैंकों में पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों के हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। देश के प्रमुख उद्योग चैंबर फिक्की के साथ वर्चुअल बैठक में आरबीआइ गर्वनर ने कोविड के बाद के भारतीय इकोनोमी को पटरी पर लाने के लिए पांच सूत्र बताये और उद्योग जगत को आश्वस्त किया कि कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में उन्हें केंद्रीय बैंक की तरफ से हरसंभव मदद मिलेगी।
अप्रैल, 2020 से ही आरबीआइ लगातार हालात पर नजर रखे हुए है और अपने नियमों में बदलाव कर इकोनॉमी से जुड़े हर वर्ग की समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कोविड के बाद भारत की विकास यात्रा को तेज करने के लिए पांच क्षेत्रों पर खास ध्यान देने की बात कही। इसमें सबसे ज्यादा शिक्षा व हेल्थ पर ध्यान देने, इसके बाद उत्पादकता, निर्यात, पर्यटन और अंत में खाद्य प्रसंस्करण को प्राथमिकता के तौर लेने का सुझाव दिया।
हाल ही में आरबीआइ ने यह नियम बनाया है कि जिस बैंक से कारोबारी कर्ज लिया जा रहा है उसी बैंक में करेंट खाता खोला जाना चाहिए। इससे विदेशी व निजी बैंक खासे परेशान है जबकि उद्योग जगत को भी यह नागवार गुजर रहा है क्योंकि उन्हें नया खाता खोलना होगा। डॉ. दास ने कहा कि जिसे कर्ज दिया जा रहा है उसकी वित्तीय हालात के बारे में बैंक के पास साफ तस्वीर होनी चाहिए।
बैठक में बैंकिंग लोन रिस्ट्रक्चरिंग को लेकर भी कई सुझाव आये जैसे कर्ज चुकाने की अविध दो वर्ष से बढ़ा कर चार वर्ष की जानी चाहिए, सभी कर्ज को सावधि कर्ज में बदल कर ज्यादा समय में एक फीसद ज्यादा ब्याज पर लौटाने की छूट दी जानी चाहिए आदि। डॉ. दास ने स्पष्ट किया कि जो भी फैसला हो रहा है उसमें बैंक जमाकर्ताओं के हितों को प्राथमिकता दी जा रही है और आगे भी दी जाएगी। साथ ही बैंकिंग ढांचे की मजबूती का ख्याल रखा जा रहा है।
गोल्ड लोन नियमों में ढिलाई नहीं
गोल्ड लोन को लेकर एनबीएफसी व बैंकों के लिए अलग अलग नियम के बारे में भी आरबीआइ गवर्नर ने यह स्पष्ट किया कि यह जानबूझ कर किया गया है। पिछले वर्ष आइएलएंडएफएस नाम की बड़ी एनबीएफसी की हालात खराब होने के बाद केंद्रीय बैंक नहीं चाहता कि इस तरह का मामला दोबारा हो। ऐसे में एनबीएफसी के लिए ज्यादा कड़ा नियम बनाया गया है। अभी बैंकों को सोने की कीमत के 90 फीसद तक कर्ज देने की छूट है जबकि एनबीएफसी के लिए यह सीमा सिर्फ 70 फीसद तक की है।
डॉ. दास का कहना है कि बैंकों की तरफ से आवंटित कुल कर्जे का बहुत ही कम हिस्सा गोल्ड लोन में होता है जबकि कई एनबीएफसी के कुल बिजनेस में गोल्ड लोन का बड़ा हिस्सा होता है। ऐसे में सोने की कीमत में उतार चढ़ाव इन संस्थानों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है।