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एसबीआइ सितंबर से लौटेगा मुनाफे की राह पर: रजनीश कुमार

एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार का मानना है कि अगली तिमाही से एसबीआइ फिर से मुनाफे की राह पर लौट आएगा

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 02:13 PM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 02:30 PM (IST)
एसबीआइ सितंबर से लौटेगा मुनाफे की राह पर: रजनीश कुमार
एसबीआइ सितंबर से लौटेगा मुनाफे की राह पर: रजनीश कुमार

पिछले सप्ताह घोषित हुए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) के वित्तीय नतीजे बताते हैं कि जून, 2018 को समाप्त तिमाही में 4,875 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। इसकी पिछली तिमाही में 7,718 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। लेकिन बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार का मानना है कि अगली तिमाही से एसबीआइ फिर से मुनाफे की राह पर लौट आएगा। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन के साथ कुमार की विशेष बातचीत के प्रमुख अंश :

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पिछली कुछ तिमाही से बैंक लगातार खराब प्रदर्शन कर रहा है। आगे कैसे प्रदर्शन की उम्मीद है?

आपने सही कहा। पिछली तिमाही में भी हमने घाटा उठाया है। इसके लिए मुख्य तौर पर सरकारी बांड्स बाजार जिम्मेदार रहा है। आप जानते हैं कि बैंकिंग कारोबार में सरकारी बांड्स से होने वाले घाटे को असली घाटा नहीं माना जाता। बहरहाल, हमने आरबीआइ के दिशानिर्देश के मुताबिक इस मद में काफी प्रावधान किया है। घाटा इसी वजह से बढ़ा है। हमारे पास इस घाटे को चार तिमाही में बांटने का विकल्प था लेकिन हमने पूरे घाटे का समायोजन एक ही तिमाही में कर लिया है। हमारा अनुमान है कि सितंबर, 2018 की तिमाही से हम मुनाफे में आ जाएंगे। बाद की तिमाहियों में हमें लगातार मुनाफा होने की उम्मीद है। इस उम्मीद की एक वजह यह भी है कि नेशनल कंपनी लॉ टिब्यूनल (एनसीएलटी) में कई दिवालिया मामलों का समाधान चालू तिमाही में हो जाएगा।

एनसीएलटी में कितने मामले हैं जिसका समाधान हो जाएगा?

एनसीएलटी में शुरू में आरबीआइ की तरफ से एक दर्जन मामले भेजे गए थे। उसमें से दो का समाधान हो चुका है। शेष कंपनियों से कर्ज वसूली की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। साथ ही हमें विश्वास है कि कम से बिजली क्षेत्र की तीन-चार कंपनियों, जिन पर एसबीआई का काफी कर्ज बकाया है, से भी बड़ी रकम मिलेगी। एनपीए में फंसी सभी बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों की हमने रेटिंग करा ली है।

आपको मैं नाम नहीं बता सकता लेकिन एक बिजली कंपनी पर बकाए कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग की जाएगी और एक कंपनी पर बकाए कर्ज का एकमुश्त निबटारा किया जाएगा। जबकि अन्य बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों को पारदर्शी व खुली निविदा के जरिये बेचने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। एनसीएलटी में जितनी कंपनियों के केसों को ले जाया गया है, उन सभी के लिए हमने पहले ही प्रावधान कर रखे हैं जिसकी वजह से हमें पिछली तीन तिमाहियों में घाटा हुआ है। हमारा अनुमान है कि एनसीएलटी में मामलों के समाधान से सितंबर, 2018 की तिमाही में कम से कम 4,000 करोड़ रुपये की राशि की वसूली हमारे मुनाफे में प्रदर्शित होगी।

केंद्र सरकार लगातार कह रही है कि वर्ष 2008-2013 के दौरान आंख मूंद कर जो कर्ज दिए गए, उससे एनपीए बढ़ा है, इसमें कितनी सच्चाई है?

देखिए, किसी भी अवधि में अगर कर्ज की रफ्तार बहुत ज्यादा होती है तो उसके बाद एनपीए बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। आप जिस अवधि की बात कर रहे हैं, निश्चित तौर पर उस दौरान काफी ज्यादा कर्ज दिए गए। कर्ज की रफ्तार 25 फीसद तक रही जो सामान्य नहीं थी। अर्थव्यवस्था में अगर लगातार मांग बनी हुई है तो यह कर्ज खप सकता है लेकिन लगातार ज्यादा कर्ज देने के बाद अचानक मांग घट जाती है या किसी दूसरी वजह से अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ जाती है तो कर्ज का एक बड़ा हिस्सा फंस सकता है।

अभी भी मुझे कुछ लोग कहते है कि अमुक बैंक के क्रेडिट ग्रोथ में 20 फीसद का इजाफा हो रहा है जबकि एसबीआइ का कम है। उन्हें मैं यही जवाब देता हूं कि हम अपनी क्षमता के मुताबिक कर्ज दे रहे हैं। इसके अलावा अब सिस्टम भी इस तरह का बन गया है कि आप बेसिर-पैर के कर्ज नहीं बांट सकते। आरबीआइ का निर्देश, सरकार की तरफ से निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने, नया दिवालिया कानून बनने की वजह से भी बैंकों के लिए अब बेखौफ होकर कर्ज बांटना आसान नहीं रह गया है। इसका एक सकारात्मक असर यह होगा कि आने वाले दिनों में एनपीए अब नियंत्रण में रहेगा। एनपीए का सबसे खराब दौर बीत चुका है। सितंबर या दिसंबर, 2018 के बाद से बैंकों के नतीजों पर भी इसका असर दिखाई देगा।

एसबीआइ समेत तमाम सरकारी बैंक विदेशों में अपनी शाखाएं और कार्यालय समेट रहे हैं जबकि एक दशक पहले विस्तार कर रहे थे। क्या माना जाए कि भारत कोई विश्वस्तरीय बैंक नहीं दे पाएगा?

देखिए, वैश्विक बैंकिंग परिदृश्य पिछले एक दशक में काफी बदल गया है। वर्ष 2008-09 के वैश्विक बैंकिंग संकट के बाद हर देश बैंकिंग कारोबार को लेकर काफी सतर्क है। बैंकों के लिए मानक काफी सख्त हो गए हैं। सिर्फ भारतीय बैंक ही नहीं बल्कि अन्य देशों के बड़े आकार वाले बैंक भी अपने पैर समेट रहे हैं। वैसे भी अगर विदेशों में आप बड़े पैमाने पर कारोबार नहीं कर रहे हैं तो वहां शाखा खोलने के खर्च व उसके जोखिम को वहन करना हर किसी के बूते का काम नहीं है। इसलिए एसबीआइ भी कई देशों में अपना संचालन सीमित कर रहा है या बंद कर रहा है।

अमेरिकी प्रतिबंध को देखते हुए आपने ईरान के साथ कारोबार करने वाली कंपनियों को चेतावनी दे दी है, अभी क्या स्थिति है?

हम अमेरिका में कारोबार करते हैं और हम पर वहां के नियम लागू होते हैं। इस वजह से ही अमेरिकी प्रतिबंध के मद्देनजर हमने ईरान के साथ कारोबार करने को लेकर अपनी अक्षमता दिखाई है। सभी पक्षों को इसके बारे में बता दिया गया है। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपको कारोबार करना है तो इस तरह के नियमों का पालन करना पड़ता है।


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