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सुलझने के बजाए उलझ गया सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज का मुद्दा

एनपीए बढ़ने की वजह से इन्हें काफी ज्यादा राशि अपने मुनाफे से समायोजित करनी पड़ रही है

By Surbhi JainEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 10:10 AM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 10:10 AM (IST)
सुलझने के बजाए उलझ गया सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज का मुद्दा
सुलझने के बजाए उलझ गया सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज का मुद्दा

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। सरकारी बैंकों के फंसे कर्जे यानी एनपीए का मुद्दा अब और उलझता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के फैसले के बाद एनपीए की वसूली की प्रक्रिया भी अगले दो महीने तक प्रभावित होगी। अदालत ने एक निश्चित अवधि तक कर्ज नहीं चुकाने वाली सभी कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के आरबीआइ के नियम पर फिलहाल रोक लगा दी है।

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राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में जिन कंपनियों के फंसे कर्जे का मामला निपटान के करीब पहुंच रहा था अब उनसे भी वसूली मुश्किल हो जाएगी। वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिस तरह से बिजली, चीनी, शिपिंग व टेक्सटाइल क्षेत्र की कंपनियों को राहत मिली है, उसे देखते हुए दूसरे क्षेत्र की कंपनियां भी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देने की सोच रही हैं।

लाभ के लिए बैंकों का इंतजार और लंबा:

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकारी बैंकों पर सबसे उल्टा असर यह पड़ने जा रहा है कि वित्तीय स्थिति सुधरने के लिए उन्हें और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। एनपीए बढ़ने की वजह से इन्हें काफी ज्यादा राशि अपने मुनाफे से समायोजित करनी पड़ रही है। इससे पिछले एक वर्ष से अधिकांश सरकारी बैंक काफी भारी नुकसान उठा रहे हैं। एसबीआइ, पीएनबी समेत कुछ बैंकों को उम्मीद थी कि आरबीआइ के निर्देश के मुताबिक जब कुछ बड़ी कंपनियों की परिसंपत्तियों को बेचकर कर्ज की उगाही की जाएगी तो वे फायदे में आ जाएंगी। सितंबर, 2018 में समाप्त होने वाली तिमाही में इन बैंकों में उम्मीद थी कि एनसीएलटी में जिन कंपनियों का मामला गया है, उससे उन्हें वसूली हो जाएगी। इस साल अप्रैल-जून तिमाही में सरकारी बैंकों को संयुक्त रूप से करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान उनका कुल घाटा 85,370 करोड़ रुपये था।

दिल्ली स्थित एक सरकारी बैंक के अधिकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को इस मुद्दे को सुनने की बात कही है। इसका मतलब यह हुआ कि पूरी स्थिति स्पष्ट होने में अभी और वक्त लग सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी अदालतों में आरबीआइ के दिशानिर्देश पर दायर सभी मामलों को अपने यहां ट्रांसफर करने की बात कही है। इससे उन बिजली कंपनियों को राहत मिल गई है जिनके मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राहत देने से मना कर दिया था।

आरबीआइ के निर्देश के खिलाफ तकरीबन दो दर्जन बिजली कंपनियों ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। इनमें से कुछ कंपनियों की वसूली की प्रक्रिया बैंक सितंबर, 2018 में ही पूरा होने की उम्मीद लगाए थे। जाहिर है कि अब लंबा इंतजार करना होगा। वैसे कोर्ट के फैसले से कुछ कंपनियां खुश हैं कि उन्हें बैंकों के कर्ज चुकाने के लिए अब ज्यादा वक्त मिल जाएगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल मार्च में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 10.41 लाख करोड़ रुपये का था।’


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