छह सालों में सबसे कम रहा खाद्य तेलों का इम्पोर्ट, 31 अक्तूबर को समाप्त हुए खाद्य तेल वर्ष में आयात 13 फीसद घटा
खाद्य तेलों की आयात निर्भरता घटाने के लिए सरकार के प्रयास ने रंग लाना शुरु कर दिया है। 31 अक्तूबर को समाप्त हुए खाद्य तेल वर्ष (नवंबर से अक्तूबर) में तेलों का आयात 13 फीसद कम हुआ है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। खाद्य तेलों की आयात निर्भरता घटाने के लिए सरकार के प्रयास ने रंग लाना शुरु कर दिया है। 31 अक्तूबर को समाप्त हुए खाद्य तेल वर्ष (नवंबर से अक्तूबर) में तेलों का आयात 13 फीसद कम हुआ है। यह पिछले छह सालों में सबसे कम आयात रहा है। इस दौरान खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई। हालांकि आयात में आई कमी की एक बड़ी वजह कोरोना संक्रमण के दौरान बंद रहे होटल, रेस्टोरेंटों और कैफेटेरिया भी रहे। चालू तेल वर्ष 2020-21 के दौरान भी खाद्य तेलों के आयात में कमी आने का अनुमान लगाया गया है।
खाद्य तेल उद्योग के प्रमुख संगठन साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के जारी अनुमान के मुताबिक पिछले महीने समाप्त वर्ष 2019-20 में वनस्पति तेल आयात 13 फीसद घटकर 1.31 करोड़ टन रह गया है। जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 1.49 करोड़ टन था। एसोसिएशन का कहना है कि कोविड-19 के कारण अप्रैल में होटल, रेस्टोरेंट और कैफेटेरिया में खाद्य तेलों की मांग बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसके चलते खाद्य तेलों का आयात पिछले छह सालों में सबसे कम रहा है। चालू तेल वर्ष 202-21 में इसमें और गिरावट का अनुमान है।
एसोसिएशन का कहना है कि जनवरी 2020 में रिफाइंड पामोलिन के आयात को प्रतिबंधित सूची में डाल देने की वजह से आयात प्रभावित हुआ है। पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष के दौरान कच्चे पाम तेल के आयात में मामूली वृद्धि हुई। सोयाबीन तेल का आयात 31 टन से 33 लाख टन के बीच स्थिर रहा। जबकि घरेलू मांग की वजह से सूरजमुखी तेल का आयात साल-दर-साल बढ़ रहा है। तेल वर्ष 2019-20 के दौरान पाम तेल आयात पर्याप्त रूप से घटकर 72.17 लाख टन रह गया, जो आयात पिछले वर्ष 94.09 लाख टन का हुआ था।
तिलहन की घरेलू पैदावार में वृद्धि के अनुमान से 10 से 15 लाख टन अधिक खाद्य तेल का उत्पादन हो सकता है। इसकी वजह से आयात पर और लगाम लग सकती है। चालू रबी सीजन में तिलहन फसलों में सरसों की खेता का रकबा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जा रही है। दरअसल बाजार में खाद्य तेलों के मूल्य में हुई वृद्धि के चलते किसानों का रुझान तिलहन खेती की ओर हुआ है। इसके अलावा पहले से चल रहे आयल मिशन के साथ एक मिनी आयल मिशन की शुरुआत की गई है, जिसमें सरसों की खेती और पाम आयल के प्लांटेशन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इससे खाद्य तेलों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इन सबके बीच आयात निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी।