Move to Jagran APP

जानिए क्या है Petrol Diesel की कीमतों में बढ़ोत्तरी का गणित, कसौटी पर है तेल की कीमतों में वृद्धि

Petrol Dieselसरकार ने 2010 में पेट्रोल और वर्ष 2014 में डीजल की कीमत को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया था।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 07:29 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 09:13 AM (IST)
जानिए क्या है Petrol Diesel की कीमतों में बढ़ोत्तरी का गणित, कसौटी पर है तेल की कीमतों में वृद्धि
जानिए क्या है Petrol Diesel की कीमतों में बढ़ोत्तरी का गणित, कसौटी पर है तेल की कीमतों में वृद्धि

नई दिल्ली, सतीश सिंह। देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी जारी है, फिर भी यह बड़ा मुद्दा नहीं बन पा रहा है। दरअसल पेट्रोल-डीजल की कीमत में निरंतर वृद्धि होने का कारण इन पर ज्यादा कर आरोपित करना है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में मामूली वृद्धि ही हुई है। वैसे भी कोरोना महामारी के आरंभिक दिनों में वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत में मार्च और अप्रैल में भारी गिरावट आई थी। उस दौरान भारत में कच्चे तेल का बास्केट वर्ष 2019-20 के औसत 60 डॉलर प्रति बैरल स्तर का एक तिहाई यानी 20 डॉलर प्रति बैरल रह गया था।

loksabha election banner

इसलिए तेल की कीमत को नियंत्रित करने के लिए तेल उत्पादक देशों द्वारा इसके उत्पादन में योजनाबद्ध तरीके से कमी करने का फैसला लिया गया। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में फिलहाल मामूली वृद्धि हुई है। भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है और अपनी खपत का 75 से 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है।

सरकार ने 2010 में पेट्रोल और वर्ष 2014 में डीजल की कीमत को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया था। फिर पेट्रोल एवं डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य के रोज मूल्य निर्धारण की व्यवस्था को जून 2017 से लागू किया गया। इसका यह अर्थ हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव के अनुरूप तेल की कीमत का निर्धारण भारत में होगा।

यानी जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत ज्यादा होगी तो भारत में भी तेल की कीमत में बढ़ोतरी होगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत कम होने पर भारत में भी कटौती की जाएगी। इस तरह से रोज पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर आवश्यक वस्तुओं जैसे खाद्य पदार्थो, अनाज, फल और सब्जियों की कीमतों पर पड़ता है।

जबकि सरकार को पेट्रोल-डीजल से मुख्य तौर पर दो तरह के फायदे हो रहे हैं। पहला वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कम कीमत होने के कारण इसके आयात पर विदेशी मुद्रा कम खर्च करना पड़ रहा है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक देश है। दूसरा पेट्रोल एवं डीजल पर अधिक कर आरोपित करके केंद्र एवं राज्य सरकारें ज्यादा राजस्व कमा रही हैं।

कच्चे तेल के गणित को समझने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को समझना जरूरी है। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के लेन-देन में खरीदार, बेचने वाले से निश्चित तेल की मात्रा पूर्व निर्धारित कीमतों पर किसी विशेष स्थान पर लेने के लिए सहमत होता है। कच्चा तेल प्रति बैरल के हिसाब से खरीदा-बेचा जाता है।

पेट्रोल-डीजल की कीमत की नई दरें देश में सुबह छह बजे से लागू होती हैं। पेट्रोल-डीजल के आधार कीमत में कच्चे तेल की कीमत, प्रोसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने वाला चार्ज शामिल होता है। अमूमन रिफाइनिंग चार्ज प्रति लीटर चार रुपये आरोपित किया जाता है।

आधार कीमत पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क आरोपित करती है। इसके बाद कंपनी डीलर को तेल बेच देती है और डीलर तेल की कीमत पर अपना कमीशन और राज्य सरकार द्वारा लगाया जाने वाला कर व वैट जोड़ता है। फिर इस पर सेस यानी पर्यावरण उपकर आदि जोड़कर पेट्रोल एवं डीजल की अंतिम कीमत का निर्धारण किया जाता है। इस तरह पेट्रोल-डीजल की कीमत मूल कीमत से दोगुनी से अधिक हो जाती है।

कोरोना महामारी के कारण आज करोड़ों लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठे हैं। लॉकडाउन को अनलॉक करने से लोग फिर से रोजगार की तलाश में या नौकरी पर जाने के लिए यात्राएं कर रहे हैं, लेकिन पेट्रोल-डीजल की कीमत रोज बढ़ने से उनकी परेशानियां बढ़ रही हैं, दूसरी सरकार इससे व्यापक राजस्व कमा रही है, जिसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.