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Personal Finance Tips : कार्यकुशलता और उत्पादकता के साथ-साथ भविष्य केंद्रित सोच होना बेहद जरूरी

कंपनियों का राजस्व लागत और मुनाफा उनके बढ़ने और रकम बनाने के लिए सटीक था। हालांकि लॉकडाउन और आने वाले समय में पैदा होने वाली सुस्ती ने उनको बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया। बिक्री में बड़े पैमाने पर आई गिरावट ने उनके लिए कारोबार करना मुश्किल कर दिया।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 10:21 AM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 06:19 PM (IST)
Personal Finance Tips : कार्यकुशलता और उत्पादकता के साथ-साथ भविष्य केंद्रित सोच होना बेहद जरूरी
Investment Tips ( P C : Pixabay )

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। युवा वर्ग की लगभग पूरी आय सिर्फ EMI और बुनियादी जरूरतों में चली जाती है। उनके पास न कोई बफर सेविंग्स है न इमरजेंसी फंड (Emergency fund) और न ही इमरजेंसी फंड तैयार करने का आसान रास्ता है। आय में थोड़ी बाधा आते ही उनकी Personal finance की स्थिति बहुत खराब हो गई। महामारी में ऐसा बहुत से लोगों के साथ हुआ है। इसके लिए कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि सामूहिक सोच जिम्मेदार है।

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मेरे पंसदीदा ब्लॉागर्स में से एक शेन पैरिस ने एफीशिएंसी इन इनिमी शीर्षक से लिखा है कि कार्यकुशल होना सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन इसका मतलब है कि गलती की कोई गुंजाइश नहीं है और आप अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं।

कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में जब कारोबारी गतिविधियां पूरी तरह से शुरू नहीं हुई थीं, उस समय मैंने 'इन प्रेज ऑफ इनएफिशिएंसी' विषय पर एक लेख में पर्सनल फाइनेंस सहित कई दूसरी चीजों पर लागू होने वाले कुछ सिद्धातों के बारे में लिखा था। महामारी ने कई मामलों में इस बात को उजागर किया है कि कार्यकुशलता और उत्पादकता के साथ-साथ कई बार भविष्य केंद्रित सोच भी बेहद जरूरी है।

यह जानना दिलचस्प है कि कोरोना संकट की इस दूसरी लहर से ठीक पहले बहुत से हॉस्पिटल में उनकी औसत मरीज क्षमता से अधिक आइसीयू बेड को बेकार और संसाधन की बर्बादी माना जाता था। लेकिन अब यह स्पष्ट है कि महामारी के दौर में नुकसान उठाने वालों में बहुत सी वैसी कंपनियां है, जो संसाधनों का इस्तेमाल बहुत कुशलता से कर रहीं थी। महामारी के पहले इनका सब काम बहुत अच्छी तरह से चल रहा था।

कंपनियों का राजस्व, लागत और मुनाफा उनके बढ़ने और रकम बनाने के लिए सटीक था। हालांकि, लॉकडाउन और आने वाले समय में पैदा होने वाली सुस्ती ने उनको बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया। बिक्री में बड़े पैमाने पर आई गिरावट ने उनके लिए कारोबार करना मुश्किल कर दिया। उनके पास किसी तरह का कोई रिजर्व नहीं था। सप्लाई चेन वैश्विक बाजार पर निर्भर थी, सक्षम थी और पूरी कुशलता के साथ समय पर आ रही थी। अतिरिक्त इन्वेंट्री को बेकार माना जाता था। ये ऐसी बातें थीं जिन्हें कोई गलत नहीं कह सकता था, कोई चुनौती नहीं दे सकता था।

यह बात पर्सनल फाइनेंस के लिए भी उतनी ही सही है। बहुत से ऐसे लोग हैं, खासकर युवा वर्ग जिसकी लगभग पूरी आय सिर्फ ईएमआइ और बुनियादी जरूरतों में चली जाती है। उनके पास न कोई बफर सेविंग्स है, न इमरजेंसी फंड और न ही इमरजेंसी फंड तैयार करने का आसान रास्ता है। आय में थोड़ी बाधा आते ही उनकी पर्सनल फाइनेंस की स्थिति बहुत खराब हो गई। महामारी में ऐसा बहुत से लोगों के साथ हुआ है। इसके लिए कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि सामूहिक सोच जिम्मेदार है। बहुत से लोगों के पास इससे बेहतर करने की गुंजाइश ही नहीं है। हालांकि, इसके बावजूद कुछ लोग बेहतर कर पाते हैं और बहुत से लोग नहीं कर पाते हैं।

नुकसान और मुश्किलों के बीच विपरीत हालात बहुत बड़ी सीख देते हैं। निश्चित तौर पर व्यक्ति विशेष के लिए भी ऐसा है। शायद लोग कम खर्च करेंगे और सिर्फ बहुत जरूरी चीजों पर खर्च करेंगे। या शायद नहीं, कौन जानता है? उन देशों में जहां महामारी का दौर थम चुका है, वहां ऐसा नहीं हुआ है और भारत में बहुत कम समय के लिए जब महामारी का प्रकोप कम हो गया था तब यहां भी ऐसा नहीं हुआ। लेकिन पिछले एक वर्ष ने युवा वर्ग को भी अतिरिक्त सेविंग्स का महत्व सिखाया है और उनका निवेश अब ज्यादा जरूरी चीजों की ओर केंद्रित हुआ है।


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