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पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को तंगहाली से बचाने के लिए की गई कार्रवाई है हाफिज सईद की गिरफ्तारी

जून 2018 के बाद से ही पाकिस्तान FATF की निगरानी में है जब इसे आतंकियों की वित्तीय मदद के आरोप में ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया था।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 03:11 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jul 2019 09:27 AM (IST)
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को तंगहाली से बचाने के लिए की गई कार्रवाई है हाफिज सईद की गिरफ्तारी

नई दिल्ली (अभिषेक पराशर)। मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया है। हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पहले ही वैश्विक आतंकी घोषित किया जा चुका है। भारत और अमेरिका दोनों ही सईद को मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार मानते हैं लेकिन सईद की गिरफ्तारी इस मामले में नहीं हुई है।

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पंजाब के गवर्नर शाहबाज गिल के प्रवक्ता के मुताबिक, 'सईद को गरजनवाला के पास गिरफ्तार किया गया और उसकी गिरफ्तारी की प्रमुख वजह प्रतिबंधित संगठन के लिए फंड जुटाने की थी, जो कि अवैध था।' हाफिज सईद के आजाद घूमने और प्रतिबंधित संगठनों (आतंकी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार) के लिए फंडिंग जुटाने की उसकी कवायद पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर आर्थिक रूप से अलग-थलग कर रही थीं।

इसे आसान शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे एक व्यक्ति पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए मुसीबत बन गया था, जो पहले से ही कमजोर हालत में है।

पाकिस्तान फाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ''ग्रे लिस्ट'' में है। FATF दरअसल दुनिया भर में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी संगठनों को दिए जाने वाले वित्तीय मदद पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था है। 

जून 2018 के बाद से ही पाकिस्तान इस संस्था की निगरानी में है, जब इसे आतंकियों की वित्तीय मदद के आरोप में ''ग्रे लिस्ट'' में डाल दिया गया था। यह दूसरी बार था जब पाकिस्तान FATF ने यह कदम पाकिस्तान की वित्तीय व्यवस्था और सुरक्षा स्थितियों से जुड़े जोखिमों का आकलन करने के बाद लिया था। 

''ग्रे लिस्ट'' में होने की वजह से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस लिस्ट में होने की वजह से विदेशी निवेश को हासिल करने में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी अभी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को बेहद जरूरत है। आर्थिक मोर्चे पर मौजूद गंभीर चुनौतियां पाकिस्तान के आर्थिक कायाकल्प की राह में सबसे बड़ी बाधा है।

‘’ग्रे लिस्ट’’ में शामिल देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के आर्थिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है। प्रतिबंध से बच भी जाए तो इन वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने में कई अड़चनें आती हैं। वित्तीय प्रवाह बाधित होने की वजह देश का अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ व्यापार बाधित होता है, जिसका खमियाजा अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ता है।

नकदी की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के पास 8 अरब डॉलर से भी कम का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो करीब दो महीने के आयात का बिल चुकाने के लिए काफी है। रुपये की कमजोरी और विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी की वजह से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के ऊपर डिफॉल्ट का खतरा मंडरा रहा है, जिससे बचने के लिए इमरान खान की सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 6 अरब डॉलर के कर्ज की मांग की थी।

''ग्रे लिस्ट'' में होने की वजह से पाकिस्तान को इस कर्ज को पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा और आखिरकार लंबी बातचीत के बाद आईएमएफ ने इस कर्ज को सैद्धांतिक मंजूरी दी। इस रकम में से एक अरब डॉलर की राशि पाकिस्तान को तत्काल मुहैया कराई जानी है जबकि बाकी की राशि अगले तीन सालों में दी जाएगी।

गौरतलब है कि आतंकी संगठनों और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान को FATF की ''ब्लैक लिस्ट'' में डालने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। हाल ही में भारत, अमेरिका और ब्रिटेन ने पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डालने के प्रस्ताव का समर्थन किया था, लेकिन बीजिंग और तुर्की की मदद की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।  

ऐसी हालत में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था FATF की ब्लैक लिस्ट में जाने का जोखिम उठाने की हालत में नहीं है। हाफिज सईद की गिरफ्तारी के जरिए पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश की है, ताकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के समक्ष यह बताया जा सके कि वह आतंकी संगठनों की फंडिंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रहा है।


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