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25 बड़े NBFC को राहत देने की तैयारी, घरेलू मांग को बढ़ाने के उपायों पर सरकार व आरबीआइ के बीच मंत्रणा

माना जा रहा है कि एक अलग नई कंपनी बना कर उसमें समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों को ट्रांसफर करने का कदम इस दिशा में एक अहम ऐलान साबित होगा।

By NiteshEdited By: Published: Thu, 28 Nov 2019 08:58 PM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 08:40 AM (IST)
25 बड़े NBFC को राहत देने की तैयारी, घरेलू मांग को बढ़ाने के उपायों पर सरकार व आरबीआइ के बीच मंत्रणा
25 बड़े NBFC को राहत देने की तैयारी, घरेलू मांग को बढ़ाने के उपायों पर सरकार व आरबीआइ के बीच मंत्रणा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकार खुल कर यह बात स्वीकार नहीं करती है कि घरेलू मांग की रफ्तार सुस्त पड़ गई है लेकिन वह जिन उपायों पर फिलहाल विचार कर रही है वह इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मांग में गिरावट की बात को सही माना जा रहा है। तभी वित्त मंत्रालय और आरबीआइ के बीच इस बात के लिए जबरदस्त मंत्रणा चल रही है कि देश की 25 बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की फंसी परिसंपत्तियों को बचाया जाए। योजना यह है कि एक नई विशेष कंपनी का गठन किया जाए जो देश की शीर्ष एनबीएफसी से उनकी समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों को खरीद सके। इस तरह से एनबीएफसी के सिर से एक बड़ा बोझ खत्म हो जाएगा और वे जनता या उद्योग को कर्ज उपलब्ध कराने के काम पर ज्यादा ध्यान दे सकेंगे।

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दरअसल, पिछले वर्ष के अंत में जब देश की एक बड़ी एनबीएफसी आईएलएंडएफएस में वित्तीय घोटाला सामने आया था तभी से आरबीआइ के स्तर पर देश की सभी शीर्ष 50 एनबीएफसी की गतिविधियों और उनके वित्तीय मानकों की निगरानी की जा रही है। वैसे इस निगरानी के बावजूद एक और एनबीएफसी डीएचएफएल भी ना सिर्फ गहरी समस्या में समा चुकी है बल्कि इसके प्रबंधन को भी आरबीआइ निरस्त कर चुका है। बहरहाल, वित्त मंत्रालय और आरबीआइ के बीच देश के एनबीएफसी सेक्टर को लेकर जो चर्चाएं हुई हैं उसमें यह बात सामने आई है कि अगर एक अलग कंपनी बना कर बड़ी कंपनियों की सबसे ज्यादा समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों को एक जगह कर दिया जाए तो भविष्य में इनका प्रबंधन आसान हो जाएगा।

इसका दूसरा फायदा यह होगा कि समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों के बाहर हो जाने की वजह से एनबीएफसी की समूची गतिविधियों पर असर पड़ रहा है। इसकी वजह से ना तो वो बैंकों से फंड ले पा रहे हैं और ना ही कर्ज वितरण का काम भी सही तरीके से कर पा रहे हैं। आटो लोन और होम लोन की रफ्तार मनमाफिक नहीं बढ़ पाने के पीछे एक वजह यह भी बतायी जा रही है कि एनबीएफसी की तरफ से ये कर्ज नहीं बांटे जा रहे हैं। इनकी तरफ से ज्यादा कर्ज बांटने से आवासीय इकाइयों और कारों की बिक्री बढ़ सकती है जो घरेलू मांग को बढ़ाने में सहायक साबित होंगे।

एनबीएफसी के लिए भविष्य में समस्या पैदा होने वाली परिसंपत्तियों को खरीदने की योजना का संकेत स्वयं आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में दिया था। अहमदाबाद में एक भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि, ''आइएलएंडएफएस संकट और कुछ दूसरी कंपनियों की तरफ से अदायगी में आ रही दिक्कतें काफी चिंताजनक है। परिसंपत्तियों को लेकर नई चिंताएं सामने आ रही हैं। इससे एनबीएफसी के लिए तरलता संकट पैदा हो गई हैं। आरबीआइ इस संकट को दूर करने के लिए कई विकल्पों पर विचार रहा है ताकि एनबीएफसी की स्थिति को मजबूत किया जा सके और इसमें नियमन को भी बेहतर किया जा सके।''

आरबीआइ गवर्नर के इस बयान के कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार ने दिवालिया कानून में एक बड़ा बदलाव करते हुए एनबीएफसी को भी इसके तहत शामिल करने का फैसला किया था। इसके पहले केंद्रीय बैंक ने इस सेक्टर में फंड उपलब्धता से जुड़े जोखिम संबंधी नियमों को लेकर नया दिशानिर्देश जारी किया था। माना जा रहा है कि एक अलग नई कंपनी बना कर उसमें समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों को ट्रांसफर करने का कदम इस दिशा में एक अहम ऐलान साबित होगा।


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