भारत का सबसे अच्छा साझीदार बनना चाहता है अमेरिका
अमेरिका ने सोमवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत के साथ उसका कोई अलगाव नहीं है और वह इसके लिए भारत का सबसे अच्छा साझीदार बनना चाहेगा। अमेरिका की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट
नई दिल्ली। अमेरिका ने सोमवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत के साथ उसका कोई अलगाव नहीं है और वह इसके लिए भारत का सबसे अच्छा साझीदार बनना चाहेगा। अमेरिका की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट किया है कि इस बारे में देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में नहीं आएगा।
इसी साल पेरिस में 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता होनी है। इसमें जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए वैश्विक करार होना है। अमेरिका का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए भारतीय व्यवसायियों के पास नेतृत्व करने का यह मौका है। उसी तरह जैसे ज्यादा चुस्त, स्वच्छ, उपयोगी और ज्यादा लाभदायक बनने के लिए यहां नवीन प्रक्रिया अपनाई गई। वे इसका लाभ उठा सकते हैं।
भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्मार्ट सिटी, मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान को लागू करना चाहते हैं और वर्ष 2022 तक 175 गीगा वाट स्वच्छ अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को पाना चाहते हैं। उसके लिए ज्यादा साफ सुथरी तकनीक के इस्तेमाल के अनगिनत अवसर हैं।
वह यहां 'क्लाइमेट पार्टनर्स' यानी जलवायु साझीदार कार्यक्रम के उद्घाटन के बाद लोगों संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम का मकसद जलवायु अभियान से जुड़े आर्थिक अवसरों को समझाना है। पर्यावरण के लिए नुकसानदेह प्रभावशाली ग्रीन हाउस गैसों (हाइड्रोफ्लूरोकार्बन) का उत्सर्जन चरणबद्ध ढंग से कम करने के भारत के प्रस्ताव पर अमेरिका ने इसमें सबसे अच्छा साझीदार बनने व कार्बन का उत्सर्जन कम करने और भविष्य में स्वच्छ ऊर्जा के लिए रास्ते तलाशने में भारत के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई है। वर्मा ने कहा कि जलवायु वार्ता में भारत जैसा नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहता है अमेरिका उसे समझता है। हम लोगों को दुनिया की पिछली सदी के आखिरी दशक से बाहर निकलने की जरूरत है जो दो कैंपों में बंटी थी। अब हम सब साथ मिलकर आगे बढ़ रहे हैं। हम अपने देश की परिस्थितियों को ध्यान में रख रहे हैं तो हमें वास्तव में ऐसा करना चाहिए।