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चीन से कागज का आयात बढ़ा, आईपीएमए ने की पेपर इम्पोर्ट को फ्री से रिस्ट्रिक्टेड श्रेणी में लाने की हिमायत

आईपीएमए के प्रेसिडेंट ए. एस. मेहता ने इस संदर्भ में कहा कि कागज ऐसे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर्स में से है जिस पर इम्पोर्ट का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 07:35 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 07:35 PM (IST)
चीन से कागज का आयात बढ़ा, आईपीएमए ने की पेपर इम्पोर्ट को फ्री से रिस्ट्रिक्टेड श्रेणी में लाने की हिमायत
चीन से कागज का आयात बढ़ा, आईपीएमए ने की पेपर इम्पोर्ट को फ्री से रिस्ट्रिक्टेड श्रेणी में लाने की हिमायत

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। कागज के मामले में आयात नीति को बदलकर इसे तत्काल 'फ्री' से 'रिस्ट्रिक्टेड' की श्रेणी में लाने की जरूरत है और कागज आयात की अनुमति केवल एक्चुअल यूजर लाइसेंस के आधार पर मिलनी चाहिए। इससे चीन और आसियान देशों से हो रहा अंधाधुंध कागज आयात को रोका जा सकता है। इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय को लिखे एक पत्र में यह बात कही है।

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आईपीएमए की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि भारत सरकार की ओर से जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में कुल कागज आयात 11 फीसद की बढ़ोत्तरी के साथ 16 लाख टन हो गया। इसी अवधि में चीन से कागज का आयात 14 फीसद की वृद्धि के साथ लगभग 3 लाख टन हो गया। विज्ञप्ति के मुताबिक भारत-आसियान एफटीए और भारत-कोरिया सीईपीए के तहत आसियान और दक्षिण कोरिया से होने वाला कागज आयात क्रमशः 18 फीसद और 9 फीसद बढ़ गया। इन दोनों देशों से आयात पर शुल्क शून्य है। चीन से होने वाले आयात पर एपीटीए एग्रीमेंट के तहत ज्यादातर पेपर ग्रेड पर 30 प्रतिशत का मार्जिन ऑफ प्रेफरेंस मिलता है।

आईपीएमए के प्रेसिडेंट ए. एस. मेहता ने इस संदर्भ में कहा कि कागज ऐसे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स में से है, जिस पर इम्पोर्ट का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। भारत में कई छोटे पेपर मिल और कुछ बड़े पेपर मिल भी वाणिज्यिक रूप से टिकाऊ नहीं रह पाने के कारण बंद हो गए, जिससे हजारों लोगों का रोजगार छिन गया। विज्ञप्ति के मुताबिक मेहता ने कहा कि देश में कागज उत्पादन की क्षमता पर्याप्त है, लेकिन उसका पूरा प्रयोग नहीं हो पा रहा है।

उन्होंने साथ ही कहा, 'आसियान देशों और चीन के कागज मैन्युफैक्चरर्स को सस्ता इनपुट और कच्चा माल मिल जाता है और उन देशों में कंपनियों को इन्सेंटिव और सब्सिडी भी मिलती है। ऐसे में इन देशों से शून्य आयात शुल्क या प्राथमिकता के आधार पर आयात को मंजूरी देने से घरेलू बाजार में भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को बराबरी का अवसर नहीं मिल पाता है।'


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